प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क, लखनऊ
जब-जब पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ा और धर्म की हानि होनी शुरू हुई। ईश्वर ने किसी न किसी रूप में पृथ्वी पर अवतार लेकर पाप का संहार करके धर्म की रक्षा की है। इन्हीं प्रकरणों में से एक भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार धारण करने की कथा भी है।
किंवदंती है कि हयग्रीव नामका एक पराक्रमी दैत्य हुआ है। उसने नदी के तट पर भगवती महामाया को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। बहुत दिनों तक बिना कुछ खाए पिए भगवती के मायाबीज एकाक्षर महामंत्र का जाप करता रहा। उसकी इंद्रियां उसके वश में हो चुकी थीं। उसने सभी भोगों का त्याग कर दिया था।
उसकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवती महामाया ले ने उसे तामसी शक्ति के रूप में दर्शन दिया। मां ने कहा वत्स, तुम्हारी तपस्या सफल हुई, मैं तुमसे प्रसन्न हूँ। तुम्हारी जो भी इच्छा हो, मैं उसे पूर्ण करने के लिए तैयार हूँ, वत्स वर मांगो!
भगवती की दया और प्रेम से ओतप्रोत वाणी सुनकर हयग्रीव की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। उसके नेत्र आनंद के अश्रुओं से भर गए। उसने भगवती की स्तुति करते हुए कहा, कल्याणमयी देवी आपको नमस्कार है। आप महामाया हैं, सृष्टि को पालन और संहार करना आप का स्वाभाविक गुण है। आपकी कृपा से कुछ भी असंभव नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो मुझे अमर होने का वरदान देने की कृपा करें।
देवी ने कहा- दैत्यराज! प्रकृति का विधान है कि जो इस संसार में जन्म लेता है की मृत्यु निश्चित है। किसी का सदा के लिए अमर होना असंभव है। अमरत्व प्राप्त देवताओं को भी पुण्य समाप्त होने पर मृत्युलोक में जाना पड़ता है। अत: तुम अमरत्व के अतिरिक्त कोई और वर मांगों।
तब हयग्रीव बोला, अगर ऐसा है तो मेरी मृत्यु हयग्रीव के हाथों से ही हो, दूसरा कोई मुझे मार ना सके। यह मेरे मन की यही अभिलाषा है। आप उसे पूर्ण करने की कृपा करें। ऐसा ही हो! यह कहकर भगवती अंतर्ध्यान हो गईं। हयग्रीव आनंद का अनुभव करते हुए अपने घर को चला गया। वह देवी के वरदान के प्रभाव से अजेय हो गया।
हयग्रीव का उत्पात बढ़ने लगा। त्रिलोकी में कोई ऐसा नहीं था जो उसको मार सकता। उसने ब्रह्मा जी के वेदों को छीन लिया और देवताओं और मुनियों को सताने लगा। यज्ञादि कर्म बंद हो गए। सृष्टि की व्यवस्था बिगड़ने लगी। इससे परेशान होकर सभी देवता ब्रह्मा जी के साथ, भगवान विष्णु के पास गए। वह योग निद्रा में निमग्न थे। उनके धनुष की डोरी चढ़ी हुई थी।
ब्रह्मा जी ने उनको जगाने के लिए वर्मी नामक एक कीड़ा उत्पन्न किया। ब्रह्मा जी की प्रेरणा से उसने धनुष की प्रत्यंचा काट दी, उस समय एक बड़ा भयंकर शब्द उत्पन्न हुआ और भगवान विष्णु का मस्तक कटकर अदृश्य हो गया। भगवान विष्णु के सिर रहित धड़ को देखकर देवताओं के दुःख की सीमा न रही। सभी देवताओं ने भगवती की स्तुति की।
अपनी स्तुति से भगवती प्रकट हुईं, उन्होंने देवताओं से कहा, चिन्ता मत करो, ब्रह्मा जी एक घोड़े का मस्तक काट कर भगवान विष्णु के धड़ से जोड़ दें। इससे भगवान का हयग्रीव अवतार होगा, ऐसा कहकर देवी अन्तर्धान हो गईं। भगवती के कथनानुसार, ब्रह्मा जी ने किया।इस प्रकार भगवान विष्णु का हयग्रीव अवतार हुआ।
भगवान हयग्रीव अवतार का हयग्रीव दैत्य से भीषण युद्ध हुआ। अन्त में भगवान् के हाथों हयग्रीव की मृत्यु हुई। दैत्यराज को मारने के पश्चात, भगवान ने वेदों को ब्रह्मा जी को वापस कर दिया। इसके साथ ही देवताओं, मुनियों को असुर के कष्ट से मुक्ति प्रदान की।
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