प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो, प्रयागराज
जो व्यक्ति बमुश्किल अपने हस्ताक्षर बना पाता था। उसमें भी हस्ताक्षर करने में 2-3 मिनट लगते थे । उस व्यक्ति ने पांच पेज का सुसाइड नोट कितने दिन में लिखा होगा? पुलिस कह रही है कि महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत के मामले में नरेंद्र गिरि के कमरे से सुसाइड नोट मिला है। इसमें उनके शिष्य आनंद गिरि का जिक्र है। पुलिस ने कहा कि हम मामले की जांच कर रहे हैं। सुसाइड नोट वसीयत की तरह है। शिष्य आनंद गिरि से नरेंद्र गिरि दुखी थे।
गिरीश मालवीय ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा है कि अब सवाल उठता है कि महंत नरेंद्र गिरि अपने परम शिष्य आनंद गिरि से दुखी क्यों थे? तो उसका कारण चार महीने पहले हुआ एक विवाद था। महंत नरेंद्र गिरि ने अपने परम शिष्य आनंद गिरि पर खुद कार्रवाई कर उन्हें निरंजनी अखाड़े से निष्कासित कर दिया था। इस पर आनंद गिरि ने उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसे भास्कर ने भी प्रकाशित किया था। चिट्ठी यह थी।परम पूज्य महंत श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज को मेरा साष्टांग प्रणाम।
मैं स्वामी आनंद गिरी, शिष्य श्री महंत नरेंद्र गिरि जी महाराज बाघम्बरी बड़े हनुमान मंदिर प्रयागराज। सादर अवगत कराना है कि महाराज जी मैं बाघमबारी गद्दी से वर्ष 2005 से जुड़ा और वर्ष 2000 में इनका शिष्य बना था। हरिद्वार में निरंजनी अखाड़े में वर्ष 2003 में मैं थानापति बनकर बड़ोदरा अखाड़े के मंदिर में पुजारी के रूप में गया और वर्ष 2004 में गुरुजी हमारे मठ बाघम्बरी गद्दी के महंत बने। महंत बनने के बाद सबसे पहले विद्यालय की इन्होंने एक जमीन को बेचा, जिसमें अखाड़ा विरोध में खड़ा हो गया और इनको हटाने की कार्यवाही करने लगा। उस समय मुझे इन्होंने फोन करके बुलाया और रोने लगे कहा- बेटा मेरा कोई नहीं है। आज अखाड़ा मेरे खिलाफ हो गया है। मुझसे गलती हुई। मैंने जमीन बेच दी। तू मेरा शिष्य बनकर अगर आ जाएगा तो मैं तुझे महंत बना दूंगा। उस समय मैंने इनका साथ दिया। मैंने अखाड़े को कहा था कि गुरु पहले हैं फिर अखाड़ा।
फिर महाराज जी के साथ एक बड़ा घटनाक्रम हुआ। एक रेलवे के आईजी साहब थे आरएन सिंह। उनके साथ भी घनिष्ठ मित्रता हुई और उनके परिवार के साथ जमीन बेचने को लेकर बात हुई, तब भी मैंने विरोध किया था। मैंने कहा-महाराज मठ की जमीन बेचेंगे तो पूरा समाज हमारे खिलाफ हो जाएगा। इस बात से आरएन सिंह नाराज हुए और हमारे खिलाफ मोर्चा खोल दिया। आईजी आरएन सिंह जी मंदिर पर धरने पर बैठे और मंदिर के महंत एवं हम लोगों पर कार्यवाही की मांग करने लगे। फिर जनेश्वर मिश्रा जी से बात हुई। जनेश्वर मिश्रा जी ने मुलायम सिंह जी से बात की और आरएन सिंह को सस्पेंड किया। तब हमारा मठ और हम लोग बचे।
