प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क, लखनऊ
पुराणानुसार त्रेता युग में सर्वगुण संपन्न,शस्त्रों को धारण करने वाले परशुराम हुए। वह विष्णु अवतार थे। जिनका जन्म भृगु ऋषि के श्राप के कारण हुआ था।उनकी माता रेणुका और पिता जमदग्नि थे। परशुराम के चार बड़े भाई थे।सबसे योग्य एवं तेजस्वी परशुराम थे।
एक बार जमदग्नि ने रेणुका को हवन हेतु गंगा तट पर जल लाने के लिए भेजा। गंधर्वराज चित्ररथ अप्सराओं के साथ ,गंगा तट पर विहार कर रहे थे, जिन्हें देख रेणुका आसक्त हो गईं और कुछ देर तक वहीं रुक गईं।इस कारण हुए विलम्ब के फलस्वरूप हवनकाल समाप्त हो गया।इससे जन्मदग्नि क्रोधित हो गए और उन्होंने रेणुका के इस कृत्य को आर्य विरोधी आचरण माना।
क्रुद्ध होकर उन्होंने अपने सभी पुत्रों को रेणुका के वध का आदेश दिया लेकिन माँ के मोहवश कोई पुत्र ऐसा नहीं कर सका।पुत्रों को आज्ञा की अवहेलना करते देख उन सभी को विचार शक्ति नष्ट होने का श्राप दिया।
पिता के तपोबल से प्रभावित परशुराम ने अपनी माता का शिरोच्छेद कर दिया।परशुराम की कर्तव्यपरायणता देख जमदग्नि बेहद खुश हुए और परशुराम से वरदान माँगने को कहा।वरदान में परशुराम ने अपनी माता को पुनः जीवन एवं सभी भाइयों को विचारशील करने का वरदान माँगा।
वरदान में अपने लिए कुछ भी नहीं माँगने और माता एवं भाइयों के लिए की गई माँग से जमदग्नि अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया कि संसार में तुम्हें कोई परास्त कर पाएगा,तुम अजेय रहोगे।तुम अग्नि से उत्पन्न होने वाले इस दृढ़ परशु को गृहण करो।इसी तीक्ष्ण धार वाले परशु से तुम विख्यात होगे।वरदान के फलस्वरूप माता रेणुका जीवित हो गईं पर परशुराम पर ब्रह्महत्या का दोष चढ़ गया।
कुछ समय के बाद हैहयवंश में कार्तवीर्य अर्जुन राजा हुआ।वह सहस्त्रबाहु था। उसने कामधेनु के लिए जमदग्नि ऋषि को मार डाला। पिता के वध से क्रुद्ध होकर परशुराम ने परशु से अर्जुन की हजार भुजाएं काट दी फिर उसकी सेना का विनाश कर डाला।इस अपराध को लेकर परशुराम ने क्षत्रियों का 21 बार पृथ्वी से नामोनिशान मिटा दिया।
तत्पश्चात ब्रह्महत्या पाप के निवारण हेतु परशुराम जी ने अश्वमेध यज्ञ किया और कश्यप मुनि को पृथ्वी का दान कर दिया। इसके साथ ही अश्व, रथ आदि नाना प्रकार के दान किए लेकिन फिर भी ब्रह्महत्या का पाप दूर नहीं हुआ। फिर वह रेवत पर्वत पर तपस्या करने चले गए, जहां उन्होंने घोर तपस्या की, फिर भी दोष दूर नहीं हुआ। तो वह हिमालय पर्वत तथा बद्रिका आश्रम गए। उसके बाद नर्मदा, चंद्रभागा, गया, कुरुक्षेत्र, नेमीवर, पुष्कर प्रयाग, केदारेश्वर आदि तीर्थों के दर्शन कर स्नान किया। फिर भी उनकी ब्रहम हत्या का दोष का निवारण नहीं हुआ।
वह अत्यंत दुखी हुए एवं उनका दृष्टिकोण नकारात्मक होने लगा।वह सोचने लगे कि शास्त्रों में जो तीर्थ, दान इत्यादि का महत्व बताया गया है वह सब मिथ्या है। तभी वहां नारद मुनि पहुंचे। परशुराम नारद मुनि से बोले मैंने पिता की आज्ञा पर माता का बध किया, क्षत्रियों का विनाश किया, जिसके फलस्वरूप मुझे ब्रहम हत्या का दोष लगा। इस दोष के निवारण के लिए मैंने किया अश्वमेध यज्ञ किया और और कई तीर्थों में स्नान किया फिर भी मेरी ब्रहम हत्या का दोष नहीं हटा। तब नारदजी बोले कि आप महाकाल वन में जाइए वहां जटेश्वर के पास दिव्य लिंग की पूजा-अर्चन करें उससे आपकी ब्रहम हत्या का दोष दूर हो जाएगा। नारद मुनि की कथनानुसार परशुराम, महाकाल वन में गए वहां शिवलिंग का पूजा-अर्चन किया उनके श्रद्धा पूर्वक किए गए पूजा अर्चना से शिव भगवान प्रसन्न हुए और उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त कर दिया।
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