Prarabdh Today's Panchang : आज का पंचांग एवं व्रत-त्योहार (27 अगस्त 2021)

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दिनांक 27 अगस्त, शुक्रवार

विक्रम संवत : 2078 (गुजरात - 2077)

शक संवत : 1943

अयन : दक्षिणायन

ऋतु - शरद

मास - भाद्रपद (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार - श्रावण)

पक्ष - कृष्ण

तिथि- पंचमी शाम 06:48तक तत्पश्चात् षष्ठी

नक्षत्र-अश्विनी रात्रि 12:48 तक तत्पश्चात भरणी

योग-वृद्धि 28 अगस्त प्रातः 05:55 तक तत्पश्चात धुव

राहुकाल-प्रातः 11:05 से दोपहर 12:40 तक

सूर्योदय-06:21

सूर्यास्त-18:59

दिशाशूल-पश्चिम दिशा में

व्रत और पर्व

एकादशी

03 सितंबर : अजा एकादशी

17 सितंबर : परिवर्तिनी एकादशी

प्रदोष

04 सितंबर : शनि प्रदोष

18 सितंबर : शनि प्रदोष व्रत

पूर्णिमा

20 सितंबर : भाद्रपद पूर्णिमा

अमावस्या

07 सितंबर : भाद्रपद अमावस्या

पंचक

18 सितंबर दोपहर 3.26 बजे से 23 सितंबर प्रात: 6.45 बजे तक

व्रत पर्व विवरण -

नाग पंचमी (राजस्थान की परंपरा के अनुसार), रक्षा पंचमी (ओडिशा), माधव देव तिथि (असम)

विशेष - पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

जन्माष्टमी

ज्योतिष के अनुसार, अगर इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए विशेष उपाय किए जाएं तो माता लक्ष्मी भी प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। ये उपाय करने से मनोकामना की पूर्ति व धन प्राप्ति के योग भी बन सकते हैं।

जन्माष्टमी के अचूक 12 उपाय, 1 भी करेंगे तो होगा फायदा-

1-आमदनी नहीं बढ़ रही है या नौकरी में प्रमोशन नहीं हो रहा है तो जन्माष्टमी पर 7 कन्याओं को घर बुलाकर खीर या सफेद मिठाई खिलाएं। इसके बाद लगातार पांच शुक्रवार तक सात कन्याओं को खीर या सफेद मिठाई बांटें।

2-जन्माष्टमी से शुरु कर 27 दिन लगातार नारियल व बादाम किसी कृष्ण मंदिर में चढ़ाने से सभी इच्छाएं पूरी हो सकती है।

3-यदि पैसे की समस्या चल रही हो तो जन्माष्टमी पर सुबह स्नान आदि करने के बाद राधाकृष्ण मंदिर जाकर दर्शन करें व पीले फूलों की माला अर्पित  करें। इससे आपकी परेशानी कम हो सकती है।

4-सुख-समृद्धि पाने के लिए जन्माष्टमी पर पीले चंदन या केसर से गुलाब जल मिलाकर माथे पर टीका अथवा बिंदी लगाएं। ऐसा रोज करें। इस उपाय से मन को शांति प्राप्ति होगी और जीवन में सुख-समृद्धि आने के योग बनेंगे।

5-लक्ष्मी कृपा पाने के लिए जन्माष्टमी पर कहीं केले के पौधे लगा दें। बाद में उनकी नियमित देखभाल करते रहे। जब पौधे फल देने लगे तो  इसका दान करें, स्वयं न खाएं।

6-जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण को पान का पत्ता भेंट करें और उसके बाद इस पत्ते पर रोली (कुमकुम) से श्री यंत्र लिखकर तिजोरी में रख लें। इस उपाय से धन वृद्धि के योग बन सकते हैं।

7-जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण को सफेद मिठाई या खीर का भोग लगाएं।इसमें तुलसी के पत्ते अवश्य डालें। इससे भगवान श्रीकृष्ण जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं।

8-जन्माष्टमी पर दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक करें। इस उपाय से मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। ये उपाय करने वाले की हर इच्छा पूरी हो सकती है।

9-कृष्ण मंदिर जाकर तुलसी की माला से नीचे लिखे मंत्र की 11 माला जप करें। इस उपाय से आपकी हर समस्या का समाधान हो सकताहै।

मंत्र- क्लीं कृष्णाय वासुदेवाय हरि:परमात्मने प्रणत:क्लेशनाशाय गोविंदय नमो नम:

10-भगवान श्रीकृष्ण को पीतांबर धारी भी कहते हैं, जिसका अर्थ है पीले रंग के कपड़े पहनने वाला। जन्माष्टमी पर पीले रंग के कपड़े, पीले फल व पीला अनाज दान करने से भगवान श्रीकृष्ण व माता लक्ष्मी दोनों प्रसन्न होते हैं।

11-जन्माष्टमी की रात 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करें तो जीवन में सुख-समृद्धि आने के योग बनाते हैं।

