दिनांक : 1 जून 2021, दिन : मंगलवार
विक्रम संवत : 2078 (गुजरात - 2077)
शक संवत : 1943
अयन : उत्तरायण
ऋतु : ग्रीष्म
मास : ज्येष्ठ
पक्ष : कृष्ण
तिथि - सप्तमी रात्रि 12:46 तक तत्पश्चात अष्टमी
नक्षत्र - धनिष्ठा शाम 04:06 तत्पश्चात शतभिषा
योग - वैधृति 02 जून रात्रि 03:02 तक तत्पश्चात विष्कम्भ
राहुकाल - शाम 03:57 से शाम 05:37 तक
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
सूर्योदय : प्रातः 05:57 बजे
सूर्यास्त : संध्या 19:15 बजे
व्रत पर्व विवरण -
विशेष -
सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है था शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
बुधवारी अष्टमी
02 जून 2021 बुधवार को (सूर्योदय से रात्रि से 01:03 तक) बुधवारी अष्टमी है ।
मंत्र जप एवं शुभ संकल्प हेतु विशेष तिथि
सोमवती अमावस्या, रविवारी सप्तमी, मंगलवारी चतुर्थी, बुधवारी अष्टमी – ये चार तिथियाँ सूर्यग्रहण के बराबर कही गयी हैं।
इनमें किया गया जप-ध्यान, स्नान , दान व श्राद्ध अक्षय होता है। (शिव पुराण, विद्यश्वर संहिताः अध्याय 10)
पंचक
01 जून रात्रि 3.57 बजे से 05 जून रात्रि 11.27 बजे तक
28 जून प्रात: 12.57 बजे से 3 जुलाई प्रात: 6.15 बजे तक
व्रत-त्योहार
एकादशी
06 जून, रविवार : अपरा एकादशी
21 जून, सोमवार : निर्जला एकादशी
प्रदोष
07 जून, सोमवार : सोम प्रदोष व्रत
22 जून, मंगलवार : भौम प्रदोष
अमावस्या
10 जून, बृहस्पतिवार : ज्येष्ठ अमावस्या
अहंकार, चिंता और व्यर्थ का चिंतन मिटाने का मंत्र
अहंकार, चिंता और व्यर्थ का चिंतन साधक की शक्ति को निगल जाते हैं | इनको मिटाने के लिए एक सुंदर मंत्र है | इसमें कोई विधि – विधान नहीं है | रात को सोते समय इस मंत्र का जप करो, संख्या का कोई आग्रह नहीं है | इस मंत्र से आपके चित्त की चिंता, तनाव, खिंचाव, दिक्कतें जल्दी शांत हो जायेगी और साधन – भजन में बरकत आयेगी | मंत्र उच्चारण में थोडा कठिन जैसा लगेगा लेकिन याद रह जाने पर आसान हो जायेगा | बाहर के रोग तो बाहर की औषधि से मिट सकते हैं लेकिन भीतर के रोग बाहर की औषधि से नहीं मिटेंगे और इस मंत्र से टिकेंगे नहीं |
हमारी जो जीवनधारा है, जीवनीशक्ति है, चित्तशक्ति है उसीको उद्देश्य करके यह मंत्र है ।
ॐ चित्तात्मिकां महाचित्तिं चित्तस्वरूपिणीं आराधयामि चित्तजान रोगान शमय शमय ठं ठं ठं स्वाहा ठं ठं ठं स्वाहा |
हे चित्तात्मिका, महाचित्ति, चित्तस्वरूपिणी ! मैं तेरी आराधना करता हूँ | जगत – शक्तिदात्री भगवती ! मेरे चित्त के रोगों का तू शमन कर |’
‘ठं’ बीजमंत्र है, यह बड़ा प्रभाव करता है | किसीमें लोभ, किसीमें मोह, किसीमें शराब पीने का, किसीमें अहंकार का, किसीमें शेखी बधारने का दोष होता है | चित्त में दोष भरे है इसलिए तो चिंता, भय, क्रोध, अशांति है और जन्म – मरण होता है |
इसके जप से आद्यशक्ति चेतना चित्त के दोषों को दूर कर देती है, चित्त को निर्मल कर देती है | सीधे लेट गये, यह जप किया | जब तक निद्रा न आये तब तक इसका प्रयोग करें | निद्रा आने पर अपने आप ही छूट जायेगा | रात को जप करके सोने से सुबह तुम स्वस्थ, निर्भय, प्रसन्न होकर उठोगे |
भगवान के मंत्र हों और भगवान को अपना मानकर प्रीतिपूर्वक जप करें तो चित्त भगवदाकार होकर भगवदरस से पावन हो जाता है | भगवदरस के बिना नीरसता नहीं जाती।
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