Politics : बदल रही कांग्रेस से मची पुराने कांग्रेसियों में भगदड़

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जनता के मुद्दों के लिए सड़कों पर उतर कर उसके बीच जाकर संघर्ष करने की जरूरत

वर्तमान समय में कांग्रेस जो लड़ाई लड़ रही है उसे कायर लोग नहीं लड़ सकते : सुप्रिया श्रीनेत्र

हाथरस में पीड़ित परिवार से मिलने के लिए पुलिस से संघर्ष करतीं प्रियंका। फाइल फोटो

राज कृष्ण पांडेय, लखनऊ


पूर्व केन्द्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता आरपीएन सिंह ने कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थामने के बाद कहा कि कांग्रेस बदल गई है। उन्होंने कहा कि 32 साल जिस पार्टी में रहा, अब वह पहले जैसी पार्टी नहीं रह गई है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर क्या बदलाव हो रहे हैं, जिससे पुराने नेता एक-एक कर पार्टी छोड़ रहे हैं। वहीं, पार्टी की ओर से कहा गया कि वर्तमान समय में कांग्रेस जो लड़ाई लड़ रही है उसे कायर लोग नहीं लड़ सकते। वतर्मान राजनीति में सड़कों पर उतर कर जनता के बीच जाकर संघर्ष करने की जरूरत है। 

लखीमपुर खीरी कांड के पीड़ित किसान परिवार से मिलने जाती प्रियंका को रोकती पुलिस। फाइल फोटो


कांग्रेस के परिवारवादी, भाजपा के खेवनहार


परिवारवाद को लेकर कांग्रेस पर लगातार घेरा जाता रहा है। भाजपा नेता इस मुद्दे पर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते रहे हैं। अब वही परिवारवादी भाजपा की चुनावी वैतरणी पार कराएंगे और खेवनहार बन रहे हैं। उसमें कई नाम हैं, जिन्हें खुद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने शामिल कराया है। उसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह हैं। इन सबके पिता कांग्रेस में न केवल मंत्री रहे बल्कि उनकी संगठन में मजबूत पकड़ रही। इन राजनेता पुत्रों को मंत्री पद व संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बगैर संघर्ष के मिल गई। 



जमीनी संघर्ष करने वालों को तवज्जो


सत्ता से बाहर होने के बाद चिंतन मनन के बाद समय की मांग के हिसाब से कांग्रेस में बदलाव शुरू किए गए हैं। दो वर्षों से पार्टी के अंदर हो रहे बदलाव से इन नेताओं को कांग्रेस में बेचैनी महसूस होने लगी, जो कहीं न कहीं जमीनी संघर्ष से अभी तक बचते रहे। इसके उलट उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने अपनी पहचान सड़क पर संघर्ष करके बनाई है। इसी तरह छात्रसंघ आंदोलन से निकले कन्हैया कुमार भी हैं, जिन्हें कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए स्टार प्रचारक बनाया है। पंजाब चुनाव के बाद वहां के पहले दलित मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी को भी उत्तर प्रदेश में सघन जनसम्पर्क उतारने की तैयारी है। चन्नी के माध्यम से कांग्रेस दलितों को यह संदेश देना का प्रयास करेगी कि कांग्रेस में ही उनका सम्मान है।



बदलाव के पीछे प्रियंका


लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश में पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी को सौंपी है। दो वर्षों में जमीनी संघर्ष और आंदोलनों से जुड़े लोगों को पार्टी में शामिल कराने के साथ प्रियंका ने अपना ध्यान कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण पर केंद्रित किया है। हर महीने कार्यकताओं को जनता के बीच जाने के कार्यक्रम तक देने शुरू कर दिए, जिसमें उन्हें वरिष्ठ नेताओं का सहयोग नहीं मिला। इन प्रयासों और कार्यक्रमों का नतीजा रहा कि कांग्रेस को प्रदेश में दूसरे राजनैतिक दल गंभीरता से लेने लगे। 

