BLACK FUNGUS : नाक-गले के रास्ते हो रहा ब्लैक फंगस का संक्रमण

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  • देश भर के वरिष्ठ नेत्र सर्जनों का पैनल वेबिनार के जरिए ब्लैक फंगस के इलाज और रोकथाम पर कर रहा मंथन
  • आइसीयू में रहने व लंबे समय तक स्टेरॉयड की दवाएं चलने से कमजोर प्रतिरोधक क्षमता के रोगियों को दिक्कत



प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो, लखनऊ


ब्लैक फंगस (काली फफूंदी) दुर्लभ बीमारी है, जिसका पिछले एक दशक से एक भी केस नहीं आया था। कोरोना वायरस के संक्रमण से उबरने वाले तेजी से इसकी चपेट में आ रहे हैं। पहले महाराष्ट, गुजरात, केरल समेत अन्य राज्यों में ब्लैक फंगस के संक्रमित पाए गए। एक सप्ताह से उत्तर प्रदेश में भी केस आने लगे हैं। यह घातक संक्रमण म्यूकरमाइकाेसिस नामक मृतोपरजीवी फफूंद (डेड फंगल) से फैलता है। जो नाक और गले के रास्ते शरीर में प्रवेश करता है। ब्लैक फंगस सामान्यता सड़े हुए पदार्थों, भीगे कपड़ों की तह और नमी वाली सतहों पर पाया जाता है। इसके संक्रमण की शुरूआत नाक से होती है धीरे-धीरे आंख की मांसपेशियां (मसल्स) प्रभावित होने लगती हैं।


देश भर के वरिष्ठ नेत्र सर्जनों का पैनल लगातार वेबिनार के जरिए ब्लैक फंगस की रोकथाम एवं इलाज को लेकर चर्चा कर रहे हैं, जिसमें शहर के वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉ. मलय चतुर्वेदी भी शामिल हैं। डॉ. चतुर्वेदी के मुताबिक कोरोना संक्रमित या कोरोना से उबरे (नॉन कोविड) 80 फीसद मरीजों में ब्लैक फंगस पाया जा रहा है, जो पहले से ही मधुमेह (डायबिटीज), किडनी एवं कैंसर से पीड़ित हैं। कोरोना के गंभीर संक्रमण की वजह से आइसीयू में रहे और उन्हें लगातार स्टेरॉयड के इंजेक्शन एवं दवाइयां चलाई गईं।


आइसीयू व लो इम्यूनिटी से फैल रही बीमारी


गंभीर कोरोना संक्रमित लंबे समय तक आइसीयू में भर्ती रहते हैं। उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रहते हैं। ऑक्सीजन की जरूरत के हिसाब से वेंटिलेटर, बाईपैप एवं हाईफ्लो नेजल कैनुला (एचएफएनसी) पर रखा जाता है। इस दौरान फेफड़े का संक्रमण कम करने के लिए स्टेरॉयड थेरेपी के साथ खून पतला करने की दवाइयां भी चलाई जाती हैं। वैसे भी मरीजों की प्रतिरोधक क्षमता कम रहती है। ऊपर से लगातार ऑक्सीजन की वजह से नाक, मुंह एवं आंखों के आसपास नमी बनी रहती है। ठीक से साफ-सफाई न होने से फंगल इंफेक्शन होने लगता है। सतर्कता से इसे शुरूआत में पहचान कर रोका जा सकता है।


फंगस के इलाज की सीमित दवाइयां


डॉ. मलय का कहना है कि फंगस के इलाज की दवाइयां बहुत ही सीमित हैं। इसलिए सोच-समझ कर इलाज कराना चाहिए। एंटी फंगल इंजेक्शन एमफोटरेसिन बी, इसावैकुलाजोल, पोसाकोनाजोल हैं।


ब्लैक फंगस के सामान्य लक्षण


  • नाक और आंख को जोड़ने वाले मसल्स पर सूजन।
  • आंख के ऊपर-बाहर के अश्रु क्षेत्र (लैक्रिमल एरिया) में सूजन।
  • गाल के ऊपर छूने पर सून्नता का अहसास होना।
  • खखारने पर खून के साथ बलगम जैसा पदार्थ आना।
  • आंखों के नीचे गालों और पलकों पर सूजन।
  • सूजन की तरफ देखने में भीषण दर्द का एहसास होना।
  • व्यक्ति को शुरूआत में दो-दो चीजें दिखती हैं।


ब्लैक फंगस के गंभीर लक्षण


  • आंखों में अचानक से भेंगापन आ जाना।
  • पुतली फूलने से तेजी से धुंधलापन आना।
  • सिर में भीषण दर्द और बेहोशी का होना।
  • चक्कर का अहसास भी होने लगना।
  • आंखे उभर कर एकदम बाहर की तरफ आ जाती।


ब्लैक फंगस की शुरुआत गले, नाक और आंख के जरिए होती है। इसलिए इसे राइनो आर्बिटो सेरेब्रल म्यूकर माइकोसिस कहते हैं। घबराएं नहीं, यह लाइलाज बीमारी नहीं है। इसके शुरुआती लक्षणों को पहचान कर चिन्हित कर सही इलाज से आंख या साइनस निकालने की नौबत नहीं आती है। अगर नाक या आंख में सूजन आने लगे तो तत्काल सतर्क हो जाएं। लापरवाही बरतने से संक्रमण दूसरे अंगों को तेजी से चपेट में लेने लगता है।


  • डॉ. मलय चतुर्वेदी, वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ।


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