बाल गणेश की अद्भुत लीला और माता पार्वती का प्रसंग
प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क, लखनऊ
पुराणों में भगवान गणेशजी के बालपन की एक कथा प्रचलित है। एक बार अपने मित्र मुनि पुत्रों के साथ खेल रहे थे।खेलते-खेलते उन्हें बहुत जोर की भूख लगी, पास में ही ऋषि गौतम का आश्रम था। वह ऋषि गौतम के आश्रम पहुँच गए।गौतम ऋषि ध्यान में थे और उनकी पत्नी अहिल्या रसोई में भोजन बनाने में व्यस्त थीं। माता अहिल्या का जैसे ही ध्यान बंटा, सारा भोजन चुराकर ले गए और मित्रों के साथ खाने लगे।
तब माता अहिल्या ने गौतम ऋषि का ध्यान भंग किया और बताया कि रसोई से सारा भोजन गायब हो गया है। गौतम ऋषि ने जंगल में जाकर देखा तो गणेशजी अपने मित्रों के साथ भोजन कर रहे थे। गौतम ऋषि, उन्हें पकड़कर माता पार्वती के पास ले गए। माता पार्वती ने चोरी की बात सुनी गणेश को एक कुटिया में ले जाकर बांध दिया।
उन्हें बांधकर माता पार्वती कुटिया से बाहर आईं तो उन्हें आभास हुआ जैसे गणेश जी उनके गोद में हैं लेकिन जब अंदर जाकर देखा तो गणेश जी बंधे हुए थे। माता पार्वती फिर काम में लग गई थोड़ी देर में उन्हें फिर आभास होने लगा कि वह शिवगणों के साथ खेल रहे हैं। पुनः वह कुटिया में गईं तो गणेश जी को वहीं बंधा देखा।
अब मां पार्वती को गणेश जी हर जगह दिखाई देने लगे। गणेश जी कभी खेलते हुए, कभी भोजन करते हुए और कभी रोते हुए माताजी को हर जगह दिखाई देने लगे। जब माता पार्वती कुटिया में गई तो देखा गणेश जी आम बच्चों की तरह रो रहे हैं थे। वह रस्सी से छूटने का प्रयास कर रहे थे। माता को उन पर अत्यधिक स्नेह आया और दयावश उन्हें मुक्त कर दिया।
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