- हर गांव के लिए आइसीयू वाले दो एम्बुलेंस रखने का निर्देश
- 30 बेड वाले अस्पतालों, नर्सिंग होम में अनिवार्य हो आक्सीजन प्लांट
- मेरठ मेडिकल कॉलेज से लापता मरीज के दोषियों पर कार्रवाई का निर्देश, सरकार दे मुआवजा
- पांच जिलों में एसपीजीआइ जैसी सुविधा वाले अस्पताल चार माह में तैयार करने का निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के गांवों एवं कस्बे में कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने और चिकित्सा सुविधाओं की कमी को लेकर चिंता जताई है। कहा है कि जिस तरह से चिकित्सा व्यवस्था है, उसमें कहा जा सकता है कि लोगों का स्वास्थ्य भगवान भरोसे है। कोर्ट ने कहा है कि यदि संक्रमण का पता लगाकर इलाज करने में हम विफल रहे तो हम थर्डवेव को निश्चित ही आमंत्रण दे रहे हैं।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा तथा न्यायमूर्ति अजित कुमार ने सोमवार को जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि गांवों कस्बो में बहुत,कम टेस्टिंग हो रही है । टेस्टिंग बढ़ाई जाए और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करायी जाए। कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार के स्वास्थ्य सचिव से कहा है कि वह नौकरशाही के बजाय विशेषज्ञों से इस संबंध में व्यापक रिपोर्ट तैयार कर दाखिल करें।
कोर्ट ने वैक्सीनेशन पर कहा कि तीन माह के भीतर हर किसी को वैक्सीन लग जाए और ग्रामीण व कस्बा क्षेत्र में चिकित्सा सुविधाओं को बेहतर किया जाए। वैक्सीनेशन के मुद्दे पर कहा कि राज्य सरकार ने वैक्सीन का ग्लोबल टेंडर जारी किया है। यह भी सुझाव दिया है कि जो आयकर दाता हैं। वह स्वयं वैक्सीन खरीदें और दूसरों की मदद करें। केंद्र सरकार निर्माताओं को ग्रीन सिग्नल दे ताकि मेडिकल कंपनियां वैक्सीन का उत्पादन शुरू कर सकें।
कोर्ट ने कहाकि यह समझ से परे है कि राज्य सरकार वैक्सीन क्यों नहीं बना रही है। बड़े उद्योग घरानों, धार्मिक संस्थानों से भी कोर्ट ने मदद करने की अपील की है। खंडपीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि 20 बेड वाले सभी नर्सिंग होम और अस्पतालों के 40 फ़ीसदी बेड आईसीयू रखे जाएं। इसमें 25 फ़ीसद वेंटिलेटर युक्त हों और 25 फीसदी हाईफ्लो नोजल कैनुुला तथा 50 फ़ीसदी रिजर्व रिजर्व रखे जाएं।
साथ ही प्रदेश सरकार सभी 30 बेड वाले नर्सिंग होम व अस्पतालों मे ऑक्सीजन प्लांट अनिवार्य करें। एसपीजीआइ लखनऊ, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी मेडिकल कॉलेज, किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ की तर्ज पर प्रयागराज आगरा मेरठ कानपुर गोरखपुर में भी उच्चीकृत सुविधाओं वाले मेडिकल कॉलेज स्थापित किए। यह प्रक्रिया चार माह में सरकार पूरी करें। इसके लिए जमीन व फंड की कोई कमी न रहने पाए। इन पांच मेडिकल कॉलेजों को स्वायत्तता भी दी जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि गांव और कस्बों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में पैथोलॉजी लैब,व इलाज की सुविधाएं बढ़ाई जाएं। हर गांव के लिए दो आईसीयू सुविधा युक्त एंबुलेंस भी मुहैया कराई जाए ताकि गंभीर मरीज को शहर के बड़े अस्पताल में लाया जा सके। कोर्ट ने कहा है बी और सी ग्रेड के कस्बों में 20 एंबुलेंस और हर गांव में दो एंबुलेंस आई सी यू सुविधायुक्त एक माह में उपलब्ध कराई जाए और रिपोर्ट दें।
कोर्ट ने कहा है कि बिजनौर बहराइच बाराबंकी श्रावस्ती जौनपुर मैनपुरी मऊ अलीगढ़ एटा इटावा फिरोजाबाद व देवरिया के जिला जज नोडल अधिकारी नियुक्त करें और सभी नोडल अधिकारी अपनी रिपोर्ट पेश करें। कोर्ट ने मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य को सेंट्रलाइज मॉनिटरिंग सिस्टम में कोविड व आईसीयू वार्डो का 22 मई को व्योरा पेश करने का निर्देश दिया है।
राज्य सरकार व केंद्र सरकार ने अनुपालन रिपोर्ट दाखिल की। सरकार ने बताया कि तीन सदस्य पेन्डेमिक लोक शिकायत कमेटी का गठन कर दिया गया है। कोर्ट ने कहा कमेटी संबंधित जिले के नोडल अधिकारियों से चर्चा कर 24 से 48 घंटे के भीतर शिकायतों का निराकरण करें। कमेटी होम आइसोलेशन, प्राइवेट अस्पतालों, नर्सिंग होमों में आक्सीजन आपूर्ति की निगरानी करें। कोर्ट ने शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जीवन रक्षक दवाओं की कमी को दूर करने का निर्देश दिया है। बिजनौर जिले की आबादी और वहां के अस्पतालों की स्थिति का उदाहरण लेते हुए कहा है कि जो भी सुविधा है वह नाकाफी है। 32 लाख की आबादी पर 10 हॉस्पिटल है ।लोगों को चिकित्सा सुविधा बमुश्किल मिल पा रही है। अभी तक सरकार ने 1200 सौ टेस्ट प्रतिदिन किए हैं जो बहुत ही कम है। 32 लाख की आबादी पर कम से कम चार या पांच हजार टेस्ट प्रतिदिन होना चाहिए।
मेडिकल कॉलेज मेरठ से 64 वर्षीय संतोष कुमार के लापता होने के मामले में दाखिल की गई रिपोर्ट में बताया गया कि मरीज को भर्ती किया गया था लेकिन उसकी पहचान नहीं हो सकी थी और वह बाथरूम में गए और वहां से बेहोश हो गए। जिन्हें स्ट्रेचर पर लाया गया ।अथक प्रयास के बावजूद भी उनको बचाया नहीं जा सका और लावारिश लाश का दाह संस्कार कर दिया गया। इसे कोर्ट ने घोर लापरवाही माना है । सरकार ने बताया कि दोषी पैरामेडिकल स्टाफ और डॉक्टर एक साल का इन्क्रीमेंट रोक दिया गया है । कोर्ट ने अपर मुख्य सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य को इस संबंध में कड़ी कार्रवाई का निर्देश देते हुए हलफनामा मांगा है । कहा है कि जवाबदेही तय की जाए और कड़ी कार्रवाई की जाए। मुख्य सचिव से भी इस बात का हलफनामा मांगा है और पूछा है कि आश्रितों को सरकार कैसे मुआवजा देगी। अगली सुनवाई 22 मई को होगी।
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