- शरद पूर्णिमा दिलाए आत्म शांति व स्वास्थ्य लाभ
- विशेष महात्म्य
शुक्रवार शाम 05:45 बजे से शनिवार रात्रि 08:18 बजे तक है पूर्णिमा
शुक्रवार को शरद पूर्णिमा पर खीर चन्द्रकिरणों में रखें, शनिवार को व्रत
प्रारब्ध आध्यात्म डेस्क, लखनऊ
आश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन रास-उत्सव और कोजागर व्रत किया जाता है। गोपियों को शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने बंसी बजाकर अपने पास बुलाया और ईश्वरीय अमृत का पान कराया था। अतः शरद पूर्णिमा की रात्रि का विशेष महत्त्व है। इस रात को चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषक शक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करता है।
शरद पूनम की रात क्या करें, क्या न करें
दशहरे से शरद पूनम तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं। इन दिनों चन्द्रमा की चाँदनी का लाभ उठाना चाहिए, जिससे वर्षभर आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें। नेत्र ज्योति बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक (पलकों को बिना झपकाये) करें।
चन्द्रमा की चाँदनी में रखी खीर अमृत समान
अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं, जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गईं हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें और फिर उस खीर को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें। इस रात सुई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।
गर्भवती महिलाओं के लिए लाभकारी
चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है। शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्त्व है। बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है।
समुद्र के समान शरीर के लिए फायदेमंद
अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है । जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है। इनमें काम-विकार भोगने से विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी होती है। उपवास, व्रत तथा सत्संग करने से तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आता है।
अमृतमय प्रसाद खीर को कहते रसराज
अमृतमय प्रसाद खीर को रसराज भी कहते हैं। सीताजी को जब अशोक वाटिका में रखा गया था। रावण के घर का क्या खाएंगी सीताजी ! तो इन्द्रदेव उन्हें खीर भेजते थे। खीर बनाते समय घर में चाँदी का गिलास आदि जो बर्तन हो, आजकल जो मेटल (धातु) का बनाकर चाँदी के नाम से देते हैं वह नहीं, असली चाँदी के बर्तन अथवा असली सोना धो-धा के खीर में डाल दो तो उसमें रजतक्षार या सुवर्णक्षार आयेंगे। लोहे की कड़ाही अथवा पतीली में खीर बनाओ तो लौह तत्त्व भी उसमें आ जाएगा। इलायची, खजूर या छुहारा डाल सकते हो लेकिन बादाम, काजू, पिस्ता, चारोली ये रात को पचने में भारी पड़ेंगे। रात्रि 9 बजे महीन कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर 12 बजे के आसपास भगवान को भोग लगा के प्रसादरूप में खा लेनी चाहिए। देर रात को खाते हैं इसलिए थोड़ी कम खाना और थोड़ी बच जाय तो फ्रिज में रख देना। सुबह गर्म करके खा सकते हो।
(नोट : खीर दूध, चावल, मिश्री, चाँदी, चन्द्रमा की चाँदनी - इन पंचश्वेतों से युक्त होती है, अतः सुबह बासी नहीं मानी जाती।)
if you have any doubt,pl let me know