विक्रम संवत : 2078 (गुजरात - 2077)
शक संवत : 1943
अयन : उत्तरायण
ऋतु : शिशिर
मास : माघ (गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार - पौष)
पक्ष - शुक्ल
तिथि - अष्टमी पूर्ण रात्रि तक
नक्षत्र - भरणी रात्रि 09:27 तक तत्पश्चात कृत्तिका
योग - शुक्ल शाम 05:06 तक तत्पश्चात ब्रह्म
राहुकाल - शाम 03:43 से शाम 05:08 तक
सूर्योदय - 07:14
सूर्यास्त - 18:31
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
व्रत पर्व विवरण - भीष्माष्टमी (भीष्म पितामह श्राद्ध दिवस), अष्टमी वृद्धि तिथि
विशेष - अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
अभीष्ट सिद्धि हेतु
भीष्माष्टमी (08 फरवरी) के दिन निम्न मंत्र से भीष्मजी को तिल, गंध, पुष्प, गंगाजल व कुश मिश्रित अर्घ्य देने से अभीष्ट सिद्ध होता है :
वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च |
अर्घ्यं ददामि भीष्माय आबालब्रह्मचारिणे ||
बुधवारी अष्टमी
09 फरवरी तक से सुबह 08:32 तक) बुधवारी अष्टमी है ।
मंत्र जप एवं शुभ संकल्प हेतु विशेष तिथि
सोमवती अमावस्या, रविवारी सप्तमी, मंगलवारी चतुर्थी, बुधवारी अष्टमी – ये चार तिथियाँ सूर्यग्रहण के बराबर कही गयी हैं।इनमें किया गया जप-ध्यान, स्नान , दान व श्राद्ध अक्षय होता है। (शिव पुराण, विद्येश्वर संहिताः अध्याय 10)
भीष्म अष्टमी
माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी कहते हैं। इस तिथि पर व्रत करने का विशेष महत्व है। इस बार यह व्रत 08 फरवरी,बुधवार को है। धर्म शास्त्रों के अनुसार,इस दिन भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने प्राण त्यागे थे।उनकी स्मृति में यह व्रत किया जाता है। इस दिन प्रत्येक हिंदू को भीष्म पितामह के निमित्त कुश,तिल व जल लेकर तर्पण करना चाहिए,चाहे उसके माता-पिता जीवित ही क्यों न हों। इस व्रत के करने से मनुष्य सुंदर और गुणवान संतान प्राप्त करता है-
माघे मासि सिताष्टम्यां सतिलं भीष्मतर्पणम्।
श्राद्धच ये नरा:कुर्युस्ते स्यु:सन्ततिभागिन:।।
(हेमाद्रि)
महाभारत के अनुसार जो मनुष्य माघ शुक्ल अष्टमी को भीष्म के निमित्त तर्पण,जलदान आदि करता है,उसके वर्षभर के पाप नष्ट हो जाते हैं-
शुक्लाष्टम्यां तु माघस्य दद्याद् भीष्माय यो जलम्।
संवत्सरकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।।
ऐसे करें भीष्म अष्टमी व्रत
भीष्म अष्टमी की सुबह स्नान आदि करने के बाद यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर स्नान करना चाहिए। यदि नदी या सरोवर पर न जा पाएं तो घर पर ही विधिपूर्वक स्नानकर भीष्म पितामह के निमित्त हाथ में तिल, जल आदि लेकर अपसव्य (जनेऊ को दाएं कंधे पर लेकर) तथा दक्षिणाभिमुख होकर निम्नलिखित मंत्रों से तर्पण करना चाहिए-
वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृत्यप्रवराय च।
गंगापुत्राय भीष्माय सर्वदा ब्रह्मचारिणे।।
भीष्म: शान्तनवो वीर: सत्यवादी जितेन्द्रिय:।
आभिरभिद्रवाप्नोतु पुत्रपौत्रोचितां क्रियाम्।।
इसके बाद पुन: सव्य (जनेऊ को बाएं कंधे पर लेकर) होकर इस मंत्र से गंगापुत्र भीष्म को अर्घ्य देना चाहिए-
वसूनामवताराय शन्तरोरात्मजाय च।
अर्घ्यंददामि भीष्माय आबालब्रह्मचारिणे।।
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