Dharm:भारत के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के रहस्य

0
प्रारब्ध न्यूज़- अध्यात्म

प्राचीन काल में राजा-महाराजा मंदिर का निर्माण कराते वक्त वास्तु एवं खगोल विज्ञान का पूर्ण ध्यान रखते थे।मंदिर का निर्माण, भक्ति भावना के साथ खजाने को छुपाने के लिए करते थे और खजाने तक पँहुचने के लिए अलग से रास्ते बनाते थे।

भारत में कुछ ऐसे मंदिर भी है जिनका संबंध ना तो वास्तु से हैं ना खगोल विज्ञान से और ना ही खजाने को छुपाने से संबंधित है। इन मंदिरों का रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया है।

इनमें से कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के बारें में जानकर हैरानी होगी।उनका रहस्य अभी तक पता नहीं लग पाया है। 

मानसरोवर, कैलाश पर्वत 


हिमालय पर्वत की उच्चतम संखला में मानसरोवर एक बहुत पवित्र स्थान है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां भगवान महादेव स्वयं विराजमान हैं। दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित कैलाश, मानसरोवर के पास है और आगे मेरु पर्वत स्थित है। यह संपूर्ण क्षेत्र शिवलोक कहा गया है। इसके चमत्कार वेदों और पुराणों में भी वर्णित है।

कैलाश पर्वत हिमालय के उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। तिब्बत चीन के अधीन है, अतः कैलाश चीन में आता है। यह चार धर्म- तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिंदू का आध्यात्मिक केंद्र है। कैलाश पर्वत की चार दिशाओं में चार नदियों का उद्गम हुआ है- ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलुज, व करनाली।

कामाख्या मंदिर


माताजी के इक्यावन शक्तिपीठों में से इस पीठ का महत्वपूर्ण स्थान माना गया है। कामाख्या मंदिर को तांत्रिकों का गढ़ कहा गया है। यह असम राज्य के गुवाहाटी में स्थित है। यहां त्रिपुरसुंदरी, मतांगी और कमला की प्रतिमा मुख्य रूप से स्थापित हैं। दूसरी और सात अन्य रूपों की प्रतिमा अलग-अलग मंदिरों में स्थापित की गई हैं, जो मुख्य मंदिर को घेरे हुए हैं।

पौराणिक मान्यता है इस साल में एक बार अंबुवाची पर्व के दौरान मां भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भग्रह स्थिति महामुद्रा (योनि तीर्थ) से निरंतर तीन दिन तक जल प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। यह मंदिर चमत्कार और रहस्यों के बारे में काफी चर्चित है। हजारों ऐसे किस्से हैं, जिससे इस मंदिर के चमत्कारिक और रहस्यमय होने का पता चलता है।

ज्वाला देवी मंदिर


ज्वाला देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा घाटी के दक्षिण में 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मां सती के इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ माता की जीभ गिरी थी। हजारों वर्षों से यहां स्थित देवी के मुख से अग्नि निकल रही है। इस मंदिर की खोज पांडवों ने की थी।

हजारों साल पुराने इस मंदिर में अग्नि की अलग-अलग 9 ज्वाला प्रज्वलित हैं जो अलग-अलग देवियों को समर्पित है जो महाकाली, महालक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा, चंडी, विंध्यवासिनी, हिंगलाज भवानी, अंबिका और अंजना देवी की ही स्वर स्वरूप है।

कहते हैं सतयुग में मां काली के परम भक्त राजा भूमिचंद ने स्वप्न से प्रेरित होकर यह भव्य मंदिर बनवाया था। जो भी सच्चे मन से इस रहस्यमयी मदिर के दर्शन के लिए आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार यह मृत ज्वालामुखी की अग्नि हो सकती है।इस जगह का एक अन्य आकर्षण तांबे का पाइप भी है जिसमें से प्राकृतिक गैस का प्रवाह होता है।

करनी माता का मंदिर

इन रहस्यमय मंदिरों में से एक मंदिर करणी माता जी का है। जो कि बीकानेर (राजस्थान) में स्थित है। यह एक अनोखा मंदिर है। इस मंदिर में काले चूहे हजारों की संख्या में रहते हैं। लाखों की संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामना पूर्ण करने आते हैं। करणी माता को माँ दुर्गा का अवतार माना जाता है। इस मंदिर को "चूहों" वाला मंदिर भी कहा जाता है।

यहां चूहों को काबा कहते हैं और इन्हें बकाया था भोजन कराया जाता है कराने के साथ इनकी सुरक्षा भी की जाती है यहां इतने चूहे हैं कि मंदिर में पैरों को ऐसा कर चलना पड़ता है एक भी चूहा आपके पैरों के नीचे आ जाता है तो उसे अपन माना जाता है कहा जाता है एक भी सुहाग चूहा आपके पैर के ऊपर से कर पोकर गुजर जाता है तो आप पर देवी की कृपा हो जाती है और अगर सफेद चूहा देख लिया तो मनोकामना पूर्ण होती है

