- हैलट के कोविड हॉस्पिटल के आइसीयू में अब तक 63 संक्रमित पर कर चुके हैं अध्ययन
- संक्रमितों का ऑक्सीजन लेवल चार दिन में हो गया मेंटेन, 10-12 दिन में मिल गई छुट्टी
केस-एक
किदवई नगर निवासी 47 वर्षीय युवक को कोरोना का संक्रमण हो गया था। गंभीर स्थिति में हैलट के कोविड हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे। सांस लेने में तकलीफ होने पर वेंटीलेटर पर रखा गया था। उनका ऑक्सीजन लेवल लगातार गिर रहा था। ऐसे में खून पतला करने की दवा चलाई गई, जिसका दो दिन में असर दिखने लगा और चार दिन में ही वेंटीलेटर से बाहर आ गए।
केस-दो
इंदिरा नगर निवासी 63 वर्षीय महिला को कोरोना का संक्रमण होने पर सांस लेने में तकलीफ के साथ सीने में दबाव बढ़ने लगा था। हैलट के कोविड आइसीयू में भर्ती हुईं थीं। जब उनके फेफड़े का सीटी स्कैन कराया तो संक्रमण फैल चुका था। खून के छोटे थक्के जम चुके थे। ऐसे में खून पतला करने की दवा चलाने का निर्णय लिया गया, जिसका असर रहा कि वह तेजी से रिकवर कर गईं।
केस-तीन
सर्वोदय नगर निवासी 61 वर्षीय बुजुर्ग दिल की बीमारी से पीड़ित थे। कोरोना संक्रमित होने पर हैलट के कोविड हॉस्पिटल में भर्ती कराए गए। जब वह भर्ती हुए तो उनका दम फूल रहा था। सांस की तकलीफ को देखते हुए उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था। उन्हें दिल की दवाएं चल रही थीं, जिससे सामान्य कोविड मरीजों की अपेक्षा उनमें तेजी से सुधार होता दिखा। जब डॉक्टरों ने वजह जानी तो पता चला कि उन्हें दिल की दवा में खून पतला करने वाली दवा भी चल रही है। इसलिए दूसरे गंभीर मरीजों की तुलना में वह तेजी से रिकवर कर गए।
प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो, कानपुर
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के हैलट अस्पताल को न्यूरो साइंस सेंटर के कोविड आइसीयू के क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट दिल की दवा से कोरोना को मात देने में कामयाब हुए हैं। कोविड आइसीयू में अब तक 63 कोरोना संक्रमित गंभीर मरीजों में प्रयोग के तौर पर हार्ट अटैक के मरीजों को खून पतला करने के लिए दी जाने वाली ईको स्प्रिन एवं क्लोपी डोगरल दवाएं चलाई, जिसके मरीजों पर बेहतर रिजल्ट मिले। जहां गंभीर संक्रमितों को अस्पताल में 15-20 दिन तक रुकना पड़ रहा था। इस प्रयोग से मरीजों में तेजी से सुधार हुआ। उन्हें अस्पताल से 10 से 12 दिन में छुट्टी दे दी गई।
ऐसे मिली अध्ययन की प्रेरणा
हृदय रोग संस्थान में इलाज के लिए आए दिल के मरीज जब कोरोना संक्रमित हो गए तो उन्हें हैलट के कोविड हॉस्पिटल भेज दिया गया। इन मरीजों में हार्ट अटैक के अलावा पेस मेकर एवं स्टेंट भी पड़ा था। इन मरीजाें को खून पताल करने की दवाएं चल रही थीं। इस वजह से इनके फेफड़े में बदलाव नहीं दिखा। इनका ऑक्सीजन सेचुरेशन यानी ऑक्सीन का लेवल भी मेंटेन रहा। इन्हें ऑक्सीजन लगाने की जरूर भी नहीं पड़ी। एक्सरे एवं सीटी स्कैन जांच में भी फेफड़ा पूरी तरह साफ दिखा। इसे देखते हुए क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ ने शोध करने का फैसला किया।
सामान्य की अपेक्षा तेजी से सुधार
इससे प्रेरित होकर क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ ने गंभीर मरीजों पर यह प्रयोग शुरू कर दिया। अब तक 63 गंभीर मरीजों पर खून पतला करने की दवाएं चलाई हैं, जिसका परिणाम है कि वह 10-12 दिन में आइसीयू से बाहर आ गए। उनका ऑक्सीजन लेवल भी मेंटेन हो गया। वहीं, दूसरे मरीजों को रिकवर करने में 18-20 दिन लग रहे हैं।
कोरोना का संक्रमण होने पर खून के थक्के बनने लगते हैं। इस वजह से फेफड़े के साथ दिल की नसों में भी ब्लॉकेज होने लगता है। तेजी से संक्रमित की स्थिति बिगड़ने लगती है। इसलिए खून पताल करने की दवाएं कारगर साबित हुईं हैं। इन दवाओं की वजह से ऑक्सीजन लेवल भी तेजी से सुधरने लगता है। अब तक 63 मरीजों में बदलाव देखा जा चुका है।
- डॉ. चंद्रशेखर सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर, एनस्थेसिया विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।
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