देवभूमि उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला धूमधाम से मनाया, पौधरोपण व हरेला गीत से मन मोहा

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  • उत्तराखण्ड महापरिषद, देवभूमि सामाजिक सांस्कृतिक समिति और स्वदेशी महिला स्वयं सहायता समूह कल्याणपुर ने मिलकर मनाया
  • लखनऊ समेत उत्तर प्रदेश में रह रहे उत्तराखंडवासी पारंपरिक परिधानों में एक-दूसरे के घर गए और पारंपरिक पर्व की बधाई दी



प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो, लखनऊ

उत्तराखण्ड महापरिषद, देवभूमि सामाजिक सांस्कृतिक समिति और स्वदेशी महिला स्वयं सहायता समूह कल्याणपुर के संयुक्त तत्वावधान में धूमधाम से लोक पर्व हरेला मनाया गया। इस दौरान संगठन के पदाधिकारियों ने पौधरोपण किया। वहीं, समाज की स्त्री-पुरुष और युवक-युवतियों ने हरेला पर्व के गीत की आकर्षक प्रस्तुति से मन मोह लिया।  



उत्तराखण्ड महापरिषद से सम्बद्ध देवभूमि सामाजिक और सांस्कृतिक समिति कल्याणपुर व स्वदेशी महिला स्वयं सहायता समूह कल्याणपुर के तत्वावधान में हरीश चंद पंत, खुशहाल सिंह बिष्ट,भरत सिंह बिष्ट, मंगल सिंह रावत, दीवान सिंह अधिकारी, केएस चुफाल, भूवन पटवाल ने उत्तर प्रदेश में रह रहे सभी उत्तराखण्डीवासियों को हरेला की सुभकामनाएं दी।     


देवभूमि सामाजिक एवं सांस्कृतिक समिति कल्याणपुर लखनऊ के अध्यक्ष खुशहाल सिंह बिष्ट एवं उत्तराखण्ड महापरिषद के अध्यक्ष हरीश चंद पंत, संयोजक दीवान सिंह अधिकारी के नेतृत्व में शुक्रवार को हरेला पर्व के शुभ अवसर पर पौधारोपण कार्यक्रम किया गया। कल्याणपुर कालोनी में संगठन के पदाधिकारियों और सदस्यों ने पौधे रोपे। 



ऐसी मान्यता है कि हरेला पर्व यानी आज के दिन पौधे लगाने से पेड़ हमेशा जीवित बना रहता है। पौधरोपण कार्यक्रम में पूर्व निदेशक उद्यान विभाग एसपी जोशी भी मौजूद रहे।    



स्वदेशी महिला स्वयं सहायता समूह कल्याणपुर की महिलाओं ने धूमधाम से हरेला पर्व मनाया। समूह की अध्यक्ष हेमा बिष्ट के निर्देशन में वन्दना पाण्डेय, शोभा रावत, भारती बिष्ट, अंजलि मनराल, ललिता बिष्ट, गीता अधिकारी, कमला मेहरा, कामना बिष्ट एवं तारा देवी समेत समूह की महिलाओं ने हरेला के अवसर पर सुन्दर गीत प्रस्तुत किए, जो निम्न है :-


जी रया, जागि रया,

यो दिन, यो महैण कै नित-नित भ्यटनै रया।

हिमालय में हयू झन तक

गंगा में पाणी छन तक,

जी रया, जागि रया। 



इस दौरान समूह की सभी महिलाएं उत्तराखण्ड की पारम्परिक पोशाक एवं पिछोड़े सहित हरला पर्व की बधाई देने एक दूसरे के घर भी गए। सर्वप्रथम कल्याणपुर निवासी आनन्द जोशी पंडित द्वारा हरेले की पतेसा गया। पूजा अर्चना की गई। आनन्द पडित जी ने सभी को आशीर्वाद स्वरूप हरेला भेंट किया। कहा कि- तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार आता जाता रहें, वंश परिवार दूब की तरह पनपता रहे, धरती जैसा विस्तार मिले, आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो, सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले, हिमालय में हिम रहने और गंगा जमुना में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो।


