आप को बताएं कोणार्क के सूर्य मंदिर के कुछ रहस्य

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प्रारब्ध अध्यात्म डेस्क, लखनऊ

सूर्य की पूजा के महात्म्य का जिक्र वेदों में किया गया है। हर प्राचीन ग्रंथों में सूर्य की महत्ता का वर्णन मिलता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान सूर्य की आराधना करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। हिंदू धर्म के सूर्य ही एक ऐसे देवता हैं जो प्रत्यक्ष रूप से आंखों के सामने नजर आते हैं। 

भगवान सूर्य की आराधना हम सभी उन्हें साक्षात देखते हुए कर सकते हैं। जैसा कि हमारे देश में प्रथा है भगवान के मंदिर बनवाने की। इसके आधार पर बरसों पहले कुछ हिंदू राजाओं ने एक भव्य सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया। 

ओडिशा में स्थित कोणार्क का सूर्य मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। यह मंदिर भारत की प्राचीन धरोहरों में से एक है। इस मंदिर की भव्यता के कारण यह देश के सबसे बड़े 10 मंदिरों में गिना जाता है। कोणार्क का सूर्य मंदिर ओडिशा राज्य के पुरी शहर से लगभग 23 मील दूर नीले जल से लबरेज चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर को पूरी तरह से सूर्य भगवान को समर्पित किया गया है। 

सूर्य मंदिर की संरचना इस प्रकार की गई है जैसे एक रथ में 12 विशाल पहिए लगाए गए हों। उस रथ को 7 ताकतवर बड़े घोड़े खींच रहे हों। इस रथ पर सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है। मंदिर से आप सीधे सूर्य भगवान के दर्शन कर सकते हैं। मंदिर के शिखर से उगते और ढलते सूर्य को पूर्ण रूप से देखा जा सकता है। जब सूर्य निकलता है तो मंदिर से ये नजारा बेहद ही खूबसूरत दिखता है। जैसे लगता है सूरज से निकली लालिमा ने पूरे मंदिर में लाल-नारंगी रंग बिखेर दिया हो। 

सूर्य मंदिर का एक रहस्य भी है जिसके बारे में कई इतिहासकरों ने जानकारी इकट्ठा की है। पुराणानुसार कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप से कोढ़ रोग हो गया था। उन्हें ऋषि कटक ने इस श्राप से बचने के लिये सूरज भगवान की पूजा करने की सलाह दी। साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में बारह वर्ष तपस्या करके सूर्य देव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक थे, ने इसका रोग भी अन्त किया। 

कोणार्क के बारे में एक और मिथक प्रचलित है। मान्यता यह भी है कि यहां आज भी नर्तकियों की आत्माएं आती हैं। अगर कोणार्क के पुराने लोगों की मानें तो आज भी यहां आपको शाम में उन नर्तकियों के पायलों की झंकार सुनाई देगी जो कभी यहाँ के राजा के दरबार में नृत्य करती थीं।

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