प्रारब्ध फीचर डेस्क
कामिनी ने घर के काम के लिए नई कामवाली बाई शांति को रखा था। उसके आते ही उन्होंने उसे कुछ निर्देश दिए, जैसे अपनी चप्पल बाहर उतार कर घर के अंदर आना। घर के किसी सामान को बिना पूछे न छूना और न ही हाथ लगाना। अगर प्यास लगे तो अपने हाथ से लेकर पानी तक नहीं पीना, बल्कि प्यास लगने पर उनसे मांग कर ही पानी पीए। पीने के पानी या फिल्टर को तो बिल्कुल ही न छुये।
कामिनी की बातों को कामवाली बाई शांति ने शांति से सुना। उसके बाद बोली मैडम जी आप निश्चिंत रहिये अपनी चप्पल बाहर उतारूंगी। आप से पूछे बगैर किसी चीज को हाथ नहीं लगाऊंगी। और प्यास लगने पर आपसे पानी भी नहीं मांगूंगी, क्योंकि मैं अपने साथ पानी की बड़ी बोतल और अपना टिफिन लेकर आती हूँ। आपने शायद देखा नहीं वो थैली मैंने आपके घर के बाहर रखी है।
कामिनी ने कहा ठीक है, अगर कभी तुम्हारा पानी खत्म हो जाए तो खुद पानी अपने मन से मत लेना। उसे शांति से जो प्रति उत्तर मिला, कामिनी के लिए कल्पनातीत था।
शांति ने कहा कि मैडम जी मैंने आपसे कहा ना मैं आपके घर का पानी नहीं पिऊंगी। जवाब थोड़ा खटका , कामिनी ने उससे पूछा, क्या मतलब है तुम्हारा?
शांति का जवाब, मैडम जी पर तमाचे की तरह पड़ा...
मैडम जी मेरे पिताजी ने एक बार गांव के कुंए से बिना पूछे पानी निकाल कर पी लिया था। उन्हें बहुत मार पड़ी थी, दूसरे दिन उन्हें परिवार सहित गांव से निकाल दिया गया था। उन्होंने गांव के बाहर आकर उसी दिन कसम ली और अपने परिवार को भी दिलाई थी कि कभी उनका छुआ पानी और खाना मत खाना, जो हमें अछूत मानते हैं। याद रखना वो आज से हमारे लिए भी अछूत हैं।
मैडम जी उस दिन से हमारे परिवार में सब अपने काम पर जाते समय अपना खाना पानी लेकर ही निकलते हैं। उसकी मूल वजह यह है कि उस घर का पानी न पीना पड़े, जो हमें अछूत मानते हैं। जब वह हमें अछूत मानते हैं वो हमारे लिए भी अछूत के समान ही हैं, इसलिए हम लोगों ने उनके यहां का खाना पानी भी त्याग दिया है।
कामिनी निःशब्द निस्तब्ध खड़ी रही और उसे अपलक निहारती रही।
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