प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क, लखनऊ
भगवान महादेव ने जिस धनुष को बनाया था, उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था कि मानो भूकंप आ गया हो। यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था। इसके एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इसको देवरात को सौंप दिया गया था।
उल्लेखनीय है कि राजा दक्ष के यज्ञ में, यज्ञ का भाग शिव को नहीं देने के कारण भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो गए थे। उन्होंने सभी देवताओं को अपने पिनाक धनुष से नष्ट करने की ठान ली थी। धनुष की एक टंकार से धरती का वातावरण भयावह हो गया था। बड़ी मुश्किल से उनका क्रोध शांत कराया गया। तब उन्होंने यह धनुष देवताओं को दे दिया।
देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवरात को दे दिया। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवरात थे। शिव धनुष उनकी धरोहर स्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। इस धनुष को भगवान शंकर ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था, लेकिन भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और एक झटके में तोड़ दिया।
शिव का चक्र
शिव का चक्र छोटा लेकिन सबसे अचूक माना जाता था। सभी देवी देवताओं के पास अपने-अपने अलग-अलग चक्र होते थे। उन सभी के अलग-अलग नाम थे। शंकर जी के चक्र का नाम भवरेंदु, विष्णु जी के चक्र का नाम कांता चक्र और देवी का चक्र मृत्यु मंजरी के नाम से जाना जाता था।
सुदर्शन चक्र का नाम भगवान कृष्ण के नाम के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। प्राचीन एवं प्रमाणिक शास्त्रों के अनुसार सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के पश्चात चक्र को भगवान शिव ने श्री विष्णु को सौंप दिया था। जरूरत पड़ने पर श्री विष्णु ने माँ पार्वती को प्रदान किया। माता ने इस चक्र को परशुराम को दे दिया और भगवान कृष्ण को यह सुदर्शन चक्र परशुराम से मिला।
त्रिशूल
इस तरह भगवान शिव के पास कई अस्त्र-शस्त्र थे, लेकिन उन्होंने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र को देवताओं को सौंप दिए। उनके पास सिर्फ एक त्रिशूल ही होता था। यह बहुत ही अचूक और घातक अस्त्र था।
त्रिशूल तीन प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक और भौतिक के विनाश का सूचक है। तीन तरह की शक्तियां हैं सत, रज और तम (प्रोटान, न्यूट्रोन और इलेक्ट्रॉन)। इसके अलावा पाशुपतास्त्र भी शिव का अस्त्र है। शिव के गले में जो नाग है उसका नाम वासुकी है।
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