- नौकरी बीच में छाेड़ने पर भरना होगा एक करोड़ रुपये का हर्जाना
प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो, लखनऊ
सरकारी कोटे से स्नात्कोत्तर यानी पीजी सीटों पर दाखिला लेने वाले चिकित्सकों को सरकार ने बडा झटका दिया है। अब प्रांतीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा संवर्ग (पीएमएस) के चिकित्सकों के लिए पीजी की पढ़ाई के अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) की शर्तों में बदलाव कर हो गया है। सरकारी कोटे से पीजी करने पर दस साल तक सशर्त सेवा करनी होगी। अगर पीजी के बाद सरकारी नौकरी छोड़ी तो एक करोड़ रुपये हर्जाना राज्य सरकार को देना होगा।
पढ़ाई बीच में छोड़ने पर तीन साल तक आवेदन भी नहीं कर सकेंगे। स्वास्थ्य विभाग के एमबीबीएस डिग्रीधारक चिकित्सकों के लिए सरकारी कोटे से पीजी पाठ्यक्रम में दाखिले का प्रावधान किया गया है। ताकि सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालाें में विशेषज्ञ चिकित्सकों की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जा सके।
इसी उद्देश्य के तहत पीजी पाठ्यक्रम में दाखिले से पहले विभाग से ऐसे चिकित्सकाें को एनओसी दी जाती है। अभी तक ऐसे ही एनओसी मिल जाती थी। कोर्स पूरा करने के बाद कई चिकित्सक मेडिकल कॉलेजों में ही सीनियर रेजीडेंट बन जाते हैं। हालांकि पहले से ही कोर्स पूरा करने के बाद तत्काल विभाग में योगदान का आदेश है। सरकार के संज्ञान में यह भी आया है कि सरकारी कोटे से पीजी करने के बाद अधिकतर चिकित्सक सरकारी नौकरी छोड़ कर निजी प्रैक्टिस करने लगते हैं। इसे गंभीरता से लेते हुए शासन ने अनापत्ति प्रमाणपत्र देने की सेवा शर्तों में ही बदलाव कर दिया है।
अब यह प्रावधान
10 साल तक अनिवार्य रूप से करनी होगी नौकरी
03 साल तक डिबार होंगे बीच में पीजी की पढ़ाई छोड़ने पर
01 करोड़ रुपये देना होगा हर्जाना, अगर बीच में छोड़ी नौकरी
पीजी के बाद तत्काल योगदान
पीजी की पढ़ाई पूरी करने के बाद जहां तैनाती है, वहां योगदान करना होगा। ऐसा नहीं करने वाले चिकित्सकों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की संस्तुति की जाएगी। साथ ही हर्जाना भी वसूला जाएगा।
स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव ने सरकारी सेवारत चिकित्सकों को पीजी में दाखिले के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र देने के दिशा-निर्देश में बदलाव किए हैं। नए सत्र से यह नियम लागू होंगे। सरकार की यह अच्छी पहल है। इससे सीएचसी-पीएचसी में भी विशेषज्ञ चिकित्सकों की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
- प्रो. आरबी कमल, प्राचार्य, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।
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