प्रारब्ध फीचर डेस्क, लखनऊ
नवरात्रि का पर्व आरंभ है। नौ दिनों तक मां के नौ स्वरुपों का पूजन किया जाएगा। नवरात्रि के प्रथम दिन से लेकर नवम दिन तक मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी मां, चंद्रघंटा माता, कूष्मांडा माता, स्कंध माता, कात्यायनी माता, कालरात्रि माता, सिद्धिदात्री माता का पूजन किया जाता है। अष्टमी हवन और उसके बाद कन्यापूजन करके माता को विदा किया जाता है।हिंदू पंचांग के हिसाब से चंद्र तिथि के अनुसार पर्व मनाए जाते हैं। कोई तिथि नौ तो कोई 12 घंटे की होती है। इस वजह से कई बार लोगों में भ्रम की स्थिति बन जाती है। इस बार भी अष्टमी, नवमी और दशमी तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। आएं जानें सही जानकारी।
अष्टमी, नवमी और दशमी तिथि
पंचांग के अनुसार 23 अक्तूबर शुक्रवार सुबह 06:57 बजे से अष्टमी तिथि आरंभ होगी जो 24 अक्तूबर सुबह 6:58 बजे तक रहेगी। उसके बाद नवमी तिथि 06:58 बजे से आरंभ होकर 25 अक्तूबर सुबह 7:41 बजे तक रहेगी। वहीं 25 अक्तूबर को 7:41 बजे से दशमी तिथि आरंभ होगी जो 26 अक्तूबर सुबह 9:00 बजे तक रहेगी। इस तरह से 25 अक्तूबर को ही दशमी तिथि लगने के कारण इसी दिन दशहरा मनाया जाएगा। इस तरह से आप तिथि के अनुसार हवन, कन्या पूजन और दशहरे का पर्व मना सकते हैं।
कैसे करें कन्या पूजन
नवरात्रि की अष्टमी तिथि के दिन हवन और उसके बाद नवमी तिथि को कन्या पूजन करने के बाद माता रानी को विदा करके व्रत का पारण किया जाता है। कुछ लोग हवन के बाद अष्टमी तिथि को ही कन्या पूजन करते हैं। लेकिन पारण समापन तिथि के बाद ही किया जाता है। अष्टमी तिथि को मां महागौरी और नवमी तिथि को मां सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है।
क्या है कन्या पूजन का महत्व
नवमी तिथि को मां सिद्धिदात्री के पूजन के साथ कन्या भोजन करवाने बहुत महत्व माना गया है। नवरात्रि में मां के नौं स्वरुप मानकर नौ कन्याओं का पूजन किया जाता है। नवरात्रि में नौ कन्याओं के साथ एक बालक को भी बटुक भैरव या लांगुर का रुप मानकर पूजन किया जाता है। 2 से लेकर 10 वर्ष तक की कन्याओं को भोजन कराने का विशेष महत्व माना गया है।
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