प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क, लखनऊ
काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी के निकट मां अन्नपूर्णा देवी का मंदिर है। इन्हें तीनों लोक का भरण पोषण करने वाली माता के रूप में पूजा जाता है। यह मान्यता है कि भगवान शिव को स्वयं मां ने भोजन कराया था।ऐसा ही एक श्लोक है
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे, ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि च पार्वती।
इस में भगवान शिव, माता से भिक्षा की याचना कर रहे हैं।
मंदिर में वर्ष में केवल एक बार अन्नकूट महोत्सव पर मां अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा को सार्वजनिक रूप से एक दिन के लिए दर्शनार्थ निकाला जाता है। तभी भक्तगण माता के दर्शन कर सकते हैं। वैसे तो साल भर मंदिर प्रांगण में स्थापित कुछ अन्य प्रतिमाओ का दर्शन साल भर किया जा सकता है।इन मूर्तियों में मां काली शंकर पार्वती और नरसिंह भगवान के मंदिर की मूर्तियां भी सम्मिलित हैं
मंदिर की दीवारों पर ऐसे चित्र बने हुए हैं जिसमें मां कभी कलछी पकड़े हुए हैं तो कभी खाना बनाते हुए दिख रही है। कहते हैं कि गुरु आदिशंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्त्रोत की रचना करके ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की थी।
किवदंती है कि काशी में एक बार अकाल पड़ गया था। चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था और लोग भूख से मर रहे थे।उस समय भगवान शिव को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। ऐसे में समस्या का निदान करने के लिए वह ध्यानमग्न हो गए। तब उन्हें एक राह सूझी कि, मां अन्नपूर्णा ही उनकी नगरी को बचा सकती है।
इस कार्य को पूर्ण करने के लिए भगवान शिव ने खुद मां अन्नपूर्णा के पास जाकर भिक्षा मांगी। उसी क्षण मां ने भोलेनाथ को वचन दिया कि आज के बाद काशी में कोई भूखा नहीं रहेगा और उनके इस और इस आशीर्वाद लोगों के दुख दूर हो गए। तभी से अन्नकूट के दिन उनके दर्शनों के समय खजाना भी बांटा जाता है। जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि इस खजाने को पाने वाला कभी अभाव में नहीं रहता।
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