किसान आंदोलन : बैकफुट पर सरकार, अब राजनाथ सिंह तलाशेंगे राह

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  • किसान नेताओं से बातचीत कर समझाने की कोशिश में सरकार
  • किसानों के प्रतिनिधिमंडल से बातचीत कर बताया अपना पक्ष
  • अगले हफ्ते में किसान प्रतिनिधिमंडल से दोबारा हो सकती बात

प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो, नई दिल्ली


नए कृषि कानून को लेकर सरकार की परेशानी कम होती नहीं दिख रही हैं। कांग्रेस किसानों के साथ खड़ी है, जिससे आंदोलन उग्र होता जा रहा है। किसानों के रुख को देखते हुए भाजपा सरकार भी अब बैकफुट पर आती दिख रही है। इसलिए किसानों को समझाने-बुझाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को सौंपी है। 


राजनाथ सिंह पहले कृषि मंत्री भी रह चुके हैं और किसानों के साथ उनके रिश्ते बेहतर हैं। केंद्र सरकार ऐसे भी आर्थिक मंदी, बढ़ती बेरोजगारी, गिरते एक्सपोर्ट, कोरोना के बढ़ते मामलाें, चीन से लेकर हाथरस विवाद में फंसी हुई है। ऐसे हालात में सरकार किसानों के विरोध को रोकने में राजनाथ सिंह अहम भूमिका निभा सकते हैं।


खत्म नहीं होंगी एपीएमसी मंडियां


रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों के प्रतिनिधियों से बातचीत शुरू कर दी है। उन्हें अपना पक्ष समझाने की कोशिश में लग गए हैं। सरकार किसानों को आश्वस्त कर रही है कि एपीएमसी मंडियां खत्म नहीं की जाएंगी। उनके जरिए किसानों को न्यूनतम मूल्य हमेशा मिलता रहेगा। साथ ही किसानों को खुले बाजार का विकल्प और मिल जाएगा जो उनके लिए फायदेमंद होगा।


पहले मांग, फिर होगी बात


साल भर पहले भी किसानों ने इसी तरह केंद्र सरकार के खिलाफ हल्ला-बोल दिया था। एनएच-24 जाम कर दिया था, जिसके बाद केंद्र सरकार ने किसानों के एक प्रतिनिधि मंडल से बातकर मामला सुलझाने का दावा किया था, लेकिन किसानों के अन्य गुटों द्वारा सरकार की बात न मानने से मामला दुबारा भड़क उठा था। किसानों का दावा है कि इस बार वे अपनी मांगों को माने-जाने से पहले समझौते के लिए तैयार नहीं हैं।



इससे कम पर नहीं मानेंगे किसान


किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने अमर उजाला को बताया कि सरकार चाहती है कि किसान इस बात पर आश्वस्त हो जाएं कि एपीएमसी मंडियां खत्म नहीं की जाएंगी। लेकिन किसान एपीएमसी के साथ-साथ खुले बाजार में भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पाने के बिना टलने वाले नहीं हैं। उन्होंने कहा कि एपीएमसी मंडियों से किसानों को जो न्यूनतम समर्थन मूल्य का भुगतान किया जाता है, उससे उसके राजकोष पर भार पड़ता है और वह स्वयं इसका वहन करती है। ऐसे में वह खुले बाजार में एमएसपी देने से क्यों इंकार कर रही है, जिसका उसे स्वयं भुगतान भी नहीं करना है। उन्होंने कहा कि यही वजह है कि किसानों में सरकार की मंशा को लेकर संदेह है।


न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हो


किसान चाहते हैं कि फसलों की कहीं भी बिक्री हो, उसका न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हो। इसके अलावा दूध पर भी न्यूनतम समर्थन मू्ल्य के साथ पूरी खरीद की गारंटी मिले। छोटे किसान मजदूर भी हैं और वे छोटी-छोटी जोत वाले सीमांत किसान भी हैं। ऐसे में अगर सरकार खेती को भी मनरेगा से जोड़ देती है, तो किसान अपने खेतों में काम करने के लिए भी मजदूरी पा सकेंगे। इससे किसानों की अर्थव्यवस्था काफी मजबूत होगी और किसान आत्महत्या के लिए मजबूर नहीं होगा।


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