23 अप्रैल, दिन : शुक्रवार
विक्रम संवत : 2078 (गुजरात - 2077)
शक संवत् : 1943
अयन : उत्तरायण
ऋतु : बसंत
मास : चैत्र
पक्ष : शुक्ल
तिथि : एकादशी रात्रि 09:47 तक तत्पश्चात द्वादशी
नक्षत्र : मघा सुबह तक 07:42 तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी
योग : वृद्धि दोपहर 02:40 तक तत्पश्चात ध्रुव
राहुकाल : सुबह 11:01 से दोपहर 12:37 तक
सूर्योदय : सुबह 06:14 बजे
सूर्यास्त : शाम 18:59 बजे
दिशाशूल : पश्चिम दिशा में
पंचक
4 मई रात्रि 8.41 बजे से 9 मई सायं 5.30 बजे तक
1 जून रात्रि 3.57 बजे से 5 जून रात्रि 11.27 बजे तक
28 जून प्रात: 12.57 बजे से 3 जुलाई प्रात: 6.15 बजे तक
एकादशी
23 अप्रैल, शुक्रवार कामदा एकादशी
07 मई, शुक्रवार वरुथिनी एकादशी
23 मई, रविवार मोहिनी एकादशी
06 जून, रविवार अपरा एकादशी
21 जून, सोमवार निर्जला एकादशी
प्रदोष
24 अप्रैल: शनि प्रदोष
08 मई: शनि प्रदोष
24 मई: सोम प्रदोष व्रत
07 जून: सोम प्रदोष व्रत
22 जून: भौम प्रदोष
अमावस्या
वैशाख अमावस्या- मंगलवार, 11 मई 2021
ज्येष्ठ अमावस्या- बृहस्पतिवार, 10 जून 2021
पूर्णिमा
26 अप्रैल, सोमवार: चैत्र पूर्णिमा
26 मई, बुधवार: बुद्ध पूर्णिमा
व्रत पर्व
कामदा एकादशी
22 अप्रैल 2021 गुरुवार को रात्रि 11:36 से 23 अप्रैल, शुक्रवार को रात्रि 09:47 तक एकादशी है ।
विशेष - 23 अप्रैल, शुक्रवार को एकादशी का व्रत (उपवास) रखें ।
कामदा एकादशी’ ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करनेवाली है । इसके पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है ।
एकादशी के दिन शाम के समय तुलसी के पौधे के समाने गाय के घी का दीपक प्रज्वलित करके ऊँ वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करते हुए तुलसी की ग्यारह परिक्रमा करें। इस उपाय से घर के सभी सदस्यों में मध्य प्रेम, शुख शांति बनी रहती है और उस परिवार पर किसी भी प्रकार कोई भी संकट नहीं आता है।
एकादशी व्रत के लाभ
एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है ।
जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।
जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है,उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।
एकादशी करनेवालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं ।इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है ।
धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है ।
कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है ।
परमात्मा की प्रसन्नता प्राप्ति होती है ।पूर्वकाल में राजा नहुष, अंबरीष, राजा गाधी आदि जिन्होंने भी एकादशी का व्रत किया, उन्हें इस पृथ्वी का समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हुआ ।भगवान शिवजी ने नारद से कहा है : एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमे कोई संदेह नहीं है । एकादशी के दिन किये हुए व्रत, गौ-दान आदि का अनंत गुना पुण्य होता है ।
एकादशी के दिन करने योग्य
एकादशी को दिया जलाके विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें विष्णु सहस्त्र नाम नहीं हो तो १० माला गुरुमंत्र का जप कर लें l अगर घर में झगडे होते हों, तो झगड़े शांत हों जायें ऐसा संकल्प करके विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें तो घर के झगड़े भी शांत होंगे l
मंत्र- राम रामेति रामेति । रमे रामे मनोरमे ।। सहस्त्र नाम त तुल्यं । राम नाम वरानने
एकादशी के दिन ये सावधानी रहे
महीने में १५-१५ दिन में एकादशी आती है एकादशी का व्रत पाप और रोगों को स्वाहा कर देता है लेकिन वृद्ध, बालक और बीमार व्यक्ति एकादशी न रख सके तभी भी उनको चावल का तो त्याग करना चाहिए एकादशी के दिन जो चावल खाता है तो धार्मिक ग्रन्थ से एक- एक चावल एक- एक कीड़ा खाने का पाप लगता है ऐसा डोंगरे जी महाराज के भागवत में डोंगरे जी महाराज ने कहा
एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए।
एकादशी को चावल व साबूदाना खाना वर्जित है | एकादशी को शिम्बी (सेम) ना खाएं
जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आँवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं।
शनि प्रदोष
शनिवार को प्रदोषकाल में त्रयोदशी तिथि हो तो उसे शनिप्रदोष कहा जाता है।
24 अप्रैल 2021 को शनि प्रदोष है।
शनिप्रदोष व्रत की महिमा अपार है | स्कन्दपुराण में ब्राह्मखंड - ब्रह्ममोत्तरखंड में हनुमान जी कहते हैं कि
एष गोपसुतो दिष्ट्या प्रदोषे मंदवा सरे । अमंत्रेणापि संपूज्य शिवं शिवमवाप्तवान् ।।
मंदवारे प्रदोषोऽयं दुर्लभः सर्वदेहिनाम् । तत्रापि दुर्लभतरः कृष्णपक्षे समागते ।।
एक गोप बालक ने शनिवार को प्रदोष के दिन बिना मंत्र के भी शिव पूजन कर उन्हें पा लिया। शनिवार को प्रदोष व्रत सभी देहधारियों के लिए दुर्लभ है। कृष्णपक्ष आने पर तो यह और भी दुर्लभ है।
संतान प्राप्ति के लिए शनिप्रदोष व्रत एक अचूक उपाय है।
विभिन्न मतो से शनिप्रदोष को महाप्रदोष तथा दीपप्रदोष भी कहा जाता है। कुछ विद्वान केवल कृष्णपक्ष के शनिप्रदोष को ही महाप्रदोष मानते हैं।
ऐसी मान्यता है की शनिप्रदोष का दिन शिव पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ है। अगर कोई व्यक्ति लगातार 4 शनिप्रदोष करता है तो उसके जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं साथ ही वह पितृऋण से भी मुक्त हो जाता है।
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