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी। फाइल फोटो

मजबूत विपक्ष बन कर उभरी कांग्रेस


लखीमपुर में किसानों के कुचलने की घटना के बाद जिस तेजी के साथ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने किसानों की आवाज उठायी और उनसे मिलने के लिए लखनऊ से सीतापुर तक पहुंच गईं। बाद में पुलिस को उन्हें अस्थायी जेल में रखना पड़ा। उनके संघर्ष को देखते हुए मजबूत विपक्ष के तौैर पर पार्टी को लिया जाने लगा। चुनाव से पहले जिस तरह जाति के बजाय कांग्रेस ने महिला सशक्तीकरण को मुद्दा बनाकर नई तरह की राजनीति शुरू की है, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि अब पार्टी जनसरोकार से जुड़े मुद्दों पर ही आगे भी संघर्ष करेगी।

प्रियंका गांधी के निजी सचिव संदीप सिंह।


निशाने पर प्रियंका के निजी सचिव संदीप सिंह


कांग्रेस में बदलाव को लेकर सबसे ज्यादा निशाने पर प्रियंका गांधी के निजी सचिव संदीप सिंह हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष संदीप सिंह पहले राहुल गांधी के राजनैतिक सलाहकार के रूप में पार्टी से जुड़े। जब प्रियंका गांधी को उत्तर का प्रभार सौंपा गया तो संदीप सिंह को उनका निजी सचिव बनाया गया। उसके बाद से संदीप सिंह चर्चा में हैं। पार्टी के पुराने नेता उनकी कार्यशैली पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। 


वरिष्ठ नेता पार्टी की बदहाली के भी जिम्मेदार


वहीं, संदीप सिंह के साथियों का कहना है कि सवाल उठाने वाले वही हैं जो पार्टी के कार्यक्रमों में भी शामिल नहीं होते हैं। यही लोग पार्टी को अपनी निजी संपत्ति समझते रहे हैैं। तीन दशकों में पार्टी की बदहाली के लिए संदीप सिंह जिम्मेदार तो नहीं हैं बल्कि उनके आने के बाद से पार्टी जमीनी स्तर तक हर ज्वलंत मुद्दों पर संघर्ष करती नजर आ रही है। इसका प्रमाण बीते दिनों प्रियंका गांधी की वाराणसी और गोरखपुर की रैली में उमड़ी भीड़ है। बूथ स्तर तक किये जा रहे मैनेजमेंट के भरोसे ही पार्टी जाने वाले नेताओं को मनाने के बजाय हमलावर है।

कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत।

लड़ाई आसान नहीं


वरिष्ठ कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह के मंगलवार को भाजपा में शामिल होने पर कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जिस लड़ाई को कांग्रेस लड़ रही है, यह एक मुश्किल लड़ाई है। कोई व्यक्ति कांग्रेस में रहकर बिल्कुल विपरीत विचारधारा वाली पार्टी में कैसे जा सकता है। शायद इसी को प्रियंका जी कायरता कहती हैं, कांग्रेस के सिपाहियों के आगे बड़ी लड़ाई है। कांग्रेस यह लड़ाई लड़ती आई है और आगे भी बढ़ेगी।


युुवा संसद के जरिये युवाओं से बनाएंगे जुड़ाव 


महिलाओं और लड़कियों के बाद अब युवाओं को पार्टी से जोड़ने के लिए भर्ती विधान युवा घोषणा पत्र लाया गया है। चुनाव आयोग की नई गाइडलाइन आने के बाद विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी युवाओं के बीच जागरूकता के लिए युवा संसद (टाउन हॉल मीटिंग) का आयोजन कर रही है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी महासचिव (संगठन) दिनेश कुमार सिंह ने बताया कि युवा संसद (टाउन हॉल मीटिंग) के जरिए युवाओं तक अपनी बात पहुंचाने का प्रयास कर रही है। इस कड़ी में युवा संसद 28 जनवरी को आगरा में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, 29 जनवरी को प्रयागराज में हार्दिक पटेल, 30 जनवरी को वाराणसी में हार्दिक पटेल, 31 जनवरी को मेरठ में अलका लांबा, 1 जनवरी को लखनऊ में कन्हैया कुमार और 3 फरवरी को कानपुर में इमरान प्रतापगढ़ी युवाओं के लिए जारी प्रतीज्ञा पत्र, युवा विधान के अलावा शिक्षा और रोजगार पर युवाओं के बीच चर्चा करेंगे। इन जगहों पर आयोजित कार्यक्रमों में युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास और एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीरज कुंदन भी शिरकत करेंगे।

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