सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने पत्नी के गुजारा भत्ते पर तल्ख टिप्पणी के साथ दिया फैसला
प्रारब्ध न्यूज़ डेस्क, नई दिल्ली
पुरुष और महिला के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन ही विवाह है। साथ ही मानव समाज की अहम प्रथा और परिवार बनाने की सबसे छोटी इकाई है। यह पवित्र बंधन है, जिसमें दोनों एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं और साथ मिलकर ज़िम्मेदारियां भी बांटते हैं, जिससे स्त्री-पुरुष के बीच आत्मिक संबंध बनता है। साथ ही दोनों के बीच अधिकारों और दायित्वों का निर्धारण होता है।
विवाह के ज़रिए, दोनों लोगों के बीच और उनके बच्चों और समधियों के बीच भी अधिकारों और दायित्वों का निर्धारण होता है। हालांकि स्त्री के जीवन में विवाह से पहले और बाद में कई चुनौतियां भी आती हैं। कभी दहेज का दबाव तो कभी हिंसा का डर। इन मुश्किल हालात से बचाने और सुरक्षा के लिए कानून बनाए गए हैं, जो कागजी नहीं बल्कि एक सुरक्षा ढाल हैं। महिलाओं को न केवल अन्याय से लड़ने की ताकत देते हैं बल्कि आत्मसम्मान के साथ जीवन जीने का हौसला देते हैं।
भारतीय परिवारों में शादी टूटने के बाद पति पत्नी के बीच गुजारे भत्ते को लेकर जो झगड़े चलते हैं। उसमें बरसों कानूनी दांव पेच चलते हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एक लकीर खींच दी है। टिप्पणी की है कि हिंदुओं में विवाह पवित्र संस्कार की नींव है, इसे कारोबार के तौर पर कतई न देखा जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर घरेलू हिंसा और दहेज कानूनों के दुरुपयोग को लेकर चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को इन कानूनों का गलत इस्तेमाल न करने की सलाह दी है, जो उनकी सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं। वहीं, अतुल सुभाष केस के बाद महिला कानूनों पर छिड़ी बहस सड़क से संसद और अब कोर्ट तक पहुंच गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजारे भत्ते पर तल्ख टिप्पणी की है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस पंकज मित्तल की डबल बेंच ने कहा कि हिंदुओं में विवाह पवित्र संस्कार की नींव होता है। ये परिवार की नींव होता है, जिसे कारोबार के तौर पर कतई नहीं देखा जाए। गुजारा भत्ता कानून महिलाओं के कल्याण के लिए हैं। इसका उद्देश्य पति से जबरन वसूली करना नहीं है।
गुजारे भत्ते के कानून पति को धमकाने, सजा दिलाने और उस पर हावी होने का साधन नहीं होने चाहिए। हमें दूसरे पक्ष को भरण पोषण या गुजारे भत्ते के नाम पर संपत्ति के बराबर बांटे जाने के तरीके पर आपत्ति है। गुजारा भत्ता महिला की आर्थिक स्थिति पुरुष के समान बनाने के लिए नहीं बल्कि बेहतर जीवन देने के लिए है। सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी तलाक ले रहे एक दंपत्ति के मुकदमे में आई है। पत्नी की शिकायत ये थी कि पति उसे मूल संपत्ति से बहुत कम हिस्सा दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने बराबर बंटवारे का तर्क खारिज करते हुए ये भी सवाल किया कि अगर कल पति की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है तो क्या पत्नी इस पूर्व पति को अपनी संपत्ति में से बराबर का हक देगी।
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