दिनांक 13 मई, दिन : गुरुवार
विक्रम संवत : 2078 (गुजरात : 2077)
शक संवत : 1943
अयन : उत्तरायण
ऋतु : ग्रीष्म
मास : वैशाख
पक्ष : शुक्ल
तिथि : द्वितीया 14 मई प्रातः 05:38 बजे तक तत्पश्चात तृतीया
नक्षत्र : रोहिणी 14 मई प्रातः 05:45 बजे तक तत्पश्चात मॄगशिरा
योग : अतिगण्ड रात्रि 12:51 बजे तक तत्पश्चात सुकर्मा
राहुकाल : दोपहर 02:14 बजे से शाम 03:52 बजे तक
सूर्योदय : प्रातः 06:02 बजे
सूर्यास्त : संध्या 19:07 बजे
दिशाशूल : दक्षिण दिशा में
पंचक
01 जून रात्रि 3.57 बजे से 5 जून रात्रि 11.27 बजे तक
28 जून प्रात: 12.57 बजे से 3 जुलाई प्रात: 6.15 बजे तक
व्रत पर्व विवरण
एकादशी
23 मई, रविवार : मोहिनी एकादशी
06 जून, रविवार : अपरा एकादशी
21 जून, सोमवार : निर्जला एकादशी
प्रदोष
24 मई, सोमवार : सोम प्रदोष व्रत
07 जून, सोमवार : सोम प्रदोष व्रत
22 जून, मंगलवार : भौम प्रदोष
अमावस्या
11 मई, मंगलवार : वैशाख अमावस्या
10 जून, बृहस्पतिवार : ज्येष्ठ अमावस्या
पूर्णिमा
26 मई, बुधवार : बुद्ध पूर्णिमा
विशेष
द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
समस्याओं के समाधान का बढिया उपाय
कोई भी समस्या आए तो बड़ी ऊँगली (मध्यमा) और अँगूठा मिलाकर भ्रूमध्य के नीचे और तर्जनी (अँगूठे के पासवाली पहली ऊँगली) ललाट पर लगा के शांत हो जाएं। अंदर जाए तो ‘ॐ’, बाहर आए तो ‘शांति’ ऐसा कुछ समय तक करें। आपको समस्याओं का समाधान बढ़िया मिलेगा।
ससुराल में कोई तकलीफ
किसी सुहागन बहन को ससुराल में कोई तकलीफ हो तो शुक्ल पक्ष की तृतीया को उपवास रखें। उपवास माने एक बार बिना नमक का भोजन करके उपवास रखें। भोजन में दाल-चावल और सब्जी-रोटी नहीं खाएं, दूध रोटी खा लें। शुक्ल पक्ष की तृतीया को अमावस्या से पूनम तक की शुक्ल पक्ष में जो तृतीया आती है उसको ऐसा उपवास रखें। नमक बिना का भोजन (दूध रोटी), एक बार खाएं बस। अगर किसी बहन से वो भी नहीं हो सकता पूरे साल का तो सिर्फ :-
माघ महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया, वैशाख शुक्ल की तृतीया और भाद्रपद मास की शुक्ल तृतीया। ऐसे 3 तृतीया का उपवास जरुर करें। बगैर नमक का भोजन करें, लाभ होगा।
ऐसा व्रत वशिष्ठ जी की पत्नी अरुंधती ने किया था। ऐसा आहार करें। महर्षि वशिष्ठ और अरुंधती का वैवाहिक जीवन इतना सुंदर था कि आज भी सप्त ऋषियों में से वशिष्ठ जी का तारा होता है। उनके साथ अरुंधती का तारा होता है। आज आकाश में रात को हम उन का दर्शन करते हैं।
शास्त्रों के अनुसार शादी होती तो उनका दर्शन करते हैं। जो जानकार पंडित होता है वो बोलता है। शादी के समय वर-वधु को अरुंधती का तारा दिखाया जाता है और प्रार्थना करते हैं कि जैसा महर्षि वशिष्ठ जी और अरुंधती का साथ रहा ऐसा हम दोनों पति पत्नी का साथ रहेगा।
चन्द्रमा की पत्नी ने इस व्रत के द्वारा चन्द्रमा की यानी 27 पत्नियों में से प्रधान हुईं। चन्द्रमा की पत्नी ने तृतीया के व्रत के द्वारा ही वो स्थान प्राप्त किया था। तो अगर किसी सुहागन बहन को कोई तकलीफ है तो ये व्रत करें। उस दिन गाय को चंदन से तिलक करें। कुम-कुम का तिलक ख़ुद को भी करें। उत्तर दिशा में मुख करके, उस दिन गाय को भी रोटी गुड़ खिलाएं।
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