दिनांक : 17 अप्रैल 2021, दिन : शनिवार
विक्रम संवत : 2078 (गुजरात : 2077)
शक संवत : 1943
अयन : उत्तरायण
ऋतु : वसंत
मास : चैत्र
पक्ष :शुक्ल
तिथि : पंचमी रात्रि 08:32 बजे तक तत्पश्चात षष्ठी
नक्षत्र : मॄगशिरा 18 अप्रैल रात्रि 02:34 बजे तक तत्पश्चात आर्द्रा
योग : शोभन शाम 07:19 बजे तक तत्पश्चात अतिगण्ड
राहुकाल : सुबह 09:28 बजे से सुबह 11:03 बजे तक
सूर्योदय : सुबह 06:19 बजे
सूर्यास्त : शाम 18:57 बजे
दिशाशूल : पूर्व दिशा में
व्रत पर्व विवरण
श्री पंचमी
विशेष
पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
आर्थिक संकट या कर्ज के बोझ से दबे हों तो नवरात्रि में मखाने के साथ सिक्के मिलाकर देवी को अर्पित करें और फिर उसे गरीबों में बांट दें।
आर्थिक परेशानी हो तो
स्कंद पुराण में लिखा है पौष मास की शुक्ल पक्ष की दसमी तिथि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी (17 अप्रैल 2021 शनिवार) और सावन महीने की पूनम ये दिन लक्ष्मी पूजा के खास बताए गए हैं। इन दिनों में अगर कोई आर्थिक कष्ट से जूझ रहा है। पैसों की बहुत तंगी है घर में तो 12 मंत्र लक्ष्मी माता के बोलकर, शांत बैठकर मानसिक पूजा करे और उनको नमन करें तो उसको भगवती लक्ष्मी प्राप्त होती है। लाभ भी होता है, घर में लक्ष्मी स्थायी हो जाती हैं। उसके घर से आर्थिक समस्याए धीरे धीरे किनारा करती है | बारह मंत्र इसप्रकार हैं :-
ॐ ऐश्वर्यै नम:
ॐ कमलायै नम:
ॐ लक्ष्मयै नम:
ॐ चलायै नम:
ॐ भुत्यै नम:
ॐ हरिप्रियायै नम:
ॐ पद्मायै नम:
ॐ पद्माल्यायै नम:
ॐ संपत्यै नम:
ॐ ऊच्चयै नम:
ॐ श्रीयै नम:
ॐ पद्मधारिन्यै नम:
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्ति प्रदायिनि। मंत्रपूर्ते सदा देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
द्वादश एतानि नामानि लक्ष्मी संपूज्यय पठेत। स्थिरा लक्ष्मीर्भवेतस्य पुत्रदाराबिभिस:।।
उसके घर में लक्ष्मी स्थिर हो जाती है। जो इन बारह नामों को इन दिनों में पठन करे।
विशेष : 17 अप्रैल 2021 शनिवार को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि है।
चैत्र नवरात्रि पर भोग
नवरात्र की पंचमी तिथि यानी पांचवे दिन माता दुर्गा को केले का भोग लगाएं ।इससे परिवार में सुख-शांति रहती है।
चैत्र नवरात्रि का महात्म्य
स्कंदमाता की पूजा से मिलती है शांति व सुख
नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता भक्तों को सुख-शांति प्रदान करने वाली हैं। देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जानते हैं। स्कंदमाता हमें सिखाती हैं कि जीवन स्वयं ही अच्छे-बुरे के बीच एक देवासुर संग्राम है व हम स्वयं अपने सेनापति हैं। हमें सैन्य संचालन की शक्ति मिलती रहे। इसलिए स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए, जिससे कि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति व सुख का अनुभव कराती हैं।
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