Nationalized Bank : बैंकों के निजीकरण के विरोध में कोलकाता से नई दिल्ली तक बैंक बचाओ, देश बचाओ रैली के समर्थन में यात्रा एवं धरना प्रदर्शन

0

बैंक बचाओ-देश बचाओ आंदोलन में ऑयबाक द्वारा आमसभा का आयोजन



प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो, लखनऊ


बैंकों के निजीकरण के विरूद्ध ऑल इंडिया बैंक ऑफीसर्स कन्फेडरेशन (ऑयबाक) द्वारा बंधन होटल में आमसभा का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में बैंक अधिकारियों समेत समाज के विभिन्न वर्गों के लोग शामिल हुए। भारत सरकार के शीतकालीन सत्र में प्रस्तावित बैंकों के निजीकरण बिल के विरोध में देश के विभिन्न हिस्सों में भारत-यात्रा 24 नवम्बर को कोलकाता से शुरू हुई, जो 30 नवम्बर को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर बैंक बचाओ, देश बचाओ रैली के रूप में संपन्न होगी।




बैंक ऑफ इंडिया ऑफिसर्स एसोसिएशन के प्रदेश महासचिव सौरभ श्रीवास्तव ने आमसभा का संचालन करते हुए कहा कि बैंक निजीकरण से बैंक जमा की सुरक्षा कमजोर होगी, भारत में जमाकर्ता की कुल बचत, जो कि 87.6 लाख करोड़ (मार्च 2021) रुपये है का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा 60.7 लाख करोड़ रुपये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के पास है, जो कि अपनी जमा के लिए सरकारी बैंकों को प्राथमिकता देते हैं।



आयबॉक के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पवन कुमार ने बताया कि बैंकों के निजीकरण से किसानों, छोटे व्यवसाइयों और कमजोर वर्गों के लिए ऋण उपलब्धता कम होगी। प्राथमिकता क्षेत्र का 60 प्रतिशत ऋण जो कि गांव, गरीब, सीमान्त किसान, गैर कार्पोरेट उद्यमियों, व्यक्तिगत किसान, सूक्ष्म उद्यम, स्वयं सहायता समूह तथा एससी/एसटी, कमजोर और अल्पसंख्यक वर्ग की 12 सरकारी बैंकों और उनके 43 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक द्वारा प्रदान किया जाता है।



आयबॉक के राष्ट्रीय महासचिव सौम्या दत्ता, जो मुख्य वक्ता थे ने बताया आजादी के बाद सन् 1947 से 1955 के बीच 361 बैंक बंद हुए, जिससे जमाकर्ताओं की पूँजी डूब गई। लोगों का बैंकिंग सिस्टम से भरोसा उठने लगा, फिर वर्ष 1969 में 14 तथा 1980 में 6 वाणिज्यिक बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया गया, जिससे भारत में सरकारी बैंकों का भरोसा बढ़ा। बैंकों के निजीकरण से बैंक विफलताओं की समस्या फिर से सामने आएगी। वर्ष 2004 में ग्लोबल ट्रस्ट बैंक तथा 2020 में यस बैंक, लक्ष्मी विलास बैंक एवं पीएमसी बैंक का हश्र आपके सामने है, सार्वजनिक क्षेत्र का एक भी बैंक विफल नहीं रहा है।


सामाजिक अर्थशास्त्री मनीष हिन्दवी ने कहा कि बैंक निजीकरण का अर्थ बैंकों को कार्पोरेट हाथों में सौंपने से है जो स्वयं बैंक ऋण को नहीं चुका पा रहे हैं। निजी बैंकों में फ्रॉड और एनपीए के बढ़ते मामले यह बताने को काफी है कि बैंकों के निजीकरण से जनता का पैसा पूंजीपति हड़प लेंगे। निजीकरण से सिर्फ और सिर्फ पूँजीवाद को ही बढ़ावा मिलने वाला है।


बैठक में विजय कुमार बंधू ने कहा कि बैंक निजीकरण से रोजगार घटेगा, जिससे कमजोर वर्ग प्रभावित होंगे। बैंकों के विलय से शाखाएं बंद हुई तथा कर्मचारियों की छटनी से सरकारी बैंककर्मियों की संख्या 8.44 लाख से 7.70 लाख हो गई।


इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण अर्थव्यवस्था के लिए प्रतिकूल कदम है। बैंकों का निजीकरण सरकार के रणनीतिक विनिवेश का हिस्सा है, जिसके तहत आर्थिक उदारीकरण के नाम पर लगभग 5.30 लाख करोड़ का हिस्सा सरकार बेच चुकी है।  सभा को भोलेंद्र प्रताप सिंह (आर्यावर्त बैंक), लक्ष्मण सिंह (यूनियन बैंक), शेषधर राव (सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया), आर.के. वर्मा (केनरा बैंक), अमरपाल सिंह (पंजाब नेशनल बैंक), मीडिया प्रभारी अनिल तिवारी ने भी सम्बोधित किया।

 

अंत में जनता से अपील की गई कि भारत के सरकारी बैंक और सार्वजनिक क्षेत्र जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है को बेचने के विरूद्ध सशक्त आवाज उठाने में हमारी सहायता करें। सार्वजनिक बैंकों के लाखों छोटे जमाकर्ता, किसान, छोटे एवं मझौले उद्योग, स्वयं सहायता समूह और छोटे कर्जदारों, राजनैतिक दलों और श्रम संगठनों से अनुरोध है कि हमारे आंदोलन में शामिल हो, जिससे कि वर्षों की जमा पूंजी और जनता की गाढ़ी कमाई को बर्बाद होने से रोका जा सके।

Post a Comment

0 Comments

if you have any doubt,pl let me know

Post a Comment (0)
To Top