प्रारब्ध रिसर्च डेस्क
देश-विदेश में वेस्ट मटेरियल में टायर-ट्यूब की काफी मात्रा होती है। कई देशों में इस कबाड़ को मैनेज करने में दिक्कत होने लगी है। इसलिए अब इसे उपयोग में लाने के लिए तरह-तरह के उपाए किए जा रहे हैं। विदेशों में इसकी री-साइक्लिंग की जाती है। उसका इस्तेमाल विभिन्न जगहों पर किया जाता है। नए टायर-ट्यूब से सुसज्जित वाहनों को चलाने में सुगमता होती है। वहीं, कार सवारों को आरामदायक यात्रा का सुख मिलता है। यही टायर जब घिस जाते हैं तो सफर कष्टप्रद होने लगता है। इसलिए टायर-ट्यूब चेंज करने पड़ते हैं, तब यह निकले टायर-ट्यूब वेस्ट मटेरियल हो जाते हैं। देश में बड़ी संख्या में वाहन है, इसलिए टायर-ट्यूब वेस्ट भी काफी मात्रा में निकलता है। इसे री-साइक्लिंग करने के तरह-तरह उपाए किए जा रहे हैं। इसे ध्यान में रखते हुए कानपुर के हरकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी (एचबीटीयू ) के विशेषज्ञों ने अपने शोध से नई तकनीक विकसित की है। उनके शोध में इनके उपयोग से झटका रहित सफर का लुत्फ उठाएंगे। साथ ही पुल, रेलवे, स्लीपर और सड़क निर्माण में भी इस्तेमाल संभव होगा।
पर्यावरण संरक्षण के लिए अच्छी पहल
एचबीटीयू के विशेषज्ञों ने बेकार टायर-ट्यूब और रबर की मिक्सिंग करके उत्पाद तैयार किए हैं। जब पदार्थ ठोस होगा तो सर्वाधिक शॉक प्रूफ होगा और दबाव कम पड़ेगा। इस शोध को अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित किया गया है। यह पहल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में यह बेहतर पहल है। टायर-ट्यूब और रबर देश-दुनिया में प्रदूषण की एक बड़ी वजह है। इस आविष्कार से दोपहिया, चार पहिया वाहन और ट्रेन का सफर पहले की अपेक्षा आरामदायक हो जाएगा। रबर मिक्सिंग मटेरियल से बनने वाली सड़कें और रेलवे के स्लीपर पर झटके कम लगेंगे।
ऐसे विकसित की तकनीक
मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. आनंद कुमार और प्रो. विनय प्रताप ने शोध छात्र अर्जुन दिवाकर के सहयोग से बेकार टायरों को पाउडर रूप में परिवर्तित कराया। फिर इसे सीमेंट और गिट्टी के साथ मिलाया। इस प्रक्रिया को तीन अलग-अलग चरणों में पूरा किया गया। पहले मौरंग को पांच, दूसरे में 10 और तीसरे में 15 प्रतिशत कम कर दिया गया। तीनों में कंप्रेसिव स्ट्रैंथ (निर्माण सामग्री को आपस में जोड़ने की क्षमता) जरूर कम हुई, लेकिन औसत से बेहतर गई। कंपन नहीं होने की विशेषता बढ़ गई। इस पर अधिक भार पड़ने पर पुल, सड़क और रेलवे की पटरी के ऊपर दबाव कम होगा। प्रो. विनय प्रताप ने बताया कि टायर और रबर के सूक्ष्म कणों की सहायता से सतह पर दबाव, भार और जर्क कम हो गया। इसकी फ्लैक्सिबिलिटी भी बढ़ गई।
टायर और रबर का उपयोग
प्रो. आनंद कुमार के मुताबिक उत्तर प्रदेश काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की ओर से तीन साल का प्रोजेक्ट मिला है। इसमें 12 लाख रुपये की ग्रांट भी जारी हुई है। इसमें शोध कर बेकार टायर और रबर से तकनीक विकसित की जाएगी। खेल के सीमेंटेड मैदान, सिंथेटिक ट्रैक, बास्केटबॉल कोर्ट, स्टेज, छत आदि तैयार किए जाएंगे।
ऑटोमोबाइल सेक्टर में काम
विशेषज्ञ लकड़ी के बुरादे और टायर के पाउडर को मिलाकर ऐसे उपकरण तैयार करेंगे। उनका उपयोग ऑटोमोबाइल सेक्टर में किया जा सकेगा। वाहनों के बंपर बनाने पर भी इसका इस्तेमाल करने पर काम चल रहा है।
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