Prarabdh Today's Panchang : आज का पंचांग एवं व्रत-त्योहार (15 अगस्त 2021)

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दिनांक 15 अगस्त, रविवार

विक्रम संवत : 2078 (गुजरात - 2077)

शक संवत : 1943

अयन : दक्षिणायन

ऋतु : वर्षा

मास : श्रावण

पक्ष : शुक्ल

तिथि : सप्तमी सुबह 09:52 बजे तक तत्पश्चात अष्टमी

नक्षत्र : विशाखा 16 अगस्त प्रातः 04:26 बजे तक तत्पश्चात अनुराधा

योग : शुक्ल सुबह 08:32 बजे तक तत्पश्चात ब्रह्म

राहुकाल - शाम 05:32 बजे से शाम 07:09 बजे तक

सूर्योदय : प्रातः 06:18 बजे

सूर्यास्त : संध्या  19:07 बजे

दिशाशूल : पश्चिम दिशा में

पंचक

22 अगस्त प्रात: 7.57 बजे से 26 अगस्त रात्रि 10.28 बजे तक

18 सितंबर दोपहर 3.26 बजे से 23 सितंबर प्रात: 6.45 बजे तक

एकादशी

18 अगस्त : श्रावण पुत्रदा एकादशी

03 सितंबर : अजा एकादशी

17 सितंबर : परिवर्तिनी एकादशी

प्रदोष

20 अगस्त: प्रदोष व्रत

04 सितंबर : शनि प्रदोष

18 सितंबर: शनि प्रदोष व्रत

पूर्णिमा

22 अगस्त : श्रावण पूर्णिमा

20 सितंबर : भाद्रपद पूर्णिमा


07 सितंबर : भाद्रपद अमावस्या


व्रत पर्व विवरण 

स्वतंत्रता दिवस, रविवारी सप्तमी (सूर्योदय से सुबह 09:52 तक)

विशेष -

15 अगस्त 2021 रविवार को सूर्योदय से सुबह 09:52 तक शुक्ल पक्ष की रविवारी सप्तमी है।

सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है था शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

रविवार के दिन ब्रह्मचर्य पालन करे तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)

रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)

रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)

स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।


क्लेश कम करने के लिए

पोछा लगाते हैं घर में तो उस पानी में सैंधा नमक और थोड़ा गो-झरण दाल दे तो घर में क्लेश कम होता है और शान्ति बढ़ती है।

रविवारी सप्तमी

शास्त्रों में रविवार के दिन आने वाली सप्तमी को सूर्यग्रहण के समान पुण्यदायी बताया है। इनमें किया गया जप-ध्यान, स्नान , दान व श्राद्ध अक्षय होता है और सैकड़ों जन्मों तक इसका फल प्राप्त होता है।

भविष्यपुराण, मध्यमपर्व, अध्याय 8 में कहा गया है

शुक्ला वा यदि वा कृष्णा षष्ठी वा सप्तमी तु वा। रविवारेण संयुक्ता तिथिः पुण्यतमा स्मृता।।

शुक्ल या कृष्ण पक्षकी षष्ठी या सप्तमी रविवार से युक्त हो तो वह महान पुण्यदायिनी है।

ब्रह्मपुराण, अध्याय 29 के अनुसार

शुक्लपक्षस्य सप्तम्यां यदादित्यदिनं भवेत्॥  

सप्ती विजया नाम तत्र दत्तं महत् फलम्। 
स्नानं दानं तपो होम उपवासस्तथैव च॥

सर्व्वं विजयसप्तम्यां महापातकनाशनम्।

जब शुक्लपक्ष की सप्तमी को रविवार हो, उस दिन विजयासप्तमी होती है। उसमें दिया हुआ दान महान फल देने वाला है। विजयासप्तमी को किया हुआ स्नान, दान, तप, होम और उपवास सब बड़े बड़े पातकों का नाश करने वाला है।

भविष्यपुराण, ब्राह्मपर्व, अध्याय 81 के अनुसार

शुक्लपक्षस्य सप्तम्यां सूर्यवारो भवेद्यदि। 
सप्तमी विजया नाम तत्र दत्तं महाफलम् । । २।।

स्नानं दान तथा होमं उपवासस्तथैव च। 
सर्वं विजयसप्तम्यां महापातकनाशनम् । । ३।।

पञ्चम्यामेकभक्तं स्यात्पष्ठ्यां नक्तं प्रचक्षते । उपवासस्तु सप्तम्यामष्टम्यां पारणं भवेत् । । ४।।

यदि शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रविवार हो तो उसे विजया सप्तमी कहते हैं। उस दिन किया गया स्नान, दान, होम, उपवास, पूजन आदि सत्कर्म महापातकों का विनाश करता है। इस विजया-सप्तमी-व्रत में पंचमी तिथि को दिन में एकभुक्त रहे, षष्ठी तिथि को नक्तव्रत करे और सप्तमी को पूर्ण उपवास करे, तदनन्तर अष्टमी के दिन व्रत की पारणा करें। इस तिथि के दिन किया गया दान, हवन, देवता तथा पितरों का पूजन अक्षय होता है।

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