प्रारब्ध न्यूज़ डेस्क, लखनऊ
सारी बीमारी की जड़ पेट साफ न होना है। पेट साफ रहे तो व्यक्ति स्वस्थ (Healthy) होता है लेकिन वेस्टर्न टॉयलेट (western toilet) की वजह से ठीक तरीके से मोशन नहीं हो पाता और व्यक्ति कब्ज का शिकार हो जाता है। मॉर्डन होती दुनिया से व्यक्ति का जीवन आरामदायक भले बन गया, लेकिन स्वास्थ्य संबंधी परेशानी बढ़ती जा रही हैं। कई अध्ययनों (study) में सामने आ चुका है कि वेस्टर्न टॉयलेट के इस्तेमाल से पेट साफ नहीं हो पाता है। इस वजह से हर साल कब्ज के मरीज बढ़ रहे हैं।
लग्जरी माने जाते थे इंग्लिश टॉयलेट
वर्ष 1596 में इंग्लैंड के सर जॉन हैरिंगटन ने पहली बार फ्लश टॉयलेट का आविष्कार किया लेकिन उसमें कई खामियां थीं। वर्ष 1775 में एलेंक्डेंजर कुम्मिंग ने बेहतर फ्लश लैवेटरी बनाई लेकिन वर्ष 1778 में जोसेफ ब्रामाह ने इसमें और सुधार किया था। और आज के जमाने का मॉडर्न इंग्लिश टॉयलेट बनाया था। उसके बाद 19वीं शताब्दी तक यह लग्जरी समझे जाते थे और आम लोगों की पहुंच से दूर थे। समय के साथ धीरे-धीरे ये टॉयलेट खास से आम हो गए और कब्ज की वजह से बदनाम हो गए।
बैठने का तरीका है गड़बड़
इंग्लिश टॉयलेट का इस्तेमाल ना करना मुश्किल है क्योंकि आजकल हर जगह यही मिलता है। इस टॉयलेट पर अक्सर लोग 90 डिग्री एंगल की पोजिशन पर बैठते हैं यानी कमर सीधी होती है और बॉडी की बैक साइड झुकी होती है। यह बहुत खतरनाक पोजीशन है क्योंकि इससे आंतों का रास्ता बंद हो जाता है और बाउल मूवमेंट पर जोर पड़ता है। वहीं कुछ लोग इंग्लिश टॉयलेट पर कमर झुकाकर बैठते हैं, यह भी गलत है। इससे भी मल आंतों में फंसा रहता है और पेट साफ नहीं हो पाता है।
इंडियन टॉयलेट हैं बेहतर
हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. सुबोध सिंह कहते हैं कि इंडियन टॉयलेट वेस्टर्न टॉयलेट से ज्यादा बेहतर होते हैं। इंडियन टॉयलेट में स्क्वाट पोजीशन में बैठा जाता है जिससे एनस और रेक्टम सीधा रहता है। इस पोजीशन पर बैठने से मल आसानी से शरीर से बाहर निकल जाता है। वेस्टर्न टॉयलेट के इस्तेमाल के दौरान हिप्स और थाइज सीधे नहीं होते जिससे मल पेट में रह जाता है। वेस्टर्न टॉयलेट उन्हीं लोगों को इस्तेमाल करना चाहिए जिन्हें घुटने में दर्द रहता हो या फिर जिन लोगों की पैरों की सर्जरी हुई हो, वह भी इसे इस्तेमाल कर सकते हैं। बाकी लोगों को इंडियन टॉयलेट ही इस्तेमाल करना चाहिए।
इंग्लिश टॉयलेट पर ऐसे बैठ सकते हैं
इंग्लिश टॉयलेट के साथ स्टूल लगा लें और मोशन करने के दौरान पैर उस पर टिका लें। बॉडी की पॉजिशन इस तरह हो कि हिप्स और अपर बॉडी के बीच 35 डिग्री का एंगल बन जाए। इससे पेट से मल पूरी तरह निकल जाएगा। हो सकता है कि शुरू में इस पोजीशन में बैठने अजीब लगे और कमर पर जोर पड़े लेकिन ऐसा करने से कब्ज की समस्या नहीं होगी।
