Festival of India:मां शैलपुत्री की की प्रथम पूजा- मनोकामना पूर्ण

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प्रारब्ध न्यूज़- अध्यात्म डेस्क

शारदीय नवरात्रि में का बहुत महात्म है। मां दुर्गा के नौ रूपों में से पहला रूप शैलपुत्री का है। नवरात्रि के पहले दिन घट की स्थापना के साथ इस रूप की पूजा की जाती है। मां का यह रूप सौम्य और भक्तों को प्रसन्नता देने वाला है।


ऐसी मान्यता है देवी पार्वती पूर्व जन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थी।दक्ष ने जब भगवान महादेव को यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया तो उनके अपमान को देखकर, माता सती बहुत क्रुद्ध हो गईं और दक्ष के यज्ञ कुंड में जलकर अपने प्राण त्याग दिए। महादेव से पुनः मिलन के लिए उन्होंने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण यह हेमवती और उमा के नाम से जानी जाती है। पर्वत को शैल भी कहा जाता है इसलिए माता का प्रथम रूप शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है।


मान्यता है कि देवी पार्वती ने अपने पूर्व जन्म के पति को भगवान शिव को पुनः पाने के लिए वर्षों कठोर तप किया। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया। विवाह के पश्चात देवी पार्वती अपने पति भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई।


इसके बाद मां पार्वती हर साल नवरात्र के नौ दिनों में पृथ्वी पर माता पिता से मिलने अपने मायके आने लगी। संपूर्ण पृथ्वी माता का मायका माना जाता है।


नवरात्रि के पहले दिन पर्वतराज हिमालय अपनी पुत्री का स्वागत करने के लिए उनकी पूजा करते हैं। इसलिए नवरात्रि का पहला दिन, मां के शैलपुत्री के रूप में पूजा की जाती है। पर्वती का वाहन बैल है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल है। साथ ही इन्हें समस्त वन्य जीव- जंतुओं की रक्षक माना जाता है। दुर्गम स्थलों पर स्थित बस्तियों में सबसे पहले शैलपुत्री के मंदिर की स्थापना की जाती है, जिससे कि वह स्थान सुरक्षित रह सके।

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