Prayagraj Mahakumbh : नागा संन्यासियों की दीक्षा का साक्षी बना प्रयागराज महाकुम्भ का गंगा तट

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जूना अखाड़े में पहले चरण में 1500 अधिक नागा संन्यासियों का हुआ दीक्षा संस्कार


प्रयागराज महा कुम्भ में 5 हजार से अधिक नागा साधुओं की फौज होगी अखाड़ों में शामिल


महाकुंभ मेला क्षेत्र में संगम तट नागा संन्यासी की दीक्षा लेते अवधूत।



प्रारब्ध न्यूज़ ब्यूरो, प्रयागराज 



प्रयागराज के संगम तट पर महाकुंभ मेले के लिए सरकार ने महा कुम्भ नगर बसा दिया है, जहां सनातन धर्म संस्कृति के विविध रंग रूप देखने को मिल रहे हैं। साथ ही साधु संन्यासी सनातन के गुढ़ रहस्यों से जनमानस को अवगत करा रहे हैं। महाकुंभ का अहम श्रृंगार है यहां सेक्टर 20 में मौजूद सनातन धर्म के ध्वज वाहक 13 अखाड़े। महा कुम्भ नगर में जन आस्था के केंद्र इन अखाड़ों के नागा संन्यासियों की फौज में नई भर्ती का सिलसिला शुरू है। गंगा तट पर श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े के अवधूतों को नागा दीक्षा की प्रक्रिया शुरू की गई है। संन्यासी अखाड़ों में सबसे अधिक नागा संन्यासियों वाला अखाड़ा श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा है। इसमें नागा साधुओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। इसके विस्तार की प्रक्रिया शनिवार से शुरू हो गई। 


महाकुंभ मेला क्षेत्र में संगम तट नागा संन्यासी की दीक्षा लेते अवधूत।



श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े के 1500 अवधूत बने नागा संन्यासी




भगवान शिव के दिगम्बर भक्त नागा सन्यासी महाकुम्भ में सबका ध्यान अपनी तरह खींचते हैं। यही वजह है कि महाकुम्भ में सबसे अधिक जन आस्था का सैलाब जूना अखाड़े के शिविर में दिखता है। अखाड़ों की छावनी की जगह सेक्टर 20 में गंगा का तट इन नागा संन्यासियों की उस परम्परा का साक्षी बना जिसका इंतजार हर 12 साल में अखाड़ों के अवधूत करते हैं। श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय मंत्री महंत चैतन्य पुरी ने बताया कि शनिवार को नागा दीक्षा की शुरुआत हो गई है। पहले चरण में 1500 से अधिक अवधूत को नागा संन्यासी की दीक्षा दी जा रही है । नागा संन्यासियों की संख्या में जूना अखाड़ा सबसे आगे है, जिसमें अभी 5.3 लाख से अधिक नागा संन्यासी हैं। 




महाकुम्भ और नागा संन्यासियों का दीक्षा कनेक्शन 



नागा संन्यासी केवल कुंभ में ही बनते हैं। वहीं, उनकी दीक्षा होती है। सबसे पहले साधक को ब्रह्मचारी के रूप में रहना पड़ता है। उसे तीन साल गुरुओं की सेवा करने, धर्म-कर्म और अखाड़ों के नियमों को समझना होता है। इसी अवधि में ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह निश्चित कर ले कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है तो फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है। यह प्रकिया महाकुम्भ में होती है, जहां वह ब्रह्मचारी से उसे महापुरुष और फिर अवधूत बनाया जाता है। महाकुम्भ में गंगा किनारे उनका मुंडन कराने के साथ उसे 108 बार महाकुम्भ की नदी में डुबकी लगवाई जाती है। 



अन्तिम प्रक्रिया में उनका स्वयं का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार आदि में शामिल होता है। अखाड़े की धर्म ध्वजा के नीचे अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर उसे नागा दीक्षा देते हैं। प्रयाग के महाकुम्भ में दीक्षा लेने वालों को राज राजेश्वरी नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी व नासिक वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है। इन्हें अलग-अलग नाम से केवल इसलिए जाना जाता है, जिससे उनकी यह पहचान हो सके कि किसने कहां दीक्षा ली है।



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