टॉयलेट जाने से पहले उकड़ू पीएं पानी
इंग्लिश टॉयलेट का इस्तेमाल करने से पहले सुबह खाली पेट उकड़ू बैठकर पानी पीएं। यह पानी सादा होना चाहिए, जिसे थोड़ा गुनगुना किया जा सकता है। आयुर्वेद में भी गुनगुना पानी पीने का जिक्र है। पानी पीने के बाद टॉयलेट जाएं, ऐसा करने से आंतें साफ हो जाएंगी। मल पूरी तरह से शरीर से बाहर निकल जाएगा।
पेल्विक बीमारी में बढ़ोतरी
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की रिसर्च में सामने आया कि इंग्लिश टॉयलेट के इस्तेमाल से पेल्विक डिजीज में बढ़ोतरी हुई है। ऐसा वर्ष 1900 के बाद ज्यादा हुआ, क्योंकि आम लोगों के बीच इंग्लिश टॉयलेट का इस्तेमाल बढ़ा था। कब्ज के साथ ही पाइल्स यानी बवासीर भी पेल्विक डिजीज में आती है। अगर कब्ज लंबे समय से हो तो यह पाइल्स बन सकता है। इसमें पेट पर जोर लगाने से रेक्टम और एनस यानी गुदा की नसों में सूजन आ जाती है। कई बार इंग्लिश टॉयलेट के साथ लगा पानी का जेट भी पाइल्स की वजह बन जाता है. इससे निकलने वाला पानी का तेज प्रेशर नसों को सूजा देता है या डैमेज कर देता है।
खाने पर ध्यान देना जरूरी
कब्ज से बचने के लिए खानपान सही होना चाहिए। प्रोसेस्ड फूड और जंक फूड से दूर रहें। कॉफी, चाय, सोडा और एनर्जी ड्रिंक कम से कम पीएं। पानी, सूप, जूस ज्यादा पीएं। खाने में फाइबर को शामिल करें। इसके लिए कच्ची सब्जियां, फल, बींस और अंकुरित अनाज लें। डाइट में हर दिन कम से कम 34 ग्राम फाइबर लेना चाहिए। खूब सारा पानी पीएं, रात को खाने के बाद भीगे हुए मुनक्का खाएं। इससे मोशन सॉफ्ट होगा और सुबह आसानी से आंतों से बाहर निकल जाएगा। अंजीर और खुबानी से भी पेट साफ होता है।
स्ट्रेस को रखें दूर और वर्कआउट करें
जड़ी बूटियों के जानकार और वैद्य राजेश शुक्ला के अनुसार जो लोग तनाव में रहते हैं, उनका पेट साफ नहीं होता है। दरअसल, तनाव में स्ट्रेस हॉर्मोन रिलीज होते हैं, जिससे बाउल मूवमेंट प्रभावित होती है। मल का कनेक्शन दिमाग से है, तनाव में पेट की गंदगी शरीर से बाहर नहीं निकल पाती है। स्ट्रेस को दूर करने के लिए ब्रीदिंग एक्सरसाइज करें और पॉजिटिव माहौल में रहें। इसके अलावा वर्कआउट पर भी ध्यान दें, जितनी ज्यादा बॉडी की मूवमेंट रहेगी, गट हेल्थ दुरुस्त होगी और बाउल मूवमेंट बनी रहेगी। अमेरिकन हार्ट असोसिएशन (AHA) के अनुसार हफ्ते में 150 मिनट की फिजिकल एक्टिविटी से डायजेशन और बाउल मूवमेंट बेहतर होती है।
if you have any doubt,pl let me know