Mythological story:भगवान शिव का तीसरा नेत्र भी रहा विफल

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 समुद्र मंथन से श्री सुरभि गाय का प्राकट्य 
   
प्रारब्ध ब्यूरो लखनऊ- अध्यात्म

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक कथा यह भी आती है कि जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया तो उसमें गौ माता भी निकली थी। गौ माता के शरीर में समस्त देवी- देवताओं एवं तीर्थों का निवास था।

देवताओं ने गौ माता का अभिषेक किया और श्री सुरभि गाय के रोम रोम से असंख्य बछड़े एवं गाऐं उत्पन्न हुई। उनका वर्ण श्वेत था।वे गौ माताऐं एवं बछड़े विविध दिशाओं में विचरण करने लगे।


एक समय सुरभि का बछड़ा मां का दूध पी रहा था। गौ माता एवं बछड़ा उस समय कैलाश पर्वत के ऊपर आकाश में थे। भगवान शिव ने उस समय समुद्र मंथन से उत्पन्न हलाहल विष का पान किया था। अतः उनके शरीर का तापमान बढ़ने से भगवान शिव, श्रीराम नाम के जाप में लीन थे।


गौ के बछड़े के मुख से दूध का झाग उड़कर भगवान शंकर जी के मस्तक पर जा गिरा। इससे महादेव बाबा क्रोधित हो गए। यद्यपि भगवान शिव, गौ माता की महिमा को जानते थे, परंतु गायों का महात्म्य प्रकट करने के लिए उन्होंने कुछ लीला करने करने हेतु क्रोध किया।


बाबा महादेव बोले, यह कौन पशु हैं, जिन्होंने हमें अपवित्र किया। शंकर भगवान ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया परंतु गौ माताओं को कुछ नहीं हुआ। शंकर भगवान की दृष्टि अमोघ है अतः कुछ परिणाम तो अवश्य होगा इसलिए गौ माता शिवजी की दृष्टि से अलग-अलग रंगों में परिवर्तित हो गईं। तब प्रजापति ब्रह्मा ने उनसे कहा- प्रभु आपके मस्तक पर यह अमृत का छींटा पड़ा है।


बछड़ों के पीने से गाय का दूध जूठा नहीं होता है, जैसे अमृत का संग्रह करके चंद्रमा उसे बरसा देता है वैसे ही रोहिणी गौऐं, अमृत से उत्पन्न दूध को बरसाती हैं जैसे वायु, अग्नि, सुवर्ण, समुद्र और देवताओं का पिया हुआ अमृत कोई जूठे नहीं होते वैसे ही बछड़ों को दूध पिलाती हुई गाऐं, दूषित नहीं होती।


यह गाय अपने दूध और घी से समस्त जगत का पोषण करेंगी। सभी लोग इन गोओं के अमृतमय पवित्र दूध रूपी ऐश्वर्य की इच्छा करते हैं। इतना कहकर सुरभि एवं प्रजापति ने श्री महादेव जी को कई गौऐं और एक वृषभ दिया। तब शिवजी ने भी प्रसन्न होकर वृषभ को अपना वाहन बनाया और अपनी ध्वजा को उसी वृषभ के चिन्ह से सुशोभित किया। इसी से उनका नाम वृषभध्वज पड़ा।


फिर देवताओं ने महादेव जी को पशुओं का स्वामी (पशुपति) बना दिया और गौओं के बीच में उनका नाम वृषभांक रखा गया।गौ को सर्वोच्च पशु माना गया है। गौऐं, सारे जगत को जीवन देने वाली हैं। भगवान शंकर सदा उनके साथ रहते हैं। वे चंद्रमा से निकले हुए अमृत से उत्पन्न शान्त, पवित्र, समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली और समस्त प्राणियों के प्राणों की रक्षा करने वाली हैं।

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