कलियुग में करोड़ों की आस्था का केन्द्र हैं मूंगा गणेश मंदिर या बड़ा गणेश मंदिर
प्रारब्ध आध्यात्मिक डेस्क, आजमगढ़
जिले की आदि गंगा तमसा नदी के पावन तट पर स्थित मूंगा गणेश मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। भगवान गणेश के दर्शन के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग आते हैं। गणपति उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं।
त्रेता युग में हुई थी अस्थापना
किवदंती प्रचलित है कि मूंगा गणेश मंदिर की स्थापना त्रेता युग में हुई थी। जब भगवान राम वन के लिए निकले थे तो प्रथम विश्राम उन्होंने तमसा तट पर ही किया था। यह वही स्थान है जहां मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम रुके थे। उन्होंने यहां भगवान शिव और माता पार्वती के साथ ही गणेश जी की आराधना की थी। भगवान राम की आराधना से गणपति प्रकट हुए थे। तभी से वे यहां स्थापित हैं। उनके अद्भुत दर्शन के लिए आज भी भक्तों का रेला उमड़ता है।
दो क्वींटल मूंगे से बनी है प्रतिमा
यहां स्थापित भगवान गणेश की प्रतिमा दो क्वींटल की है जो पूरी तरह मूंगे से बनाई गई है। इसीलिए इसे मूंगा गणेश के नाम से जाना जाता है।
दक्षिणमुखी गणेश
गणेश जी की दक्षिणमुखी प्रतिमा बिरले ही देखने को मिलती है। मान्यता है कि भारत का यह इकलौता मंदिर है जहां गणेश जी की प्रतिमा दक्षिणमुखी है। इसीलिए इसका दर्शन विशेष फलदायी कहा जाता है।
मुगलकाल में हुई थी पालिश
वर्तमान में गणेश जी की प्रतिमा सामान्य प्रतिमाओं की तरह ही दिखती है। प्रतिमा में मूंगे का अंश नहीं दिखता है। इसकी वजह है कि मुगल शासनकाल में इस प्रतिमा को पालिश कराकर रंग बदल दिया गया।
सभी दोषों का करते हैं निदान
मान्यता है कि कुण्डली दोष हो या मनचाहे वर की इच्छा अथवा सन्तान सुख की कामना। भगवान गणेश के दर्शन से भक्तों की हर इच्छा पूरी होती है। प्रत्येक बुधवार को यहां हजारों लोग गणपति के दर्शन के लिए आते हैं।
विदेशों से भी आते हैं भक्त
मूंगा गणेश के दर्शन के लिए भक्तगण देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी हैं। प्रमुख अवसरों पर लोग भगवान गणेश के दर्शन के लिए यहां आते हैं। भक्तों की मानें तो आज तक उन्होंने जो भी मांगा है वह पूरा हुआ है।
तीन साल पहले तक था खपरैल
तीन साल पहले तक यहां कच्ची दीवार के बने खपरैल में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित थी। महंत राजेश मिश्र की देख रेख में भक्तों के सहयोग से आज यहां भव्य मंदिर बनाया गया है। मंदिर को भव्य रूप देने के लिए आज भी निर्माण कार्य चल रहा है।
उदासीन अखाड़े के हाथ में रही है कमान
इस मंदिर में पूजा पाठ की कमान हमेशा से उदासीन सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखने वाले एक ही परिवार के हाथ में रही है। महंत राजेश मिश्र बताते हैं कि मंदिर परिसर में उनके 13 पूर्वजों की समाधि है, जिसमें दस लोगों ने जीवित समाधि ली थी बाकी तीन की समाधि सामान्य है।
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