बाबा नागेश्वर नाथ मंदिर अयोध्या की पहचान के रूप में जाने जाते हैं।इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार राजा विक्रमादित्य ने किया था, जिन्होंने इस प्राचीन पौराणिक नगरी को बसाया था।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज भी बाबा नागेश्वरनाथ अयोध्या की पहचान हैं।देश के प्रत्येक कोने से आने वाले श्रद्धालु के लिए यह आस्था और श्रद्धा का केन्द्र है।
भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर अयोध्या में स्थित होने के कारण इसका महत्व और भी अधिक हो गया है। सावन के महीने में इस प्राचीन मंदिर में भगवान शिव का वंदन और पूजन करने से जन्म जन्मांतर के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है, और मनुष्य को पुण्य की प्राप्ति होती है।
श्री राम की नगरी अयोध्या में सरयू तट के किनारे स्थापित भगवान शिव का दर्शन और पूजन करने से पुण्य अर्जित करना है तो सावन के महीने में नागेश्वर नाथ के दर्शन और पूजन करना चाहिए। सावन महीने में सच्ची श्रद्धा और निष्कपट भाव से नागेश्ववर नाथ के दर्शन मात्र से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
नागेश्वर नाथ मंदिर की स्थापना
नागेश्वर नथ मंदिर की स्थापना महाराजा कुश ने की थी। शिव पुराण के अनुसार एक बार नौका विहार करते समय उनके हाथ का कंगन पवित्र सरयू नदी में गिर गया जो समुद्र में निवास करने वाले कुमुद नाग की पुत्री को मिल गया।
इस कंगन को वापस लेने के लिए राजा कुश तथा नाग कुमुद के बीच घोर संग्राम हुआ। जब नाग को यह लगा कि वह पराजित हो जाएगा तो उसने भगवान शिव का ध्यान किया। भगवान शिव ने स्वयं प्रकट होकर इस युद्ध को रुकवाया।नाग कुमुद ने कंगन देने के साथ भगवान शिव से अनुरोध किया कि उसकी पुत्री कुमुदनी का विवाह कुश के साथ करा दें।
भगवान शिव से यह भी अनुरोध किया कि वह स्वयं सर्वदा यहीं वास करें। भगवान शिव ने उनकी इस यात्रा को स्वीकार कर लिया। नागों के ध्यान करने पर भगवान शिव प्रकट हुए थे, जिसके कारण इसका नाम नागेश्वरनाथ के नाम से जाना जाता है। इसके बाद राजा कुश ने नागेश्वर नाथ मंदिर की स्थापना की, जो आज भी पूरे देश में रहने वालों शिव भक्तों की आस्था का केंद्र है।
अंग्रेजों द्वारा भी नागेश्वर नाथ मंदिर को दिव्य बताया
अयोध्या की राम की पैड़ी क्षेत्र में स्थित प्राचीन नागेश्वर नाथ मंदिर की महिमा अपरंपार है। इसकी महिमा का बखान न केवल हिंदू भक्तों ने बल्कि अंग्रेजों ने भी किया है।अंग्रेजी विद्वान विंसेंट स्मिथ ने लिखा कि 27 आक्रमणों के झेलने के बावजूद मंदिर अपनी अखंडता को बनाए रखे हुए है। हैमिल्टन ने लिखा है कि पूरे विश्व में इसके समान दिव्य और पवित्र स्थान दूसरा कोई नहीं है।
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