ब्रह्मपुत्र के पार, बादलों के बीच में : दो
- अजय शुक्ल
अजय शुक्ल। |
"मैं कह रहा था सर कि भंडारी छह जून तक मेरे साथ था। वह बीमार था और उसी हालत में शिलॉन्ग लौटने की रट लगाए था..."
"बीमारी क्या थी?" कर्नल ने कुर्सी पर पहलू बदलते हुए पूछा।
"मैं उसी पर आ रहा था...भंडारी जब मेरे पास आया तो उसे बुखार था। दो डिग्री से एक पॉइंट ज़्यादा। रात काफी हो चुकी थी इसलिए मैंने मेटासिन की गोली देकर लिटा दिया था। वह तुरन्त ही सो गया था। नींद में वह थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ बड़बड़ाने लगता..."
"क्या?"
"बस एक नाम बड़बड़ाता–लिज़ी, कभी कहता, लिज़ माय डार्लिंग। सुबह उसको बुखार नहीं था। मैंने जगाया तो वह आंख खोलते ही फूटफूट के रोने लगा। फिर मुझसे लिपट गया। सुबकता रहा...मुझे बचा लो सुनील...मैं मर जाऊंगा... बचा ले दोस्त। उसके चेहरे पर एक किस्म का खौफ और आंखों में चौकन्नापन था, मानो उसे किसी हमले का अंदेशा हो।...."
बोलते-बोलते मुझे नथुनों में अचानक लैवेंडर जैसी भीनी-भीनी खुशबू का अहसास हुआ। मैं रुक गया। एक लंबी सांस खींची और कर्नल साहब की तरफ देखने लगा।
"वॉट हैपेन्ड? रुक क्यों गए?" उन्होंने पूछा।
"कैन यू स्मेल सम फ्रेग्रेन्स...सॉर्ट ऑव लैवेंडर?"
"न तो। बिलकुल नहीं। आपको पाइन की महक आ रही है। पाइन की खुशबू यहां हर वक़्त हवा में रहती है... "
लैवेंडर की खुशबू मेरे फेफड़ों तक समाई जा रही थी। मैंने एक बहुत गहरी सांस ली और खुशबू की दिशा भांपने लगा। और मुझे सोर्स मिल गया: महक मेरे बराबर रखी कुर्सी से आ रही थी। मैंने कुर्सी के कुशन पर हाथ रख दिया। कुशन गर्म था। मैं एकबारगी उठा और लॉन्ग जम्प मारकर कमरे के बाहर आ गया।
"क्यों, क्या हुआ मिस्टर साव?" कर्नल साहब भी फुर्ती से मेरे पीछे बाहर आ गए, "बात क्या हुई? उन्होंने पूछा।
"सिद्धू साब, महक बगल में रखी कुर्सी से आ रही थी"
शिलॉन्ग के ठंडे, खुशनुमा गरमी के मौसम में मेरा चेहरा पसीने से नहा गया था। कोट के नीचे शर्ट का कॉलर गीला था। दूसरी, ओर कर्नल साहब मेरी बात पर ठहाका मारकर हंस रहे थे, ''यू बिहारीज़..यू आ इम्पॉसिबल... कुर्सी से खुशबू आ रही है!! हाहाहा...हाहाहा...अरे उस सीट पर कल मिसेज़ कल्याणी कुलकर्णी बैठी थीं। यूनिवर्सिटी, 'नेहू' में फिजिक्स पढ़ाती हैं। खुशबुओं से लबरेज़ थीं..लग रहा था मानो शनेल की दुकान की सारी शीशियां उड़ेल ली हों।....हां, तो तुम बता रहे थे कि वह रात भर बड़बड़ाता रहा। फिर?"
"आगे दोपहर में भोजन के बाद वह फिर उलझन करने लगा। बोला–मैं शिलॉन्ग जा रहा हूं, अभी। साफ था वह मेंटली अनस्टेबल था। इसीलिए उसको मैं पटना में डॉ आरपी सिंह के पास ले गया। वे पटना के बेस्ट सायकायट्रिस्ट हैं। उन्होंने ट्रैंक्विलाइज़र देकर शांत कर दिया था। डॉक्टर ने अगले दिन बुलाया था। कहा था, बात करके मामला समझेंगे। डॉक्टर ने कहा, तीन या चार सेशन में ठीक हो जाएगा"
"फिर?"
"फिर डॉक्टर के पास जाने की नौबत ही नहीं आई। सुबह जब मैं जाग तो भंडारी घर में नहीं था। वह मुंह अंधेरे ही भाग गया था।"
"ह्म्म्म" कर्नल साहब बोले,"अब आप बता रहे हैं तो मुझे भी याद आ रहा है। दरअसल, वह अज़ीब ढंग की हरकतें करने लगा था। एक बार लगा कि वह ड्रग्स लेने लगा है। लेकिन यह मुमकिन नहीं लगा क्योंकि वह सिगरेट भी नहीं पीता था। दारू भी कभी नहीं। एकदम टीटोटलर। एक बड़ा बदलाव यह था कि उसने भोजन के लिए ऑफिसर्स मेस आना क़तई बन्द कर दिया...जबकि वह बैचलर था।"
"तभी तो वह इतना दुबला हो गया था। डॉक्टर ने वज़न लिया था। सिर्फ 60 किलो निकला था। पांच-दस हाइट के लिए यह बहुत कम है।"
"गलती मेरी। मैंने उसकी हरकतों को जितना सीरियसली लेना चाहिए था, नहीं लिया। और तो और एक रात मुझे शिलॉन्ग बाहरी बस्ती लाबांग में मिला। जंगल की स्टीप चढ़ाई चढ़ कर शिलॉन्ग पीक की तरफ जा रहा था। मैं एक पार्टी के बाद अपने एक सिविलियन ऑफिसर को छोड़ने गया था। बन्दा वहीं दिख गया। लंबे-लंबे डग भरते हुए वह पहाड़ी जंगल की तरफ जा रहा था। मैंने टोका तो बेवकूफों की तरह खीसें निपोर कर हंसने लगा।
बोला, " आयम गोन्ना सी माय गाल।"
"ओये, खोत्ते वहां जंगल में कौन सी गिरलफ्रेंड बैठी है?" मैंने कहा तो वह लंबे-लंबे कदमों से भागने लगा। अंधेरे में गुम होने से पहले वह एक बार रुका और पलटकर बोला, " डोन यू वरी सर...आय थिंक आयम डेटिंग अ भूत..आय विल बी फाइन।"
मुझे उसे रोक लेना चाहिए था। कर्नल साहब अचानक बड़े उदास हो उठे।
(अंधेरे कमरे में भंडारी की आपबीती सुनाने वाला कौन था: पढ़ें कल)
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