प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क,लखनऊ
ब्रह्मांड में प्रत्यक्ष रूप में किसी देवता को हम खुली आंखों से देख सकते हैं तो वह है सूर्य देव। जिनके ताप को हम महसूस कर सकते हैं और जिनकी किरणें सब पर एक समान से पड़ती हैं। सारी सृष्टि में एक ऊर्जा भरते हैं।
उड़ीसा के कोणार्क में सूर्य देव का मंदिर स्थित है। जिसकी महिमा दूर- दूर तक फैली हुई है। इसके अलावा एक ऐसा मंदिर और भी है जोकि बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले के देव में स्थित है। मंदिर के दरवाजे पूरब की जगह पश्चिम की ओर खुलते हैं। इस मंदिर का इतना महत्व है कि छठ पूजा में लाखों श्रद्धालु इस मंदिर में पहुंचकर सूर्य देव के दर्शन करते हैं।
छठ के अलावा हर सप्ताह रविवार के दिन यहां काफी बड़ी मात्रा में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। औरंगाबाद जिले से 20 किलोमीटर दूर यह मंदिर स्थापित है।इस मंदिर को त्रेतायुगीन पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर भी कहते हैं।
किवदंती है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथों से किया था। एक रात में इस मंदिर का निर्माण हुआ था। मंदिर के गर्भ गृह में ब्रह्मा, विष्णु और महादेव की प्रतिमा स्थापित है। वही मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश लगा हुआ है। इसके साथ मंदिर में कई अन्य दुर्लभ प्रतिमाएँ भी हैं।
इस मंदिर से थोड़ी दूर पर ही एक तालाब है। ऐसी मान्यता है कि यहां स्नान करने मात्र से कुष्ठ रोग ठीक हो जाते हैं। इस तालाब की खुदाई देव के राजा ने कराई थी। उनका कुष्ठ रोग भी ठीक हो गया था।
यहां अचला सप्तमी को के दिन रथ यात्रा भी निकाली जाती हैं। और दो दिवसीय देव सूर्य महोत्सव का भी आयोजन किया जाता है। देश के बड़े-बड़े कलाकार अपनी प्रस्तुति देते हैं।
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