उत्तराखण्ड के लोक पर्व हरेला पर जब सयानी और अन्य महिलाएं घर-परिवार के सदस्यों को हरेला शिरोधार्य करातीं हैैं तो उनके मुख से आशीष की यह पंक्तिया बरबस निकल पड़ती है। घर परिवार के सदस्यों से लेकर समाज के खुुशहली के निमित्त की गई इस मंगल कामना में हमें जहां एक ओर जीवेद् षरद षंतम् की अवधारणा प्राप्त होती है। वहीं, दूसरी ओर इस कामना में प्रकृति व मानव के सह अस्तित्व और प्रकृति संरक्षण की दिशा में उन्मुख एक समृद्ध विचारधारा भी साफ तौर परिलक्षित होती दिखाई देती है। आखिर प्रकृति के इसी ऋतु परिवर्तन एवं पेड-पौधों, जीव जन्तु, धरती, आकाश से मिलकर बने पर्यावरण से ही तो सम्पूर्ण जगत में व्याप्त मानव व अन्य प्राणियों का जीवनचक्र निर्भर है।  



लखनऊ में निवास कर रहे समस्त उत्तराखण्ड के लोग भी हरेला पर्व को उमंग और उत्साह के साथ मनाते आ रहे है। परम्परा के अनुसार पर्व नौ अथवा दस दिन पूर्व पत्तों से बने दोने या रिंगाल की टोकरियों में हरेला बोया जाता है। जिसमें उपलब्धतानुसार पांच, सात अथवा नौ प्रकार के धान्य यथा धान, मक्का, तिल, उडद, गहत, भट्ट, जौ व सरसों के बीजों को बोया जाता है। देवस्थान में इन टोकरियों को रखने के उपरांत रोजाना इन्हें जल के छीटों से सींचा जाता है। दो तीन दिन में ये बीज अंकुरित होकर हरेले तक सात-आठ इंच लम्बे तृण के आकार पा लेते है। हरेले पर्व की पूर्व संध्या पर इन तृणों की लकडकी की पतली टहनी से गुडाई करने के बाद विधिवत पूजन किया जाता है। कुछ स्थानों में इस दिन चिकनी मिट्टी से शिव-पार्वती और गणेश-कार्तिकेय के डिकारे (मूर्तिया) बनाने का भी रिवाज है। इन अलंकृत मूर्तियों को भी हरेले की टोकरियों के साथ रखकर पूजा जाता है।



हरेला पर्व के दिन देवस्थान में विधि-विधान के साथ टोकरियों में उगे हरेले के तृणों को काटा जाता है। इसके बाद घर-परिवार की महिलाएं अपने दोनों हाथों से हरेले के तृणों को दोनों पावॅ घुटनों व कंधों से स्पर्श कराते हुए आशीर्वाद युक्त शब्दों के साथ बारी-बारी से घर के सदस्यों के सिर पर रखती है। इस दिन लोग विविध पहाड़ी पकवान बनाकर एक दूसरे के यहां बांटा जाता है। गांव में इस दिन अनिवार्य रूप से लोग फलदार, छायादार या कृषि उपयोगी पेड़ों का रोपण करने की परम्परा है। 



लोक मान्यता है कि इस दिन पेड़ की टहनी मात्र रोपण से ही उसमें जीवन पनप जाता है। कुल मिलाकर देखा जाय तो हरेला पर्व में लोक कल्याण की एक अवधारणा निहित है। यह लोक पर्व हमें प्रकृति के करीब आने का सार्थक सन्देष देता है। लखनऊ में भी सभी लोग इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं। महा सचिव भरत सिंह बिष्ट ने उत्तराखण्ड महापरिषद और देवभूमि सामाजिक सांस्कृतिक समिति एवं स्वदेशी महिला स्वयं सहायता समूह की ओर से सभी को हरेले की बधाई और शुभकामनाएं दीं। 

     

उत्तराखंड महापरिषद के पदाधिकारी हरीश चंद पंत, अध्यक्ष भरत सिंह बिष्ट, महासचिव दीवान सिंह, अधिकारी संयोजक मंगल सिंह रावत, वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं श्री चेतन भैया युवा अध्यक्ष ने उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ जी से भेंट कर उत्तराखंड महोत्सव 2021 की जानकारी दी। उन्हें उत्तराखंड के लोक पर्व हरेले की अग्रिम बधाई दी।




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