दिनांक : 23 मई 2021, दिन : रविवार
विक्रम संवत : 2078 (गुजरात - 2077)
शक संवत : 1943
अयन : उत्तरायण
ऋतु : ग्रीष्म
मास : वैशाख
पक्ष : शुक्ल
तिथि : एकादशी सुबह 06:42 बजे तक तत्पश्चात द्वादशी
नक्षत्र : हस्त दोपहर 12 :12 बजे तक तत्पश्चात चित्रा
योग : सिद्धि दोपहर 02 :58 बजे तक तत्पश्चात व्यतिपात
राहुकाल : शाम 05:34 बजे से शाम 07:13 बजे तक
सूर्योदय : प्रातः 05:59 बजे
सूर्यास्त : संध्या 19:11 बजे
व्रत पर्व विवरण
त्रिस्पृसा-मोहिनी एकादशी (भागवत), द्वादशी क्षय तिथि
पंचक
01 जून रात्रि 3.57 बजे से 05 जून रात्रि 11.27 बजे तक
28 जून प्रात: 12.57 बजे से 3 जुलाई प्रात: 6.15 बजे तक
व्रत-त्योहार विवरण
एकादशी
23 मई, रविवार : मोहिनी एकादशी
06 जून, रविवार : अपरा एकादशी
21 जून, सोमवार : निर्जला एकादशी
प्रदोष
24 मई, सोमवार : सोम प्रदोष व्रत
07 जून, सोमवार : सोम प्रदोष व्रत
22 जून, मंगलवार : भौम प्रदोष
अमावस्या
10 जून, बृहस्पतिवार : ज्येष्ठ अमावस्या
पूर्णिमा
26 मई, बुधवार : बुद्ध पूर्णिमा
विशेष
हर एकादशी को श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से घर में सुख शांति बनी रहती है।
राम रामेति रामेति।
रमे रामे मनोरमे।।
सहस्त्र नाम त तुल्यं।
राम नाम वरानने।।
आज एकादशी के दिन इस मंत्र के पाठ से विष्णु सहस्रनाम के जप के समान पुण्य मिलता है।
एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए।
एकादशी को चावल व साबूदाना खाना वर्जित है। एकादशी को शिम्बी (सेम) ना खाएं अन्यथा पुत्र का नाश होता है।
जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आँवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं।
मोहिनी एकादशी
मोहिनी एकादशी (उपवास से अनेक जन्मों के मेरु पर्वत जैसे महापापों का नाश)
वैशाख मास की महापुण्यप्रद अंतिम तीन तिथियाँ
श्रुकदेवजी राजा जनक से कहते हैं : ‘‘राजेन्द्र ! वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में जो अंतिम तीन पुण्यमयी तिथियाँ हैं – त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा। ये बडी पवित्र व शुभकारक है। इनका नाम ‘पुष्करिणी है, ये सब पापों का क्षय करनेवाली हैं। पूर्वकाल में वैशाख शुक्ल एकादशी को शुभ अमृत प्रकट हुआ। द्वादशी को भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की। त्रयोदशी को उन श्रीहरि ने देवताओं को सुधा-पान कराया। चतुर्दशी को देवविरोधी दैत्यों का संहार किया और पूर्णिमा के दिन समस्त देवताओं को उनका साम्राज्य प्राप्त हो गया।
इसलिए देवताओं ने संतुष्ट होकर इन तीन तिथियों को वर दिया : ‘वैशाख की ये तीन शुभ तिथियाँ मनुष्यों के पापों का नाश करनेवाली तथा उन्हें पुत्र-पौत्रादि फल देनेवाली हों।
जो संम्पूर्ण वैशाख में प्रातः पुण्यस्नान न कर सका हो, वह इन तिथियों में उसे कर लेने पर पूर्ण फल को ही पाता है। वैशाख में लौकिक कामनाओं को नियंत्रित करने पर मनुष्य निश्चय ही भगवान विष्णु का सायुज्य प्राप्त कर लेता है।
व्यतिपात योग
व्यतिपात योग की ऐसी महिमा है कि उस समय जप पाठ प्राणायम, माला से जप या मानसिक जप करने से भगवान की और विशेष कर भगवान सूर्यनारायण की प्रसन्नता प्राप्त होती है जप करने वालों को, व्यतिपात योग में जो कुछ भी किया जाता है उसका १ लाख गुना फल मिलता है।
वाराह पुराण में ये बात आती है व्यतिपात योग की।
व्यतिपात योग माने क्या कि देवताओं के गुरु बृहस्पति की धर्मपत्नी तारा पर चन्द्र देव की गलत नजर थी जिसके कारण सूर्य देव अप्रसन्न हुऐ नाराज हुऐ, उन्होनें चन्द्रदेव को समझाया पर चन्द्रदेव ने उनकी बात को अनसुना कर दिया तो सूर्य देव को दुःख हुआ कि मैने इनको सही बात बताई फिर भी ध्यान नहीं दिया और सूर्यदेव को अपने गुरुदेव की याद आई कि कैसा गुरुदेव के लिये आदर प्रेम श्रद्धा होना चाहिये पर इसको इतना नहीं थोडा भूल रहा है ये, सूर्यदेव को गुरुदेव की याद आई और आँखों से आँसु बहे वो समय व्यतिपात योग कहलाता है। और उस समय किया हुआ जप, सुमिरन, पाठ, प्रायाणाम, गुरुदर्शन की खूब महिमा बताई है वाराह पुराण में।
विशेष
23 मई 2021 रविवार को दोपहर 02:59 बजे से 24 मई, सोमवार को सुबह 11:14 बजे तक व्यतिपात योग है।
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