- इटावा में जन्मे, अलीगढ़ नौकरी करने के लिए आए और यहीं के होकर रह गए
तनुज शर्मा, अलीगढ़
महाकवि नीरज ने अपने एक-एक शब्द को गीतों में ऐसा पिरोया है, जिसे कई दशकों से पीढ़ियां गुनगुनाती आ रहीं हैं। बुजुर्ग हों, अधेड़, युवा पीढ़ी या फिर किशोर, हर शख्स की जुबां से उनके तराने सुने जा सकते हैं। प्रेम और विरह में डूबे नग्मे खुद के शब्द बन जाते हैं। महाकवि ने बाॅलीवुड में महज छह साल गुजारे, लेकिन उनका लिखा हर अल्फाज आज इतिहास बन गया। उनकी इस काबिलियत के लिए सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाजा गया। उनके रचे दो अमर गीत 'कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे...' और 'जीवन की बगिया महकेगी...' उन्हें अमर बना गए। आज यानी चार जनवरी को जयंती पर महाकवि को याद करते हुए नमन करते हैं। आपके साथ-साथ युवा एवं किशोरों से उनसे रूबरू करा रहे प्रारब्ध न्यूज के हमारे संवाददाता।
आएं जाने कौन थे नीरज
महाकवि नीरज का जन्म 4 जनवरी 1925 को इटावा जिले के महेवा के निकट गांव पुरावली में हुआ था। महज छह वर्ष की उम्र में उनके सिर से पिता ब्रजकिशोर सक्सेना का साया उठ गया। बचपन अभावों में गुजरा। नौकरी करते हुए पढ़ाई पूरी की। वर्ष 1953 में हिंदी साहित्य से एमए करने के बाद मेरठ कॉलेज में पढ़ाने लगे। वहां से अलीगढ़ आए और डीएस कॉलेज में प्राध्यापक की नौकरी करने लगे। और यहीं के होकर रह गए। मैरिस रोड स्थित जनकपुरी में मकान बनाकर रहने लगे। काव्य मंचों के माध्यम से लोकप्रियता हासिल करते गए। वर्ष 19 जुलाई 2018 को महाकवि नीरज हमेशा के लिए चिर निद्रा में सो गए।
ऐसे बने इतिहास पुरुष
वर्ष 1964 में यहां से मुंबई पहुंच गए। गीतों की लोकप्रियता से प्रभावित होकर ही निर्माता आर चंद्रा ने अपनी फिल्म 'नई उमर की नई फसल' में उन्हें गीत लेखन का मौका दिया। आर चंद्रा अलीगढ़ में पले-पढ़े अभिनेता भारत भूषण के बड़े भाई थे, इसलिए अलीगढ़ से उनका जुड़ाव भी था। उसके बाद फिल्मों में गीत लेखन के लिए नीरज मुंबई में रहने लगे। आर चंद्रा की फिल्म वर्ष 1966 में रिलीज हुई। फिल्म तो नहीं चली, लेकिन मो. रफी की आवाज में 'कारवां गुजर गया' गीत और भी लोकप्रिय हो गया। वर्ष 1967 में ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'मझली दीदी', वर्ष 1968 में देवानंद अभिनीत फिल्म 'दुनिया', वर्ष 1970 में राजकपूर की फिल्म 'मेरा नाम जोकर', आत्माराम निर्देशित फिल्म 'चंदा और बिजली', देवानंद की फिल्म 'प्रेम पुजारी', वर्ष 1971 में मनोज कुमार की फिल्म 'पहचान' व शशिकपूर की फिल्म 'शर्मीली' समेत अनेक उनके गीत सुनाए दिए। राजकपूर, मनोज कुमार, शशि कपूर व देवानंद जैसे अभिनेता नीरज के कायल हो गए थे। वर्ष 1970 में फिल्म चंदा और बिजली के गीत काल पहिया घूमे रे भइया, वर्ष 1971 में पहचान फिल्म के गीत-बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं तथा वर्ष 1972 में मेरा नाम जोकर फिल्म के गीत-ऐ भाई, जरा देख के चलो, के लिए लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।
छह मिनट में लिख डाला 'लिखे जो खत तुझे...'
महाकवि नीरज ने अभिनेता शशि कपूर की फिल्म कन्यादान का गाना, लिखे जो खत तुझे... भी लिखा था। यह गाना निर्माता राजेंद्र भाटिया ने लिखने के लिए कहा था। महाकवि ने महज छह मिनट में लिखकर दे दिया था। शशि कपूर ने तत्काल नीरज को गले लगा दिया। उन्होंने अपनी कार भी नीरज को भेंट स्वरूप प्रदान कर दी। इसी कार पर बैठकर फिल्म में यह गीत फिल्माया गया।
देवानंद से अच्छे ताल्लुकात
मुंबई प्रवास के दौरान महाकवि नीरज के उस दौर के हर महान कलाकार से अच्छे ताल्लुकात थे, लेकिन सदाबहार अभिनेता देवानंद से उनका बेहत लगाव था। यह वो दौर था, जब देवानंद, मनोज कुमार या राजकपूर जैसे लोग गीतकारों का बड़ा सम्मान करते थे। देवानंद व मनोज कुमार तो नियमित कवि सम्मेलन सुनने जाते थे। सही मायने में देव आनंद ही थे, जो नीरज जी को मुंबई लेकर आए थे।
पसंद नहीं आई मायानगरी
फक्कड़ और तूफानी मिजाज के गोपाल दास नीरज को मायानगरी रास नहीं आई। मायानगरी की रंगीन दुनिया में छोड़कर वापस आ गए।
नीरज की आत्मा साहित्यिक लेखनी के रूप में उनकी रगों में बहती थी। इसलिए मुंबई की भागमभाग में जल्द ही नीरज का मन भर गया। महाकवि वर्ष 1971 में मुंबई को हमेशा के लिए अलविदा कह आए। नीरज पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें भारत सरकार ने दो बार सम्मानित किया। वर्ष 1991 में पद्मश्री एवं वर्ष 2007 में पद्मभूषण सम्मान से विभूषित किया।
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