प्रारब्ध न्यूज़, कानपुर
महानगर में कैंसर, बांझपन (इनफर्टिलिटी), डायबिटीज या लिवर संबंधी गंभीर बीमारियों के पीछे प्रदूषण, अनियमित जीवनशैली समेत अन्य कारण वजह माने जाते हैं, लेकिन प्राकृतिक वातावरण में बसे गांवों में भी ऐसी गंभीर बीमारियां..! यह विचारणीय प्रश्न है। प्रदूषण मुक्त और नियमित दिनचर्या से चलने वाले हरे-भरे गांवों में उभरते ये हालात चिंता का वषय है।
महानगर के बड़े सरकारी अस्पतालों में आने वाले अधिकतर मरीज ग्रामीण क्षेत्रों के हैं। इस स्थिति से विशेषज्ञ हैरान हैं और वे इसके पीछे के कारणों की खोज में जुट गए हैं। विशेषज्ञों की नजर में सबसे बड़ा कारण खेती में इस्तेमाल किए जाने वाले रसायन और कीटनाशक हैं। इससे भी बड़ी चिंता की बात यह कि रसायनों के दुष्प्रभाव से ग्रामीणों की जेनेटिक कोडिंग प्रभावित होने का खतरा मंडरा रहा है। इसका पता लगाने के लिए जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज एवं चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के विशेषज्ञ शोध कर रहे हैं।
देश की तेजी से बढ़ती जनसंख्या के हिसाब से खाद्यान्न उत्पादन का भी दबाव है। खाद्यान्न, सब्जियों व फलों की पैदावार बढ़ाने के लिए किसान खेतों में रसायन एवं कीटनाशकों का मानक से अधिक इस्तेमाल करते हैं। इनके छिड़काव से किसान जाने-अनजाने गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। किसानों पर इसके दुष्प्रभाव का पता लगाने के लिए मेडिकल कॉलेज के बायोकेमिस्ट्री विभाग और सीएसए के प्रसार निदेशालय के निदेशक डॉ. धूम सिंह ने संयुक्त शोध प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार को भेजा। इसे स्वीकृत करते हुए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना से 2.50 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। इसमें जीएसवीएम के लिए 1.58 करोड़ रुपये और शेष राशि सीएसए के लिए है।
दो स्तरों पर होगा शोध
सीएसए के विशेषज्ञ खेती में कीटनाशकों के इस्तेमाल करने वाले किसानों को इंटीग्रेटिव पेस्ट मैनेजमेंट की ट्रेनिंग देंगे। उन्हें बताएंगे कि एक एकड़ में रसायन और कीटनाशक कितनी मात्रा में इस्तेमाल करना है। मार्केट में उपलब्ध कौन से कीटनाशक मानक के अनुसार हैं और कौन से हानिकारक। अमान्य रसायन एवं कीटनाशक सरकार ने क्यों बैन कर रखे हैं। जीएसवीएम के विशेषज्ञ सीएसए के कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) में आने वाले किसानों के दो ग्रुप बनाएंगे। एक ग्रुप रसायन एवं कीटनाशक का सही इस्तेमाल करने वाला होगा, दूसरा मनमाफिक इस्तेमाल करने वाला होगा। दोनों ग्रुप के किसानों के रक्त नमूने (ब्लड सैंपल) लिए जाएंगे। उनकी जांच कर पता किया जाएगा कि रक्त में कौन-कौन से रसायन हैं। कीटनाशक का असर है तो उसकी मात्रा क्या है। रक्त से पहले आरएनए (राइबो न्यूक्लिक एसिड) निकाला जाएगा। उसके बाद डीएनए (डीऑक्सी राइबो न्यूक्लिक एसिड) निकाल कर जांच होगी।
एक्सपर्ट के विचार
कीटनाशक तथा रसायन श्वांस व त्वचा के माध्यम से शरीर में जाकर मांसपेशियों में जमा हो जाते हैं। जीन (गुणसूत्र) पर असर पड़ने से बीमारियां होती हैं, क्योंकि जीन से प्रोटीन बनते हैं, जो एक्टिविटी करते हैं। इस महात्वाकांक्षी शोध से जेनेटिक कोडिंग में बदलाव तथा जीन के एक्सप्रेशन पर प्रभाव का पता लगाया जाएगा।
-डॉ. आनंद नारायण सिंह, विभागाध्यक्ष, बायोकेमिस्ट्री विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।
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