- 84 वर्ष की आयु में निधन, मस्तिष्क की सर्जरी के लिए 10 अगस्त को हुए थे भर्ती
- प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत कई हस्तियों ने जताया दुख, देश में शोक की लहर
- वर्ष 2012 में बने थे देश के 13वें राष्ट्रपति, सभी राजनीतिक दलों में थी स्वीकार्यता
- वर्ष 1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में बने थे वित्त मंत्री
देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का सोमवार को निधन हो गया। उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी ने यह जानकारी दी। दिल्ली कैंट स्थित आर्मी रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में बीते कुछ समय से उनका इलाज किया जा रहा था। सुबह ही अस्पताल की तरफ से बताया गया था कि फेफड़ों में संक्रमण की वजह से वह सेप्टिक शॉक में थे।
84 वर्षीय मुखर्जी के मस्तिष्क में खून के थक्के जमने के बाद उनका ऑपरेशन किया गया था। अस्पताल में भर्ती कराए जाने के समय वह कोविड-19 से भी संक्रमित पाए गए थे। इसके बाद उन्हें श्वास संबंधी संक्रमण हो गया था।
मुखर्जी गहरे कोमा में थे। उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। शरीर के अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलने से काम करना बंद कर दिया था। उन्हें 10 अगस्त को दिल्ली कैंट स्थित सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इससे पहले उनकी कोरोना रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई थी। पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी के परिवार में दो बेटे और एक बेटी हैं।
प्रधानमंत्री ने जताया शोक, कहा- कष्ट में पूरा देश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुखर्जी ने निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि आज पूरा देश दुखी है। उन्होंने ट्वीट किया, 'भारत रत्न प्रणब मुखर्जी के निधन पर पूरा देश शोक में है। उन्होंने हमारे राष्ट्र के विकास पथ पर एक अमिट छाप छोड़ी है। वह राजनीतिक स्पेक्ट्रम के पार और समाज के सभी वर्गों द्वारा प्रशंसित थे।'
वर्ष 2012 में बने थे राष्ट्रपति, सभी दलों में था सम्मान
वर्ष 2012 में प्रणब मुखर्जी देश के राष्ट्रपति बने थे। वे भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में वर्ष 2012 से 2017 तक पद पर रहे। इस पद के लिए यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की पहली पसंद हामिद अंसारी थे, लेकिन कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की पसंद मुखर्जी थे। इससे यह भी पता चला था कि राजनीतिक विभेद के बावजूद प्रणब मुखर्जी की स्वीकार्यता सभी राजनीतिक दलों में थी।
'पीएम इन वेटिंग' का सपना रह गया अधूरा
यूपीए और कांग्रेस में प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार थे। उन्हें 'पीएम इन वेटिंग' भी कहा जाता था, लेकिन उनकी किस्मत में सात रेसकोर्स रोड नहीं बल्कि राष्ट्रपति भवन का पता लिखा था। अपनी जीवनयात्रा पर लिखी पुस्तक 'द कोलिशन ईयर्स - 1996-2012' में उन्होंने खुद स्वीकार किया था कि वो प्रधानमंत्री बनना चाहते थे।
पीएम मोदी चाहते थे कि मुखर्जी बने रहें राष्ट्रपति
बतौर राष्ट्रपति उन्होंने यूपीए को सत्ता से बेदखल होते और भाजपा को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाते हुए देखा। कई मौकों पर वे मोदी सरकार की तारीफ करने से भी पीछे नहीं हटे। प्रधानमंत्री मोदी भी चाहते थे कि वह बतौर राष्ट्रपति दूसरा कार्यकाल भी स्वीकार करें। लेकिन उम्र और स्वास्थ्य का हवाला देते हुए उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया था।
ache neta chal base
ReplyDeletethanks for your comment ,aap ne sach kaha
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