12-जन्माष्टमी को शाम के समय तुलसी को गाय के घी का दीपक लगाएं और ॐ वासुदेवाय नम: मंत्र बोलते हुए तुलसी की 11 परिक्रमा करें।
      
जन्माष्टमी व्रत-उपवास की महिमा

30 अगस्त 2021 सोमवार को जन्माष्टमी

जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहिए, बड़ा लाभ होता है ।इससे सात जन्मों के पाप-ताप मिटते हैं ।

जन्माष्टमी एक तो उत्सव है, दूसरा महान पर्व है, तीसरा महान व्रत-उपवास और पावन दिन भी है।
 ‘वायु पुराण’ में और कई ग्रंथों में जन्माष्टमी के दिन की महिमा लिखी है। ‘जो जन्माष्टमी की रात्रि को उत्सव के पहले अन्न खाता है, भोजन कर लेता है वह नराधम है’ - ऐसा भी लिखा है, और जो उपवास करता है, जप-ध्यान करके उत्सव मना के फिर खाता है, वह अपने कुल की 21 पीढ़ियाँ तार लेता है और वह मनुष्य परमात्मा को साकार रूप में अथवा निराकार तत्त्व में पाने में सक्षमता की तरफ बहुत आगे बढ़ जाता है । इसका मतलब यह नहीं कि व्रत की महिमा सुनकर मधुमेह वाले या कमजोर लोग भी पूरा व्रत रखें ।

बालक, अति कमजोर तथा बूढ़े लोग अनुकूलता के अनुसार थोड़ा फल आदि खायें ।

जन्माष्टमी के दिन किया हुआ जप अनंत गुना फल देता है ।

उसमें भी जन्माष्टमी की पूरी रात जागरण करके जप-ध्यान का विशेष महत्त्व है। जिसको क्लीं कृष्णाय नमः मंत्र का और अपने गुरु मंत्र का थोड़ा जप करने को भी मिल जाय, उसके त्रिताप नष्ट होने में देर नहीं लगती ।

‘भविष्य पुराण’ के अनुसार जन्माष्टमी का व्रत संसार में सुख-शांति और रोगरहित जीवन देनेवाला, अकाल मृत्यु को टालनेवाला, गर्भपात के कष्टों से बचानेवाला तथा दुर्भाग्य और कलह को दूर भगानेवाला होता है।

पितृ पक्ष-

पितृ पक्ष श्राद्ध हर साल आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आरंभ होता है और अमावस्या तिथि तक रहता है। पितृ पक्ष श्राद्ध को शास्त्रों में पितरों के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने का समय बताया गया है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि यमराज भी इन दिनों पितरों की आत्मा को मुक्त कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों के बीच 15 दिनों तक रह कर श्राद्ध का अन्न जल ग्रहण कर तृप्त हो सकें। इस साल आश्विन कृष्ण पक्ष का आरंभ 21 सितंबर को हो रहा है। इसलिए 21 सितंबर से ही पितृपक्ष श्राद्ध का आरंभ हो जाएगा। लेकिन शास्त्रों में एक अन्य नियम भी पितृ पक्ष के संदर्भ में बताया गया है जिससे पितृ पूजन का आरंभ 20 सितंबर से ही हो जाएगा।इनके सम्‍मान के लिए होता है भाद्र पूर्णिमा का श्राद्ध।

20 सितंबर को भाद्र पूर्णिमा तिथि है। इस दिन सबसे पहला तर्पण किया जाएगा। इस पूर्णिमा तिथि को ऋषि तर्पण तिथि भी कहा जाता है। इस दिन मंत्रदृष्टा ऋषि मुनि अगस्त का तर्पण किया जाता है। दरअसल इन्होंने ऋषियों और मनुष्यों की रक्षा के लिए एक बार समुद्र को पी लिया था और दो असुरों को खा गए थे। इसलिए सम्मान के तौर पर भाद्र पूर्णिमा के दिन अगस्त मुनि का तर्पण करके पितृ पक्ष का आरंभ होता है।

पितृ पक्ष का महत्व

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का खास महत्‍व होता है। मृत्‍यु के बाद भी हिंदू धर्म में पूर्वजों का समय-समय पर स्‍मरण किया जाता है और श्राद्ध पक्ष उन्‍हीं के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करने और उनके निमित्‍त दान करने का पर्व है। मान्‍यता है कि यदि श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष में पितरों के निमित्‍त दान-पुण्‍य करने से हमारी कुंडली से पितृ दोष का दुष्‍प्रभाव समाप्‍त होता है।
श्राद्ध पक्ष की प्रमुख तिथियां

प्रतिपदा श्राद्ध : 21 सितंबर
षष्‍ठी का श्राद्ध : 27 सितंबर
नवमी का श्राद्ध : 30 सितंबर
एकादशी का श्राद्ध : 2 अक्‍टूबर
चतुर्दशी का श्राद्ध : 5 अक्‍टूबर
पितृ अमावस्‍या का श्राद्ध : 6 अक्‍टूबर

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