नेत्र रोग विभाग में मरीजों के रेटिना की जांच करते प्रो. परवेज खान। |
प्रारब्ध न्यूज़ ब्यूरो, कानपुर
उत्तर प्रदेश के कानपुर का गणेश शंकर विद्यार्थी स्मारक चिकित्सा महाविद्यालय (जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज) Gsvm Medical College प्रदेश में रेटिना की जटिल सर्जरी का केंद्र बन गया है। मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. परवेज खान ने रेटिना की जटिल सर्जरी प्रारंभ की है। अभी तक लेटिना की सर्जरी की सुविधा बड़े निजी क्षेत्र के बड़े नेत्र अस्पतालों में ही उपलब्ध थी, जहां लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। ऐसे में आर्थिक रूप से कमजोर जरूरतमंद सर्जरी नहीं करा पाते थे। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग में अब सुविधा उपलब्ध हो गई है।
जांच करते डॉ. परवेज खान। |
वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. परवेज खान ने बताया कि मोतियाबिंद के अत्याधिक पुराने होने के कारण कई बार लेंस कमजोर होकर रेटिना पर गिर जाता है। ऐसे में लेंस को बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी मोतियाबिंद के ऑपरेशन के दौरान लेंस के पीछे की झिल्ली फट जाती है। इस वजह से लेंस लगाना मुश्किल होता है। इसके चलते आंख में ग्लूड लेंस लगाना ही एकमात्र विकल्प होता है।
अब नेत्र रोग विभाग में सभी प्रकार के सेकेंडरी आईओएल (आंखों के लेंस) का ऑपरेशन की सुविधा उपलब्ध हो गई है। अभी तक यह सुविधा निजी क्षेत्र के बड़े कारपोरेट नेत्र अस्पतालों में ही उपलब्ध थी। अब इस तरह की रेटिना की जटिल सर्जरी की सुविधा जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में उपलब्ध हो गई है।
प्री मैच्योर नवजात के आंखों की भी सर्जरी
समय से पहले जन्म लेने वाले (प्री मैच्योर) कम वजन के नवजात को नवजात शिशु सघन चिकित्सा इकाई (एनआईसीयू) में आक्सीजन सपोर्ट में रखना पड़ता है। आक्सीजन के प्रेशर से रेटिना प्रभावित होता है। इसलिए समय से जन्मे प्री मैच्योर नवजात शिशुओं में अंधता का सबसे बड़ा कारण रेटिनाइटिस आफ प्री मैच्युरिटी है। वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ परवेज खान द्वारा ही समय से पहले जन्मे नवजात की स्क्रीनिंग की जाती है। उन्हें दिक्कत होने पर सर्जरी कर राहत प्रदान की जाती है। ऐसा कर नवजात शिशुओं में अंधता की मूल वजह का निवारण किया जा रहा है।
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