भगवान शिव के फल से ज्येष्ठ की अमावस्या में भगवान शनिदेव का जन्म हुआ। सूर्य के तेज और तप के कारण ही शनिदेव का रंग काला हो गया। उनकी माता की घोर तपस्या के कारण शनि महाराज में अपार शक्तियों का समावेश हो गया। इसलिए भगवान शनि सर्वशक्तिमान और तीनों लोकों में सभी उनसे डरते हैं।
ऐसे आया सूर्य के प्रति शत्रुवत भाव
कहा जाता है कि एक बार भगवान सूर्यदेव अपनी पत्नी छाया से मिलने आए थे। सूर्यदेव के तप और तेज के कारण शनिदेव महाराज ने अपनी आंखें बंद कर लीं। इस वजह से शनिदेव सूर्यदेव को देख नहीं पाए। भगवान शनि के वर्ण को देख सूर्यदेव ने पत्नी छाया पर संदेह व्यक्त करने लगे। उन्होंने कहा कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। अपनी मां के लिए ऐसे वचन सुनकर शनिदेव के मन में सूर्य के प्रति शत्रुवत भाव पैदा हो गया।
मां के अपमान का बदला लेने को मांगा वरदान
उसके बाद शनिदेव महाराज ने भगवान शिव की कड़ी तपस्या की। भगवान शिव ने शनिदेव की कड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा। इस पर शनिदेव ने भगवान शिव से कहा कि सूर्यदेव उनकी माता को हमेशा प्रताड़ित करते रहते हैं। उनका अनादर भी करते रहते हैं। इससे उनकी माता को हमेशा अपमानित होना पड़ता है। इसलिए उन्होंने सूर्य से अधिक शक्तिशाली और पूज्यनीय होने का वरदान मांगा।
शनिदेव ऐसे बने नौ ग्रहों के स्वामी
तपस्या से भगवान शिव जब प्रसन्न हो गए तो शनिदेव को वरदान दिया कि वह नौ ग्रहों के स्वामी होंगे यानी उन्हें सबसे श्रेष्ठ स्थान की प्राप्ति होगी। इसके साथ ही सिर्फ मानव जाति ही नहीं बल्कि देवता, असुर, गंधर्व, नाग और जगत का हर प्राणी जाति उनके तेज और कोप से डरी-सहमी रहेगी।
पृथ्वी से 95वें गुना बलशाली हैं शनि
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि की धरती से दूरी लगभग नौ करोड़ मील है। इसकी चौड़ाई एक अरब बयालीस करोड़ साठ लाख किलोमीटर है। इसका बल धरती से पंचानवे गुना अधिक है। शनि को सूर्य की परिक्रमा करने में उन्नीस वर्ष लगते हैं।
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