यहां चूहों को काबा कहते हैं। इन्हें बाकायदा भोजन कराया जाता है और इनकी सुरक्षा की जाती है। यहां इतने चूहे हैं कि आपको पांव घिसटकर चलना पड़ता है। एक चूहा भी अगर आपके पैरों के नीचे आ गया तो अपशकुन माना जाता है। कहा जाता है कि एक चूहा भी आपके पैर के ऊपर से होकर गुजर गया तो समझो आप पर देवी की कृपा हो गई और यदि आपने सफेद चूहा देख लिया तो आपकी मनोकामना पूर्ण हुई समझो।

शनि शिंगनापुर

देश के सूर्यपुत्र शनिदेव के मंदिरों में से एक प्रमुख मंदिर, महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित शिंगणापुर का शनि मंदिर है। विश्व प्रसिद्ध इस शनि मंदिर की विशेषता है कि यहां स्थित शनिदव की
पाषाण प्रतिमा बगैर किसी छत्र या गुंबद के खुले आसमान के नीचे एक संगमरमर के चबूतरे पर विराजित है।

इस शहर में भगवान शनि महाराज का इतना डर व् है कि शहर में अधिकांश घरों में खिड़की. दरवाजे और तिजोरी नहीं है। दरवाजों की जगह केवल पर्दे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां चोरी नहीं होती है। कहा जाता है जो भी चोरी करता है उसे शनि महाराज स्वयं सजा देते हैं। इसके कई प्रत्यक्ष उदाहरण देखे गए हैं। शनि प्रकोप से बचने के लिए यहां पर विश्ववभर से प्रति शनिवार लाखों श्रद्धालु आते हैं।

सोमनाथ मंदिर

सोमनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम स्थान पर आता है। प्राचीन काल में इसका शिवलिंग हवा में झूलता था, लेकिन आक्रमणकारियों ने इसे तोड़ दिया था। माना जाता है कि चौबीस शिवलिंग की स्थापना की गई थी, उनमें से सोमनाथ का शिवलिंग मध्य में था। इनमें से कुछ शिवलिंग आकाश में स्थित कर्क रेखा के नीचे आते हैं।

गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में यह मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था। ऋग्वेद में इसका उल्लेख मिलता है। इस स्थान को सबसे रहस्यमय माना जाता है। यदुवंशियों के लिए यह प्रमुख स्थान है। इस मंदिर पर सत्रह बार आक्रमण किया गया था। हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया।

यही भगवान श्री कृष्ण ने देह त्याग किया था। श्री कृष्ण भालूका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे तभी शिकारी ने उनके पैर के तलवे में पद्यचिन्ह को हिरण की आंख जानकर धोखे में तीर मारा था, तभी श्री कृष्ण ने देहत्याग कर यही सेे बैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बड़ा ही सुंदर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।

उज्जैन का काल भैरव मंदिर

 मध्ययप्रदेश के उज्जैन शहर  में काल भैरव मंदिर स्थित है। यहां की काल भैरव की मूर्ति मदिरापान करती है। इसलिए यहां मंदिर में प्रसाद की जगह शराब चढ़ाई जाती है। यही शराब प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित की जाती है। कहा जाता है कि काल भैरव नाथ इस शहर के रक्षक हैं। इस मंदिर के बाहर साल के बारह महीने और चौबीस घंटे शराब उपलब्ध रहती है।

कन्याकुमारी देवी मंदिर


भारत के नक्शे में कन्याकुमारी सबसे नीचे स्थित है। इसके समुद्र तट पर कुमारी देवी का मंदिर स्थित है। यहां माता पार्वती को कन्या रूप में पूजा जाता है। एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां मंदिर में पुरुष को प्रवेश करने के लिए ऊपर का वस्त्र उतारना जरुरी है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर मां पार्वती का विवाह संपन्न नहीं हो पाया था। उसके कारण बचे हुए दाल-चावल बाद में कंकड़ पत्थर बन गए थे। कहा जाता है इसलिए ही कन्याकुमारी के बीच में या रेत में दाल और चावल के रंग रूप वाले कंकड़ बहुत मिलते हैं। आश्चर्य भरा बात यह है कि यह कंकड़ पत्थर दाल चावल के आकार के ही देखे जा सकतें हैं।

यहां का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है। यहां सूर्योदय और सूर्यास्त का एक अद्भुत नजारा होता है। सनराइज दृष्य के लिए कन्याकुमारी काफी प्रसिद्ध है। सुबह-सबह सूरज की अगवानी के लिए टूरिस्ट की भारी भीड़ एकत्रित हो जाती है। शाम को अरब सागर में डूबते हुए सूरज को देखना एक यादगार होता है।

Post a Comment

0 Comments

if you have any doubt,pl let me know

Post a Comment (0)
To Top