फिर वर्ष 2011 में इनकी मित्रता महेश नारायण सिंह नाम के एक राजनीतिक व्यक्ति से हुई। महेश इनके पारिवारिक मित्र थे। इसके बाद भूमाफिया शैलेंद्र सिंह को सात बीघा मठ की जमीन बेच दी गई और उसमें से 2 बीघा जमीन शैलेंद्र सिंह ने महेश नारायण को तोहफे में दे दी। इस बात की जानकारी हमको नहीं थी। जमीन बेचने के बाद स्वामी जी मंदिर की गद्दी पर बैठे-बैठे ही गिर गए। हम और पुजारी सब लोग भागे इनको अस्पताल ले गए। हमने पूछा क्या हुआ महाराज जी तो बोले बेटा मुझसे बड़ा अपराध हो गया है। मैंने मठ की सात बीघा जमीन को बेच दिया है। वर्ष 2011 में महेश नारायण चुनाव जीत कर के आए और उसी दिन मठ पर हमला बोल दिया। लगभग 50 से अधिक राइफल धारियों ने मठ को घेर रखा था। मेरे हस्तक्षेप के बाद एसपी सिटी दफ्तर में मामला गया। जमीन की कीमत 40 करोड़ थी। मैंने कहा गुरुजी आपने ये क्या किया। इससे तो मठ खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा बेटा चिंता मत करो मैं तुम्हारी सौगंध खाता हूं मैं 10 करोड़ से अधिक पैसों से जमीन खरीदूंगा। परंतु वादा वादा ही रहा। इन्होंने कभी मठ के लिए कोई जमीन नहीं खरीदी। वर्ष 2018 में फिर लगभग 80 बीघा जमीन मेरे नाम पर लीज कर दी गई और कहा गया कि हम इस पर भविष्य में पेट्रोल पंप खोल देंगे, लेकिन हम इसे बेचेंगे नहीं। फिर वर्ष 2020 में उन्होंने मुझसे कहा कि बेटा जमीन लीज कैंसिल कर दो। मुझे पैसों की बहुत जरूरत है। मैंने कहा कि अब एक इंच जमीन नहीं बिकेगी। मुख्यमंत्री जी यहीं से विवाद शुरू हुआ।
मैंने पूछा इतनी क्या जरूरत है पैसों की। जब मैंने पता किया तो अजीबोगरीब शौक को देखकर मैं दंग रह गया। इनका सबसे पहले एक लड़का है सिपाही अजय सिंह। जिसके नाम दो बड़े फ्लैट हैं। उसके नाम पर कई बेनामी संपत्ति खरीदी गई है। फिर एक विपिन सिंह इनका ड्राइवर है। उसको बड़ा मकान बनाकर दे दिया है। उससे पहले रामकृष्ण पांडेय नाम का एक विद्यार्थी था, उसको भी बड़ा मकान बनाकर दे दिया। मंदिर में उसको दुकान दे दी। उसके पश्चात विवेक मिश्रा नाम का एक विद्यार्थी उसके नाम बड़ी जमीन खरीद दी। एक बड़ा मकान बनाकर दे दिया। मनीष शुक्ला नाम का एक विद्यार्थी उसको 15 करोड़ से ऊपर का मकान बनाकर दे दिया और उसके नाम जमीन कर दी। मेरे नाम गाड़ी थी फॉर्च्यूनर वह भी उसके नाम करवा दी। उसके पश्चात अभिषेक मिश्रा है उसका भी विशाल मकान अभी बनवा करके दे दिया। इसके अलावा मिथिलेश पांडेय हैं उनका एक विशालकाय मकान बनवा करके दिया और उनको कुछ जमीन खरीद के दी। वर्ष 2020 में मैंने इन सारे घटनाक्रमों पर गौर से चिंतन किया और पता लगाया तो मुझे बहुत दुख हुआ। बुरे आचरण से मठ को बर्बाद किया जा रहा है।
एक आदित्य नाथ मिश्रा था, जिसको इन्होंने ही अपराधी बनाया, पाला पोसा और उसके पश्चात उसके खिलाफ अधिकारियों को भड़काकर कई मुकदमें लदवा कर जेल भेज दिया। महराज जी आज बहुत भारी मन से मैं अपने प्राणों की भिक्षा आपसे मांग रहा हूं। इन सभी मामलों में आप सीधे हस्तक्षेप कीजिए नहीं तो जैसे इन्होंने महंत आशीष गिरि को मरवा दिया मुझे भी मरवा देंगे। आपके चरणों में निवेदन है मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए। इनका बहुत बड़ा रसूख है। अधिकारियों को मेरे खिलाफ करके कुछ भी करवा सकते हैं। आप एक संत हैं। मैं भी एक महात्मा हूं। आप समझ सकते हैं। मैं साधु बना तब से मेरा परिवार से मेरा कोई संबंध नहीं रहा। मैंने कभी मठ से 1 रुपया भी नहीं लिया।
