माता प्रसाद की फाइल फोटो। |
अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद का लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई में निधन हो गया। वह 96 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे। पीजीआई में मंगलवार रात 12:00 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। राजनीति में सादगी के उदाहरण माता प्रसाद के निधन की खबर से जौनपुर जिले में शोक की लहर छा गई।
जौनपुर जिले के मछलीशहर तहसील क्षेत्र के कजियाना मोहल्ले में 11 अक्तूबर 1924 को जगरूप राम के घर जन्मे माता प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वर्ष 1942-43 में मछलीशहर से हिंदी-उर्दू में मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
गोरखपुर के नॉर्मल स्कूल से ट्रेनिंग के बाद जिले के मड़ियाहूं ब्लॉक के प्राइमरी स्कूल बेलवा में सहायक अध्यापक के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने गोविंद, विशारद के अलावा हिंदी साहित्य में पढ़ाई पूरी की। अध्यापन काल में ही लोकगीत लिखने और गाने का शौक था। इनकी कार्य कुशलता को देखते हुए इन्हें वर्ष 1955 में जिला कांग्रेस कमेटी का सचिव बनाया गया।
राजनीति में स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम को अपना आदर्श मानने वाले माता प्रसाद जिले के शाहगंज ( सुरक्षित ) विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर 1957 से 1974 तक लगातार पांच बार विधायक रहे। 1980 से 1992 तक 12 वर्ष उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे। प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने इन्हें अपने मंत्रिमंडल में 1988 से 89 तक राजस्व मंत्री बनाया था। केंद्र की नरसिंह राव सरकार ने 21 अक्टूबर 1993 को इन्हें अरुणाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया था, जो 31 मई 1999 तक राज्यपाल रहे।
सादगी की प्रतिमूर्ति माता प्रसाद राजनेताओं को आईना दिखाया है आज के दौर में जहां एक बार विधायक या मंत्री बनते ही नेतागण गाड़ी बंगले के साथ लाखों-करोड़ों में खेलने लगते हैं। वहीं, पांच बार विधायक, दो बार एमएलसी, नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्री काल में राजस्व मंत्री और राज्यपाल रहे माता प्रसाद पैदल या रिक्शे पर बैठे बाजार से सामान खरीदते देखे जाते थे। पैदल चलना उनको पसंद था।
साहित्यकार के रूप में भी प्रसिद्धि
वह साहित्यकार के रूप में भी प्रसिद्ध थे। उन्होंने एकलव्य खंडकाव्य, भीम शतक प्रबंध काव्य, राजनीति की अर्थ सतसई, परिचय सतसई, दिग्विजयी रावण जैसी काव्य कृतियों की रचना ही नहीं की वरन अछूत का बेटा, धर्म के नाम पर धोखा, वीरांगना झलकारी बाई, वीरांगना उदा देवी पासी , तड़प मुक्ति की , धर्म परिवर्तन प्रतिशोध , जातियों का जंजाल , अंतहीन बेड़ियां , दिल्ली की गद्दी पर खुसरो भंगी जैसे नाटक भी रचे। राज्यपाल रहते उन्होंने मनोरम, अरुणाचल पूर्वोत्तर भारत के राज्य, झोपड़ी से राजभवन आदि उल्लेखनीय कृतियां लिखी हैं।
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