जब क्रांतिकारियों ने उखाड़ फेंकी थी पटरियां, ढहाए पुल

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  • इलाहाबाद से अंग्रेजी सेना के आने का था डर



प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो, कानपुर


प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल मेरठ में बजते ही शहर में भी क्रांति की ज्वाला फूट पड़ी थी। युवा से लेकर बुजुर्ग देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए संग्राम में कूद पड़े थे। उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी ने वर्ष 1855 में रेल पटरियों को बिछानें का कार्य शुरू किया था। 

इलाहाबाद से कानपुर के बीच पटरियां बिछाने का कार्य अपने अंतिम चरण में था। इसी बीच, वर्ष 1857 में मेरठ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बज उठा। कानपुर में स्वतंत्रता संग्राम की कमान नाना साहेब ने संभाल रखी थी। ऐसी स्थिति में अंग्रेजी सेना कहीं रेल मार्ग से शहर न पहुंच जाए, इस अंदेशे में क्रांतिकारियों ने रेल की पटरियां और पुल उखाड़ फेंके थे। इस वजह से पहली ट्रेन यहां से चलाने में लगभग चार साल लग गए।




मेरठ में 10 मई 1857 को कोतवाल धन सिंह गुर्जर के नेतृत्व में क्रांति की आग पूरे देश में फैल गई थी। कानपुर में 4 जून को अंग्रेज सेना के सिपाही टिक्का सिंह ने अपने साथियों के साथ नवाबगंज का खजाना लूटकर विद्रोह की शुरूआत की थी।

इस विद्रोह की कमान नाना साहेब के हाथ में थी। 9 जून को नाना साहब ने अपने क्रांतिकारियों के साथ किले को घेर लिया और अंग्रेजों का रसद पानी बंद कर दिया। 



उधर, पुराना कानपुर रेलवे स्टेशन तक रेल लाइन बिछ चुकी थी। ऐसे में क्रांतिकारियों को इस बात का भी भय था कहीं अंग्रेजी सेना इलाहाबाद से रेल मार्ग के जरिये न आ जाए। इस पर क्रांतिकारियों ने कानपुर से इलाहाबाद को जाने वाली रेल की पटरियों को जगह-जगह से उखाड़ फेंकी।


कानपुर के साथ ही चंदारी, चकेरी, रूमा और सरसौल से आगे फतेहपुर तक क्रांतिकारियों ने जगह-जगह से पटरियों को उखाड़ फेंका था। इतिहासकार प्रोफेसर समर बहादुर सिंह बताते हैं कि क्रांतीकारियों की सेना ने इस रूट पर बनाए गए करीब आधा दर्जन पुलों को भी बारूद लगाकर उड़ा दिया गया था। 

इस क्रांति को भले ही कुछ महीनों में दबा दिया गया लेकिन चिंगारी डेढ़ साल तक सुलगती रही। यही कारण रहा कि मुंबई और कोलकाता के साथ कानपुर भी पांच प्रमुख केंद्रों में शामिल हो गया।


40 लाख पौंड का हुआ था नुकसान


इतिहासकार बताते हैं कि 1857 की क्रांति में देश भर में रेल पटरियों और पुलों को काफी नुकसान पहुंचा था। एक अनुमान के मुताबिक क्रांति की वजह से कानपुर समेत पूरे देश में ईस्ट इंडियां कंपनी को करीब 40 लाख पौंड का नुकसान हुआ था।

 इस क्रांति के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का अस्तित्व समाप्त हो गया और भारत पर अंग्रेजी शासन हो गया। जिसके बाद एक बार फिर तेजी से रेल लाइनों का विस्तार हुआ और 3 मार्च 1859 को इलाहाबाद से कानपुर के बीच पहली ट्रेन चली।

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