-कानपुर इतिहास समिति ने स्वामी विवेकानन्द जयंती का किया आयोजन
-स्वामी विवेकानन्द का साहित्य और विचार युवाओं के लिए मार्गदर्शक
प्रारब्ध न्यूज़ ब्यूरो, कानपुर
स्वामी विवेकानन्द को मैथा कानपुर में जन्में स्वामी भास्करानन्द सरस्वती जी के ज्ञान और प्रतिभा ने आकर्षित किया था। स्वामी विवेकानन्द ने उन्हीं संस्मरणों को अपने व्याख्यानों में उद्धृत भी किया। यह विचार ओम कोचिंग कैनाल कॉलोनी गोविन्दनगर में कानपुर इतिहास समिति द्वारा आयोजित संगोष्ठी में विद्वानों ने प्रकट किए।
संगोष्ठी में अध्यक्ष विश्वंभर नाथ त्रिपाठी ने कहा कि कानपुर की पुण्य तीर्थ रेणु में वेदांती सन्त स्वामी भास्करानन्द सरस्वती, देवसमाज के प्रवर्तक भगवान देवात्मा, रघुनंदन स्वामी और विरक्तानन्द शोभन सरकार जैसे दिव्य विभूतियां जन्मी हैं ।
कानपुर इतिहास समिति के महासचिव अनूप कुमार शुक्ल ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द जी जब स्वामी भास्करानन्द सरस्वती से मिले तब दो कौतुकपूर्ण घटनाएं घटित हुई । पहली तो स्वामी जी की गुरुभक्ति परीक्षा और दूसरी साहस की। विवेकानन्द को बन्दरों द्वारा दौड़ाने पर डरो मत सामना करो और सम्मुखीन होने की सांकेतिक शिक्षा स्वामी भास्करानन्द जी ने ही दी थी । मैथा कानपुर के ही आचार्य लक्ष्मीधर बाजपेई ने विवेकानन्द पत्र व्योहार किताब लिखी जो बहुत ही महत्वपूर्ण है।
कार्यकारी अध्यक्ष शान्तनु त्रिपाठी ने कहा कि हमें विवेकानन्द जी के विचारों और साहित्य से शिक्षा लेनी चाहिए जिससे जीवन में बदलाव हो सके। डॉ. सुमन शुक्ला बाजपेई ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द जी की प्रतिभा और उनका रामकृष्ण परमहंस से जुड़ाव श्रीरामकृष्ण परमहंस वचनामृत में मिलता है जिसका अनुवाद महाप्राण निराला ने किया है। शुभम त्रिपाठी ने बताया कि स्वामी जी कितने कठिन संघर्ष के बाद शिकागो पहुंचे और किस प्रकार धर्मसंसद में उद्वोधन देकर वैश्विक स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया। डॉ. नीलम शुक्ला ने कहा कि रामकृष्ण परमहंस जी ने कहा था कि नरेन्द्र नदी मे बहता हुआ डण्ठल नहीं जो किसी चिड़िया के बैठने से ड़ूब जाये बल्कि वह एक बड़े भारी तने के समान हैं, जो अपने वक्ष पर मनुष्यो, पशुओं और माल को पार उतारता हैं |
हलीम मुस्लिम महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. शालिनी मिश्रा ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द का विराट व्यक्तित्व समाज के लिए प्रेरक और युवाओं के लिए मार्गदर्शक है। हर्षित सिंह बैस ने कहा कि सन्तों का महनीय जीवन और साहित्य समाज का मार्गदर्शन करता है, विशेष रूप से युवाओं का। प्रदीप द्विवेदी ने कहा कि कानपुर की सन्त परम्परा में बहुत से महान और यशस्वी महापुरुष हुए हैं, जिनका चरित्र ग्रहण करने योग्य है।
संगोष्ठी में विश्वंभरनाथ त्रिपाठी, शांतनु चैतन्य, विनोद टंडन, कुणाल सिंह, डॉ. नीलम शुक्ला, डॉ. सुमन शुक्ला, डॉ. शालिनी मिश्रा, प्रदीप द्विवेदी, शुभम त्रिपाठी, हर्षित सिंह, डॉ. नवीन वर्मा, अरुण सिंह, प्रभात सिंह आदि मौजूद रहे ।
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