प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क,लखनऊ
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अष्टावक्र नाम के एक ऋषि थे। एक बार राधारानी कृष्ण भगवान के साथ भ्रमण कर रही थी। उसी समय ऋषि अष्टावक्र उनके सामने से गुजरे। राधा रानी जब ऋषि अष्टावक्र से मिली तो उनके मुख पर एक स्निग्ध सी मुस्कान आ गई। जब राधा रानी की मुस्कान को ऋषि अष्टावक्र ने देखा तो उन्हें लगा कि मेरे कुरूप चेहरे को देखते हुए राधा रानी मुस्कुरा रही हैं।
वह बहुत क्रोधित हुए और राधा रानी को श्राप देने लगे।तभी कृष्ण भगवान ने ऋषि अष्टावक्र को रोकते हुए कहा कि मुनिवर पहले राधा रानी के चेहरे पर आई हुई मुस्कान का कारण जान लीजिए तब उन्हें श्राप दीजिए। ऋषि रुके और राधा रानी से बोले,बताइए राधा रानी आपकी मुस्कान का क्या कारण है।
इस पर राधा रानी ने कहा,हे ऋषि मैं आपकी अंतरात्मा को देखकर मुस्कुरा रही हूं, आपके अंदर छिपे परम ज्ञान को देखकर मुस्कुरा रही हूँ। मुझे आपके शरीर को देखकर हंसी नहीं आई। आपके ज्ञान और परमात्मा होने के कारण खुशी का अनुभव हुआ था इसलिए मेरे मुंह पर हंसी थी।
इतना सुनते ही ऋषि अष्टावक्र, राधा रानी से प्रसन्न हो गए और उन्होंने वरदान दिया कि तुम सदैव यौवनावस्था में ही रहोगी। तुम्हें बुढ़ापा छू नहीं सकेगा। इसलिए तुम्हें संसार में किशोरी जी के नाम से भी जाना जाएगा।
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