"साहब, ये रामराज क्या होता है?"

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रामराज्य- एक : ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो


  • अजय शुक्ल

ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने कुंडी खटकाई और मैं भगौना लेकर दरवाज़े पर खड़ा हो गया। भुट्टो ने 500 एमएल के नपने से दो लीटर दूध बर्तन में डाल दिया। मैं 'अच्छा भुट्टो' कहकर दरवाज़ा बन्द कर पाता कि उसने टोंक दिया, "साहब, ये रामराज क्या होता है?"

भुट्टो मेरा दूधवाला है। उसका यह नाम किसी ने इल्हाम के बाद रख दिया होगा। पाकिस्तान से उसका कोई ताल्लुक़ नहीं है।

"रामराज में सब अच्छा-अच्छा होता है, भुट्टो" मैंने टालू जवाब दे दिया। हिंदी पत्रकार को विषयों की गंभीर समझ होती भी कहां है, पढ़े-लिखों को मालिक चाहता ही नहीं। परेशान जो बहुत करते हैं। एक उपसम्पादक ने रेड इंडियन का अनुवाद लाल भारतीय कर दिया था। मालिक ने सुबह पढ़ा तो उपसम्पादक को सम्पादक बना दिया था।

भुट्टो मेरे जवाब से सन्तुष्ट न था।


"हमरे गदियाने मा लोग चिंता करत रहैं," उसने कहा,"हम लोगन खातिर चिंता की कोई बात तो नहीं आय? हमार दूल्हा भाई कहत हैं कि रामराज मुसलमानन खातिर ठीक नहीं।"


जवाब में मैंने मज़ाक़ कर दिया, "तुम्हें क्या, चले जाना पाकिस्तान, मियां भुट्टो से तो वीज़ा भी नहीं मांगेंगे।" लोग लगभग दो दशक से अपने मुस्लिम मित्रों को इस तरह की बातों से छेड़ते आए हैं। पर यह छेड़छाड़ कितनी बेहूदी है इसका अहसास इस अनपढ़ दूधवाले ने कराया।


"भइया, हमरे पुरिखन की हड्डी हेंईं गड़ी हँय, हम कहूं न जइबे" भुट्टो की आंखों से ग़ुस्सा छलकने लगा, "जात हन भइया।" वह चेहरा घुमा कर सीढियां उतर गया। वह नहीं चाहता था कि उसकी नाराज़गी दिखाई दे।


शाम को पान की दुकान पर रामराज्य से फिर मुठभेड़ हो गई। पान के बीड़ों; तुलसी, रत्ना, चांदनी आदि सुगन्धित ज़रदों; किवाम और रजनीगन्धा के पाउचों के साथ रामराज्य जोरजोर से चबाया और थूका जा रहा था। एक भाई मुंह ऊपर कर के बोल रहे थे, "अब होगा सबका साथ, सबका विकास...।" बोलने के चक्कर में उनके पेट में पीक घुस गई। तम्बाकू तेज़ थी। वे बोलने के लायक न रहे। पर उनके विचारों के तार को दूसरे ग्राहक ने पकड़ लिया, "रामराज्य में हचक के विकास करेंगे और जो साला रास्ता रोकेगा उसके भूसा भर देंगे।"


"रास्ता रोकेगा कौन" सिगरेट का गहरा कश लेकर तीसरा ग्राहक बोला।


"देशद्रोही..ग़द्दार" यह चौथे की आवाज़ थी, "मगर इन्हें पहचानेंगे कैसे?"


"सिंपल, कपड़ों से" यह पहले वाले की आवाज़ थी, जो पानी पीकर स्वस्थ हो गया था।


"रामराज्य में एक बड़ा काम यह होगा कि थूकने पर रोक लग जाएगी" यह बात सिगरेट पीने वाले पान वाले के मुंह मे गाढ़ा, कसैला धुआं उगलते हुए कही।


"रोक तो बाबू सिगरेट पर भी लगेगी" पान वाले ने चिढ़ कर कहा, "तम्बाकू अमरीकन होती है न! सो, खाने वाली और पीने वाली दोनों पर रोक लगेगी।"


"तो हम लतिहड़ लोग नशा काहे का करेंगे?"


"मैं बताऊं, भइया?" एक मोटी, बलगमी आवाज़ पान की दुकान के पीछे से आई।


"हां बोल झम्मन" किसी ने हौसला दिया।


"तब मेरे साथ गांजा पीना" झम्मन दुकान के पीछे से निकल कर सामने आ गया। उसके हाथ में चिलम थी। उसने गर्दन टेढ़ी करके आखिरी दम लगाया और अपने टुटहे रिक्शे पर जा बैठा। बोला, "गांजा पूर्ण स्वदेशी है। तिस पर भोले का प्रसाद भी तो है। अब तो यह भी सुनते हैं कि अमरीका में रोक हटा ली गई है।"


"इसका मतलब यह हुआ" एक आदमी लम्बी पीक मारकर बोला, "कि अगर अमरीका ने रोक हटा ली है तो कल यहां भी हटेगी...अबे मज़ा आ जाएगी। मैं पुदीने की जगह गांजे की खेती करूंगा। अपनी तरक्की। देश की तरक्की। नशेबाज़ी फ्री की।"


(काजोल की नानी का रामराज्य : पढ़ें कल)

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