कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने 125 प्रत्याशियों की पहली सूची की घोषणा
प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो, लखनऊ
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने लखनऊ में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में नई राजनीति की शुरुआत कर रही है। उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची जारी करते हुए कहा कि पार्टी प्रदेश में 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को दे रही है।
उन्होंने कहा कि हमारे प्रत्याशी नया विकल्प देने वाले प्रत्याशी होंगे। संघर्ष करने वाले प्रत्याशी, उत्तरप्रदेश को आगे बढ़ाने की सोच रखने वाले प्रत्याशी और उत्तरप्रदेश की जीत सुनिश्चित करने वाले प्रत्याशी होंगे। नई ऊर्जा, युवा ऊर्जा, महिला सशक्तीकरण, सामाजिक न्याय की बुलंद आवाज़ के प्रतीक भी होंगे।
उन्नाव की उस लड़की की माँ हमारी प्रत्याशी हैं जिसने सत्ताधारी दल के बलात्कारी विधायक के ख़िलाफ़ न्याय का संघर्ष किया है।
शाहजहाँपुर की वो आशा बहन हमारी प्रत्याशी है जो मुख्यमंत्री की सभा में अपना हक़ माँगने पहुँची तो उसको पीट-पीट कर उसका हाथ तोड़ दिया गया, लेकिन उनकी आवाज़ नहीं दबा सके।
लखीमपुर की वो जनप्रतिनिधि हमारी प्रत्याशी हैं, जिसने भाजपा के ख़िलाफ़ ब्लॉक प्रमुख का चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटाई तो भाजपा वालों ने उसका चीरहरण किया, लेकिन उसका मनोबल नहीं गिरा पाए।
लखनऊ की वो महिला हमारी प्रत्याशी हैं, जिनको नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध दर्ज कराने के चलते प्रताड़ित किया गया, लेकिन वो फिर भी सच्चाई के साथ डटी रहीं।
सोनभद्र का वो आदिवासी भाई हमारे प्रत्याशी हैं जिनके आदिवासी भाई-बहनों का दबंगों ने नरसंहार किया। सत्ता ने उनके साथ न्याय नहीं किया लेकिन उन्होंने न्याय व संघर्ष का पथ नहीं छोड़ा।
आप इन आवाज़ों को देखिए। ये यूपी की आवाज़ें हैं। यूपी के असल मुद्दों पर संघर्ष करने वाली आवाज़ें हैं।
प्रियंका गांधी ने कहा कि हमारी पार्टी की लिस्ट में 40 प्रतिशत महिलाएँ (125 में से 50 महिलाओं को टिकट) हैं।
युवाओं को 40 प्रतिशत टिकट (125 में से 45 युवा) दिया गया है।
प्रत्याशियों की संघर्ष की कहानियाँ
1. आशा सिंह, उन्नाव
उन्नाव जिले में अपनी बेटी के बलात्कार के बाद सत्ताधारी भाजपा के विधायक के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी। उनके पति की हत्या तक कर दी गई।
2. रितु सिंह, लखीमपुर-खीरी
लखीमपुर-खीरी में ब्लॉक प्रमुख चुनावों में भाजपा की हिंसा का शिकार हुईं। रितु सिंह को कैसे चुनाव लड़ने से रोका गया। उनके कपड़े फाड़े गए।
3. रामराज गोंड, सोनभद्र
सोनभद्र जिले के उम्भा में दबंगों द्वारा आदिवासियों का नरसंहार पूरे देश ने देखा है। योगी सरकार ने न्याय देने के लिए कुछ नहीं किया। आदिवासियों के संघर्ष की मज़बूत आवाज़ बनकर उभरे हैं।
4. पूनम पांडेय, शाहजहांपुर
आशा बहनों ने कोरोना के समय उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की जान थीं। उन्होंने अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना लगकर अपनी ड्यूटी दी। जब आशा बहनें मुख्यमंत्री की शाहजहाँपुर में हुई सभा में अपना मानदेय बढ़ाने की माँग लेकर पहुँची। उसमें पूनम पांडेय समेत सभी आशा बहनों को निर्ममता से पीटा गया। पूनम पांडेय न्याय की वो आवाज़ हैं, जिन्होंने सम्मानजनक मानदेय की लड़ाई छोड़ी नहीं। वह पूरे प्रदेश की आशा बहनों की आवाज़ हैं।
5. सदफ जफ़र, लखनऊ
नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों के दौरान सदफ पर झूठे मुक़दमे लगाए गए। प्रदर्शन के दौरान पुरुष पुलिस ने उन्हें पीटा और अभद्रता भी की। उन्हें बच्चों से अलग करके जेल में डाल दिया गया। फिर भी सदफ के बुलंद इरादे डिगा नहीं सके। सदफ सच्चाई के साथ चट्टान की तरह डटी रहीं।
6. अल्पना निषाद, प्रयागराज
नदियाँ निषादों की जीवनरेखा हैं। नदियों और उनके संसाधन पर निषादों का हक़ होता है। प्रयागराज के बसवार में बड़े खनन मफ़ियाओं के दबाव के चलते निषादों को नदियों से बालू निकालने के लिए भाजपा सरकार की पुलिस ने पीटा।निषादों की नावें जलाई गईं।अल्पना निषाद निषादों के हक़ों के संघर्ष की आवाज़ बनीं।
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