वर्ष 2019 में भी मेरे ऊपर एक बड़ा भारी प्राणघातक षड्यंत्र रचाया गया। मैं विदेश में ऑस्ट्रेलिया में था। 2 महिलाओं के द्वारा अभद्रता का एक आरोप लगाकर मुझे फंसाया गया। मेरे नाम पर इन्होंने यहां पर 4 करोड़ से अधिक रुपए लोगों से लिए और यह कहा कि मुझे आस्ट्रेलिया पैसा भेजना है, आनंद गिरि को छुड़ाने के लिए। परंतु सच्चाई महाराज जी यह है कि ऑस्ट्रेलिया में मेरी कोई गलती नहीं थी। मेरा आरोप सिद्ध नहीं हुआ। लिहाजा वहां की कोर्ट ने मुझे बाइज्जत बरी किया और मेरे अपने जो शिष्य लोग वहां हैं उन लोगों ने मेरी पूरी सेवा की। एक भी रुपया हिंदुस्तान से नहीं भेजा गया। फिर भी मेरे नाम पर इन्होंने इतना पैसा उठाया और आज तक उन लोगों को पैसा नहीं दे रहे हैं।
मुख्यमंत्री जी मुझे बचाइये। आपके श्री चरणों में प्रणाम
आश्रम में संदिग्ध परिस्थितियों में लगातार तीसरी मौत
दरअसल, पिछले कुछ सालों से आश्रम की जमीनों को औने-पौने में बेचने को लेकर बहुत सी बातें सामने आ रही थीं। इसी सिलसिले में कुछ महीने पहले निरंजनी अखाड़े से निष्कासित किए गए योग गुरु महंत आनंद गिरि ने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि पर बड़े आरोप लगाते हुए बेची गई जमीनों की जांच की मांग उठाई थी।
इसी सिलसिले में आनंद गिरि ने पूर्व सचिव आशीष गिरि की मौत का जिक्र कर सनसनी मचा दी थी। साथ ही उन्होंने एक और महंत गंगापुरी की भी मौत का जिक्र किया था। पुलिस को भेजी शिकायत में उन्होंने कहा था कि महंत आशीष गिरि की तरह ही अखाड़े के युवा संत दिगंबर गंगापुरी की भी संदिग्ध मौत हुई थी। महंत गंगापुरी की मौत को भी आत्महत्या बताकर हकीकत पर परदा डाल दिया गया था। आशीष गिरि के साथ महंत गंगापुरी की संदिग्ध मौत की जांच की जानी चाहिए।
पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के सचिव महंत आशीष गिरि नवंबर 2019 में आश्रम के भीतर मृत पाए गए थे। पुलिस ने उस मौत को भी खुदकुशी ही बताया था, सुबह नौ बजे के करीब आश्रम में बने कमरे में संदिग्ध हालत में गोली लगने से उनकी मौत हो गई थी। वह बिस्तर पर मृत पड़े मिले थे। पुलिस का दावा था कि उनकी हथेली में पिस्टल फंसी मिली और बगल में ही खोखा भी मिला। जिसके आधार पर मामले को खुदकुशी बताया गया। हालांकि मौके की हालत ने पुलिस की इस थ्योरी पर कई सवाल भी खड़े कर दिए थे। मसलन मौके पर दो खोखों का मिलना, घटना के वक्त आश्रम में मौजूद लोगों का गोली चलने की आवाज न सुनना और उन्हें घटना की जानकारी काफी देर बाद होना आदि समेत कई ऐसे सवाल थे, जिनका जवाब नहीं मिल सका।
अब सवाल है कि जैसे इन दो केस में कोई स्पष्ट नतीजा नहीं निकला वैसे ही महंत नरेंद्र गिरि की मौत भी राज बनकर रह जाएगी? क्योंकि यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि महंत नरेंद्र गिरि एक बहुत हाईप्रोफाइल बाबा थे। उनकी तूती बसपा सरकार, सपा सरकार और अब भाजपा सरकार में बोलती थी। इलाहाबाद के कमिश्नर, डीएम, आईजी से एसएसपी तक उनका नियमित दरबार करते थे। महंत नरेंद्र गिरि का प्रदेश शासन में इतना रसूख था कि वे संविधानेत्तर केंद्र के रूप में उभर रहे थे।
if you have any doubt,pl let me know