प्रारब्ध धर्म अध्यात्म डेस्क
पुराणों के अनुसार भगवान् शिव से बड़ा कोई श्रीविष्णु का भक्त नहीं और भगवान् विष्णु से बड़ा कोई श्रीशिव का भक्त नहीं है, इसलिए भगवान् शिव सबसे बड़े वैष्णव और भगवान विष्णु सबसे बड़े शैव कहलाते हैं।
जब श्रीकृष्ण ने महारास का उद्घोष किया तो वृन्दावन में और पूरे ब्रह्माण्ड के तपस्वी प्राणियों में भयंकर हल चल मच गई थी । सभी यही कह रहे थे कि काश हमें भी इस महारास में शामिल होने का मौका मिल जाए।
दूर दूर से गोपियाँ जो की पूर्व जन्म में एक से बढ़कर एक ऋषि, मुनि, तपस्वी, योगी, भक्त महा रास में शामिल होने के लिए आतुरता से दौड़ें आये। महारास में शामिल होने वालों की योग्यता को परखने की जिम्मेदारी , श्री ललिता सखी की थी जो स्वयं श्री राधाजी की प्राण प्रिय सखी थीं।
हमेशा एकान्त में रहकर कठोर तपस्या करने वाले भगवान् शिव को जब पता चला की श्रीकृष्ण महारास शुरू करने जा रहें हैं तो वो भी अत्यन्त खुश होकर, तुरन्त अपनी तपस्या छोड़ श्री वृन्दावन धाम पहुंच गए । और बड़े आराम से सभी गोपियों के साथ रास स्थल में प्रवेश करने लगे पर द्वार पर ही उन्हें श्री ललिता सखी ने रोक दिया। और बोली कि हे महा प्रभु, रास में सम्मिलित होने के लिए स्त्रीत्व जरूरी है।
तब भोलेनाथ ने तुरन्त कहा कि ठीक है तो हमें स्त्री बना दो, तब ललिता सखी ने भोले नाथ का गोपी वेश में श्रृंगार किया और उनके कान में श्रीराधा कृष्ण के युगल मन्त्र की दीक्षा दी। चूँकि भोलेनाथ के सिर की जटा और दाढ़ी मूंछ बड़ी बड़ी थी, इसलिए ललिता सखी ने उनके सिर पर बड़ा सा घूँघट डाल दिया। ताकि किसी को उनकी दाढ़ी मूँछ दिखायी न दे।
महादेव भोलेनाथ के अति बलिष्ठ और बेहद लम्बे चौड़े शरीर की वजह से वो सब गोपियों से एकदम अलग और विचित्र गोपी लग रहे थे। जिसकी वजह से हर गोपी उनको बड़े आश्चर्य से देख रही थी, महादेव को लगा की कहीं श्रीकृष्ण उन्हें पहचान ना लें इसलिए वो सारी गोपियों की भीड़ में सबसे पीछे जा कर खड़े हो गए।
अब श्रीकृष्ण भी ठहरे मजाकिया स्वाभाव के और उन्हें पता तो चल ही चुका था कि स्वयं भोले भण्डारी यहाँ पधार चुके हैं। तब उन्होंने विनोद लेने के लिए कहा कि महारास सबसे पीछे से शुरू किया जायेगा। इतना सुनते ही भोलेनाथ घबराये और घूँघट में ही दौड़ते दौड़ते सबसे आगे आकर खड़े हो गये, पर जैसे ही वो आगे आये वैसे ही श्रीकृष्ण ने कहा कि अब महारास सबसे आगे से शुरू होगा।
तब महा देव फिर दौड़ कर पीछे पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने फिर कहा कि रास पीछे से शुरू होगा। तब महादेव फिर दौड़ कर आगे आये, इस तरह कुछ देर तक ऐसे ही आगे-पीछे चलता रहा और बाकी की सभी गोपियाँ आश्चर्य से खड़े होकर श्रीकृष्ण और श्री महादेव के बीच की लीला देखतीं रहीं।
यह कहकर श्रीकृष्ण ने भोले नाथ का घूंघट हटा दिया और आनन्द से उद्घोष किया, कि “आओ गोपेश्वर महादेव! आपका इस महारास में स्वागत हैं। उसके बाद जो महा उत्सव ऐसा हुआ कि ऋषि-महर्षि भी हाथ जोड़कर नेति-नेति कहते रहे। इस महारास के महा सुख को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। तब से आज तक भगवान् शिवशंकर वृन्दावन में गोपेश्वर रूप में ही निवास करते हैं।
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