विक्रम संवत : 2078 (गुजरात - 2077)
शक संवत : 1943
अयन : दक्षिणायन
ऋतु : शरद
मास : भाद्रपद
पक्ष : शुक्ल
तिथि - चतुर्दशी 20 सितम्बर प्रातः 05:28 तक तत्पश्चात पूर्णिमा
नक्षत्र - शतभिषा 20 सितम्बर रात्रि 03:28 तक तत्पश्चात पूर्व भाद्ररपद
योग - धृति शाम 04:44 तक तत्पश्चात शूल
राहुकाल - शाम 05:06 से शाम 06:38 तक
सूर्योदय - 06:27
सूर्यास्त - 18:36
दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
पंचक
18 सितंबर दोपहर 3.26 बजे से 23 सितंबर प्रात: 6.45 बजे तक
व्रत पर्व विवरण
प्रदोष
18 सितंबर : शनि प्रदोष व्रत
व्रत पर्व विवरण -
अनंत चतुर्दशी, गणेश महोत्सव समाप्त
विशेष -
चतुर्दशी और पूर्णिमा तिथि,एवं रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)
रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)
स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।
श्राद्ध पक्ष में अपनाए जाने वाले सभी मुख्य नियम
20 सितम्बर 2021 सोमवार से महालय श्राद्ध आरम्भ ।
1- श्राद्ध के दिन भगवदगीता के सातवें अध्याय का माहात्म पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए एवं उसका फल मृतक आत्मा को अर्पण करना चाहिए।
2- श्राद्ध के आरम्भ और अंत में तीन बार निम्न मंत्र का जप करें l
मंत्र ध्यान से पढ़े :
ll देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च l
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव भवन्त्युत ll
(समस्त देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा एवं स्वाहा सबको हम नमस्कार करते हैं l ये सब शाश्वत फल प्रदान करने वाले हैं l)
3- “श्राद्ध में एक विशेष मंत्र उच्चारण करने से, पितरों को संतुष्टि होती है और संतुष्ट पितर आपके कुल खानदान को आशीर्वाद देते हैं।
मंत्र ध्यान से पढ़े -
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा|
4- जिसका कोई पुत्र न हो, उसका श्राद्ध उसके दौहिक (पुत्री के पुत्र) कर सकते हैं l कोई भी न हो तो पत्नी ही अपने पति का बिना मंत्रोच्चारण के श्राद्ध कर सकती है l
5- पूजा के समय गंध रहित धूप प्रयोग करें और बिल्व फल प्रयोग न करें और केवल घी का धुआं भी न करें|
अनंत चतुर्दशी
19 सितम्बर 2021 रविवार को अंनत चतुर्दशी है ।
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्तसूत्र बांधा जाता है।
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